8 /20 - परः तस्मात् तू भावः अन्यः अव्यक्तः अव्यक्तात सनातनः।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति। ।
अर्थ :- उस अव्यक्त से भी बढ़कर जो अप्रगट नित्य ,दूसरा भाव है वह सब प्राणियों में नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता।
FEELINGS |
.
भाव 2 प्रकार के होते हैं ,
1 - अंदर का भाव।
2. बाहर का भाव।
1 - अंदर का भाव - जो अंदर का भाव है उसे प्रगट नहीं किया जा सकता ,और वह भाव व्यक्ति में सदैव ही रहती है ,जिसे आत्मा का भाव यानि आत्मभाव नाम दिया गया है।
हाँ दोस्तों , वह आत्मभाव मृत्यु होने पर भी नस्ट नहीं होता।
2. बाहर का भाव- जो बाहर का भाव होता है ,वह दिखावे का भाव होता है ,और कुछ समय के लिए होता है। जो मृत्यु होने पर नस्ट हो जाता है।
⇉ इस श्लोक में भगवन यह बताना चाह रहे हैं कि जो आत्मा का भाव है अपने परमात्मा के प्रति वह नित्य और अविनाशी है ,क्योंकि ना आत्मा मरती है और ना ही परमात्मा मरते है।
वहीँ जो मनुष्यों का भाव है जैसे -माता और पुत्र का भाव वह भाव विनाशी केवल कुछ समय के लिए है।
मुझे उम्मीद है दोस्तों की ये जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें निचे कमेंट करके जरूर बताये। धन्यवाद।
आप निचे से वीडियो द्वारा भी यह जानकारी ले सकते है।
ये भी जाने :-
Buddhi Kaise Badhaye -Zero se Hero Bane
Dusro Ko Khush Kaise Kare
Chanakya Niti -Gharelu Maha Mantra
EmoticonEmoticon