bhagwan ka ghar |
8 /21 -अव्यक्तः अक्षरः इति उक्तः तम आहुः परमाम गतिम्।
यम प्राप्य न निवर्तन्ते तत धाम परमम् मम। ।
इस श्लोक में भगवन यह बता रहे हैं कि मैं जहाँ रहता हूँ उसको लोग ब्रह्मलोक के नाम से जानते हैं। जहाँ पर पहुँच कर आत्मा इस दुखी संसार में नहीं लौटती। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वहां जाने के बाद आत्मा जन्म नहीं लेगी।
वह जन्म तो लेगी लेकिन दुःख के संसार में नहीं सुख के संसार सतयुग में जन्म लेगी।
और यह ब्रह्मलोक मेरा घर परमधाम है।
15 /6 - न तत भासयते सूर्य न शशांक न पावकः।
यत गत्वा न निवर्तन्ते तत धाम परमम् मम।।
यहाँ पर भगवन बता रहे हैं कि जहाँ पर सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता ,चन्द्रमा की रोशिनी नहीं पहुँचती और ना ही अग्नि का प्रकाश है। जिसको जाकर वापस इस दुखी संसार में नहीं आते ,वह मेरा परमधाम है।
* इन दोनों श्लोकों में भगवन ने अपना घर परमधाम बताया है।
जिसे अंग्रेज Soul World और मुसलमान अर्ष कहते हैं।
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