Depression in Hindi ,Shokh Karna, Pachtana - What is Repentance
2/11- अशोच्यां अन्वसोचसत्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासून अगतासून च न अनुशोचन्ति पण्डिताः।।
अर्थ :- तू शोक न करने योग्य का शोक कर रहा है तथा ज्ञानियों जैसे वचन बोलता है। पंडितजन मरे हुए और जीने वालों का शोक नहीं करते।
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इस श्लोक में भगवन अर्जुन को कह रहे है कि जो ज्ञानी है , पंडित है वह किसी के मृत्यु होने पर शोक नहीं करते क्योंकि वह तो जानता है की आत्मा कभी नहीं मरती ,यह तो शरीर है जिसकी मृत्यु होती है। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा ले लेती है।
जैसे साँप एक खल त्यागता है और दूसरा ले लेता है वैसे ही आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा ले लेती है। इसमें ज्ञानीजन संदेह नहीं करते और ना ही शोक करते है।
वह तो अनुभव करते है कि इसका इस दुनिया में इतना ही समय के लिए रोल था , इस सृष्टि में इसका इतना ही समय का पार्ट था , जो वह अपना पार्ट को पूरा कर के चला गया है।
जब किसी की मृत्यु होती है तब वह रोता नहीं बल्कि उससे सीखता है , शिक्षा लेता है। और कहा जाता है कि जब कोई मरता है तब उससे सीखो की उसने अपने जीवन में क्या -क्या अच्छे कार्य किये है।
वही भगवन यहाँ अर्जुन से कह रहे कि तू शोक मत कर तू ज्ञानी बन और सिख।
पछताना क्या है ?
जब कोई अपने भूतकाल के बुरे कर्मो द्वारा दुःख भोगता है , तब वह पछताता है की मैंने पहले ऐसा काम क्यों किया जो मुझे आज दुःख भोगना पड़ रहा है। लेकिन यह तो प्रकृति है कि जो जैसा करेगा वैसा ही फल उसे स्वयं मिलेगा।
अपने बुरे कर्मों से पछताना नहीं चाहिए।
उसके लिए भगवन बताते है कि जो ज्ञानी है वह जीने वालों का शोक नहीं करते। यानि जो अपने बुरे कर्मो को याद कर- कर के पछताता है ,अंदर ही अंदर मरता है , वैसा शोक ज्ञानी नहीं करते।
ज्ञानी तो अपने बुरे कर्मो से सीखता है। वह तो जानता है कि आज जो मेरे साथ हो रहा है यह मेरे पिछले कर्मो का प्रालब्ध है। वह सीखता है की आगे अब ऐसी गलती नहीं करूँगा। क्योंकि गलती करके ही तो सीखा जाता है।
बिना गलती के कोई कैसे आगे बढ़ सकता है। वह अपने गलती को भी अच्छा कहता है और उससे सीखता है।
वह अपने अंदर सकारात्मक भाव पैदा करता है। हमेशा अच्छा ही सोचता है। जो उसे आगे बढ़ने में मदद करती है।
वह अपने बुरे कर्मो को बार -बार याद नहीं करता , जिससे उसको पछताना पड़े। जब वह बुरे कर्म उसे याद आते हैं तब वह उस याद से कहता है कि मैंने सही किया क्योंकि मैं तो ज्ञानी हूँ , मैं तो इससे सिख रहा हूँ। और इससे मैं अनुभवी बना हूँ।
और अंत में आपको एक महावाक्य सुनाना हूँ कि - ना दूसरों के अवगुण देखो और ना अपना अवगुण देखो। दूसरों का भी गुण देखो और अपना भी गुण देखो तो यही गुण आपको आगे बढ़ाएगी।
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