नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम बात करेंगे शिव और शंकर के बारे में। बहुत से लोग शिव और शंकर को एक ही मानते है , परन्तु वास्तव में इन दोनों में भिन्नता है यानि ये अलग है। आप देखते है कि दोनों की प्रतिमाये (मूर्तियां ) भी अलग -अलग होती है। शिव की मूर्ति लिंग रूप वही शंकर की मूर्ति शारीरिक आकार वाली होती है।
परमपिता शिव- शिव और शंकर में अंतर
- शिव का अर्थ है कल्याणकारी।
- यह चेतन ज्योतिबिंदु (निराकार ) है और इनका अपना कोई शरीर नहीं है। यह परमपिता है।
- यह ब्रह्मा ,विष्णु , और शंकर के लोक यानि शुक्ष्म देव लोक से भी परे ब्रह्म लोक में वास करते है।
- यह ब्रह्मा ,विष्णु ,शंकर के भी रचयिता है यानि 'त्रिमूर्ति शिव ' है।
- यह ब्रह्मा द्वारा स्थापना ,शंकर द्वारा महाविनाश और विष्णु द्वारा विश्व का पालन करके विश्व का कल्याण करते है।
- शिव सभी आत्माओं के बाप है। धर्मपिताओं के भी बाप शिव है। (किट -पशु -पक्षी ) सब के बाप शिव है।
- शिव जन्म -मरण के चक्र से परे है।
- पुरे ड्रामा में सबसे wonderful part शिव का है।
- शिव त्रिकालदरसी है -तीनो कालों को जानने वाले है परन्तु एकव्यापी है सर्वव्यापक नहीं है।
परम आत्मा शंकर -शिव और शंकर में अंतर।
- शंकर का अर्थ है विनाशकारी।
- शंकर शुक्ष्म शरीर धारी है , इसीलिए शंकर को निर्वस्त्र दिखाते हैं .
- यह महाविनाश का कार्य करते हैं।
- शंकर को कोई भी जन्म नहीं है .
- ब्रह्मा देवता और विष्णु देवता की तरह ये भी परमपिता शिव के बच्चे हैं।
शिव और शंकर को एक क्यों कर दिया है ?
शिव और शंकर को एक इसलिए कर दिया गया है क्यूंकि शिव शंकर के बड़े पुत्र हैं। और कलयुगी पापी दुनिया को सतयुगी पावन दुनिया बनाने में शिव के मददगार बनते हैं ।
जिस तरह शिव का इस रंग मंच पर थोडा सा पार्ट है , वैसे ही शंकर का भी बोहोत थोडा पार्ट है , इसलिए शिव और शंकर भी कह देते हैं , दोनों को एक ही समझ लेते हैं .
शिवरात्रि |
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शिव का जन्मोत्सव रात्रि में क्यों -शिवरात्रि रात्रि वास्तव में अज्ञान , तमोगुण अथवा पापाचार की निशानी है। द्वापरयुग और कलियुग के समय को रात्रि कहा जाता है। कलयुग के अंत में जब साधु ,सन्यासी ,गुरु ,आचार्य सभी मनुष्य पापी हो जाते है, दुखी हो जाते है और अज्ञान निंद्रा में सोये पड़े होते है , जब धर्म की ग्लानि होती है और जब यह भारत विषय -विकारों के कारन वेश्यालय बन जाता है। तब पतित पावन परमपिता शिव इस सृष्टि में दिव्य जन्म लेते है।
इसीलिए अन्य सबका जन्मोत्सव तो ' जन्म दिन ' के रूप में मनाया जाता है परन्तु परमपिता शिव के जन्मदिन को शिवरात्रि (Birth Night ) ही कहा जाता है। यहां चित्र में जो कालिमा यानि अन्धकार दिखाया गया है वह अज्ञान अंधकार और विषय विकारों का प्रतिक है।
ज्ञान सूर्य शिव के प्रकट होने से सृष्टि के अज्ञान अंधकार और विकारों का नाश।
जब इस प्रकार अवतरित होकर ज्ञान सूर्य परमपिता शिव ज्ञान प्रकाश देते है तो कुछ ही समय में ज्ञान का प्रभाव सारे दुनिया में फेल जाता है और कलियुग तथा तमोगुण के स्थान पर संसार सतयुग और सतोगुण की स्थापना हो जाती है और अज्ञान अंधकार का तथा विकारों का विनाश हो जाता है।
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सारे कल्प में परमपिता शिव के एक अलौकिक जन्म से थोड़े ही समय में यह सृष्टि वेश्यालय से बदल कर शिवालय बन जाती है और नर को श्री नारायण पद तथा नारी को श्री लक्ष्मी पद की प्राप्ति हो जाती है। इसीलिए शिवरात्रि हीरे तुल्य है।
तो दोस्तों यह थी जानकारी शिव और शंकर के बारे में। मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको यह जानकारी जरूर मदद करेगी। यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये।
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