नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे कि मन को control कैसे करते हैं? जिसमे हम बात करेंगे -
- मन क्या है ?
- मन का क्या काम है ?
- मन को control कैसे करे ?
- मन क्यों सभी को नाच-नचाता है ?
- मन क्यों अपने अंदर जंजीर लपेट ली है ?
- मन का स्वामी कौन ?
mann ko control kaise kare |
मन को control करने से पहले हमें मन के बारे में जानना चाहिए , कि मन क्या है ? और कैसे काम करती है ?
मन क्या है ?
मन आत्मा की 3 शक्तियों में से एक है। आत्मा की 3 शक्ति है - मन ,बुद्धि ,संस्कार। तो मन आत्मा की सबसे पहली शक्ति है।
मन का क्या काम है ?
मन का काम है सोचना। यह हर पल कुछ ना कुछ सोचता ही रहता है। कभी अच्छा ,कभी बुरा। कभी अच्छे विचार से हंसाता है तो कभी बुरे विचार से रुलाता भी है।
मन का और क्या-क्या काम है ?
मन शरीर की सभी इन्द्रियों का स्वामी है।
शरीर की हरेक इन्द्रियां विषयों की ओर आकर्षित होती है। शरीर की हरेक इन्द्रियां भोग-भोगना चाहती है। जैसे -आँख अच्छे दृश्य देखना चाहता है ,जीभ -अच्छा भोजन खाना चाहती है , ऐसे ही हरेक इन्द्रियां भोग-भोगना चाहती है।
अब मनुष्य को तो भोग-भोगना छोड़ तो नहीं देना चाहिए। लेकिन निराशक्त होकर भोग -भोगना चाहिए। कि ये जो कुछ भी है सब प्रभु की देन है , प्रभु की याद में भोग -भोगना चाहिए। कोई भी इन्द्रियों से कर्म करें तो उसमे प्रभु की याद होनी चाहिए।
और यदि ऐसा नहीं किये तो इन्द्रियों की उत्तेजना बढ़ जाती है ,मन ओर भी चंचल बन जाता है। वह विषयों को भोगने लगता है। और जो जितना भोगी होता है ,वह उतना रोगी भी बनता है। और फिर मन control नहीं हो पाता।
मन को Control कैसे करे ?
मन को control करने के लिए 2 चीजों की जरूरत है।
- अभ्यास
- वैराग्य।
मन को control करने के लिए अभ्यास :-
मन को अपने आत्मा में स्थिर करो , वह वहाँ से भागेगा , उसे फिर लाओ , वह फिर भागेगा , उसे फिर पकड़ो। ऐसा बार -बार करना पड़ेगा।
जैसे - घोडा का नवजात शिशु , वह पल-पल फुदकता रहता है , कोई उसपर सवार होना चाहे , तो वह उसे गिरा देता है। लेकिन सवार दृढ संकल्पी है , तो वह एक दिन घोड़े पर सवारी कर ही लेता है और जैसे चाहे वैसे घोड़े को नचाता है।
उसी तरह अभ्यास करते-करते हमारा मन भी control में आ जायेगा और फिर हम जैसा चाहे वैसा अपनी मन को चलाएंगे।
मन को control करने के लिए वैराग्य -
मन को control करने के लिए आत्मा को ये समझना होगा , कि ये सारे भोग नश्वर है , नस्ट होने वाले हैं। यह तो माया के द्वारा बनाया गया कुछ समय के लिए Pomp & Show (दिखावा ) है। जो जल्द ही ख़त्म होने वाली है।
जितने भी भोग है वह कुछ समय सुख देकर सदा काल के लिए दुःख देने वाले हैं , सभी दुश्मन हैं।
जैसे - एक अच्छा मित्र होता है ,एक बुरा मित्र होता है। जो अच्छा मित्र होता है वह बुरे वक़्त में आपका साथ देता है वहीँ बुरा मित्र आपसे सुख तो बांटता है लेकिन जब दुःख शुरू होता है तो वह किनारा कर लेता है।
वैसे ही मन है , मन सुख तो चाहता है ,लेकिन जब इन्द्रियां कमजोर बन जाती है तो मन सहयोग देना बंद कर देती है और आत्मा को सारी तकलीफ होना शुरू हो जाता है।
मन क्यों सभी को नाच-नचाता है ?
जबतक आप मन को विषयों के आधिन रहने देंगे , तब तक वह आपको नाच-नचाता रहेगा। जबतक आपने मन को खुला छोड़ रखा है तबतक आप माया के मोह जाल में फंसे हुवे हैं।
हरेक वस्तु अपनी ओर आकर्षित करती है - चाहे वह सुन्दर कन्या हो , Internet हो ,शराब हो इत्यादि। अब यदि आपने मन को संभाला नहीं ,तो आप और भी गड्ढे में जाते रहेंगे। आपकी ख़राब आदत और भी ख़राब होते जाएगी। और मन आपको नाच-नचाता रहेगा।
क्योंकि मन ही मान अपमान की ख़ुशी अथवा दुःख भोगता है। मन ही वहम में डालता है। मन ही अपनी खुशियों से ,दुःख से मोह करता है। और मोह की जाल में फंसाकर प्राणी को नाच-नचाते रहता है।
मन क्यों अपने अंदर जंजीर लपेट ली है ?
मन ही अपनी खुशियों से , दुःख से मोह करता है। मन सदैव सुख की चिंता करता है , भोग-भोगना चाहता है। वह अपने भोगों को नहीं छोड़ना चाहता है। चाहे कोई इन्द्रियां कट भी जाये , जैसे - किसी की आँख चली जाये , तो अँधा व्यक्ति अपनी मन की आँखों से भगवान की कल्पना कर सकता है तो सुन्दर स्त्री की भी कल्पना कर सकता है।
अपने भोगों की पूर्ति ना होने पर वह गलत कार्य भी कर सकता है।
ऐसी स्थिति में मन को यह बात बतानी पड़ती है कि सुख-दुःख तो मनुष्य के प्रालब्ध ( कर्मों के फल ) हैं। प्राणी जैसा कर्म करेगा ,वैसा ही फल पायेगा , इसी को प्रालब्ध कहते हैं। भगवान प्रालब्ध नहीं बनाते। जिस नियत से आप कर्म करेंगे ,उसका फल भी आपको जरूर मिलेगा।
मन का स्वामी कौन है ?
अब मन को control करना है , तो कौन करेगा मन को control ? जरूर उसका भी कोई स्वामी होगा। मन का स्वामी है आत्मा। आत्मा बुद्धि के द्वारा मन को control कर सकती है। जिसकी बुद्धि विशाल है ,वह मन के मोह में नहीं पड़ता।
बुद्धि का काम है निर्णय करना -
जैसे - Doctor ने अपने मरीज को खट्टा खाने से मना किया हो ,और मरीज जब इमली देखता है तो मन उसको खाने की इक्षा जाहिर करता है।अब इस अवस्था में बुद्धि को निर्णय लेना पड़ता है कि वह मन की सुने या बुद्धि का उपयोग करके उसे ना खाये।
कई लोग समझते हैं कि यह तो मन को मारना होता है -
लेकिन मैं आपको बता दूँ कि मन कभी मरता नहीं , इससे मन सुधरता है। इससे निर्णय शक्ति ,आत्मा की शक्ति बढ़ती है। ऐसा करने से आप मन के आधिन नहीं बल्कि मन आपके आधिन होने लगती है। और इस तरह आप बुद्धि का प्रयोग करके अपने मन को सुधार सकते हैं और मन को control कर सकते हैं।
और यदि आप अपने मन को control में नहीं कर सकते तो आप मनुष्य नहीं है ,मनुष्य के रूप में जानवर हैं क्योंकि मनुष्य कहा ही जाता है -मन को वश में करने वालों को।
तो दोस्तों यह थी जानकारी कि आप मन को control कैसे करते हैं ,मन क्या होता है मन को सुधारते कैसे हैं और भी मन से जुडी जानकारियां। तो मैं उम्मीद करता हूँ कि इस post के द्वारा आप भी अपने मन के ऊपर control पा लेंगे।
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