विदेशी निवेश किसे कहते हैं?
जब किसी दूसरे देश के द्वारा अपनी देश में अनुमति दी जाती है कि वह अपने देश में आकर के पैसे लगाए इंफ्रास्ट्रक्चर बनाएं कंपनी बनाएं फैक्ट्रियां खोलें ताकि देश में विकास हो सके इसे ही हम विदेशी निवेश कहते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी देश के पास पूरे संसाधन नहीं होते हैं, सभी देश में कुछ ना कुछ कमियां होती है जैसे भारत में पेट्रोल की कमी है, विदेश में खाने की कमी है , तो उसकी पूर्ति के लिए एक देश दूसरे देश को न्योता देता है कि वह मेरे देश में आए और हमारे देश में जो कमी है उसकी पूर्ति करें, इसको भी हम आसान शब्दों में विदेशी निवेश कहते हैं।
यदि भारत की बात करें तो भारत 1990 से विदेशी निवेश के ऊपर बल दे रहा है और यह विदेशी निवेश ही है जिन्होंने भारत को 1990 के दशक में आर्थिक रूप में गिरने से बचाया था।
विदेशी निवेश कितने प्रकार के होते हैं?
विदेशी निवेश दो प्रकार के होते हैं पहला प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और दूसरा पोर्टफोलियो विदेशी निवेश
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किसे कहते हैं?
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी ऐसा निवेश जिसमें जमीन मशीन और बड़ी कंपनियों के ऊपर विदेश के द्वारा निवेश किया जाता हो।
जो विदेशी कंपनियां है वह स्वदेशी कंपनिया के साथ मिलकर आपस में कुछ हिस्सेदारी करके कंपनी को आगे बढ़ाते हैं जिससे कि देश में विकास होता है और देश पैसे कमा पाती है।
उदाहरण के तौर पर आप हीरो होंडा कंपनी के द्वारा समझ सकते हैं कि हीरो जो है वह स्वदेशी कंपनी है, और जो होंडा है वह विदेशी कंपनी है । इन दोनों ने बहुत साल पहले मिलकर के हीरो होंडा कंपनी बनाई थी जिसमें इन दोनों का एग्रीमेंट हुआ था की कुछ शेयर हम आपस में बांट लेंगे और कंपनी को चलाएंगे और कंपनी को आगे बढ़ाएंगे और फिर एक समय सीमा के बाद हम दोनों कंपनियां अलग हो जाएंगे जब हमारा कर्तव्य पूरा हो जाएगा।
इस तरह का निवेश एफडीआई के अंतर्गत आता है और ऐसे निवेश बहुत ही लंबे समय के लिए होते हैं और इसमें दोनों देशों के बीच एक अच्छा संबंध भी बनता है।
पोर्टफोलियो विदेशी निवेश क्या होता है?
इस तरह के निवेश को आप म्युचुअल फंड के द्वारा भी समझ सकते हैं। जिस तरह म्युचुअल फंड में हम कंपनी के किसी भाग को खरीदने हैं , इसी तरह विदेशी निवेशों के द्वारा कंपनी के किसी भाग को खरीद लिया जाता है जिसमें उसकी कुछ परसेंटेज में लाभ की गारंटी दी जाती है।
इस तरह का निवेश ज्यादातर शेयर मार्केट के द्वारा होता है और ऐसे निवेश को (पीएफआई) के अंतर्गत शामिल किया जाता है. .
इस तरह का निवेश सरकारी पेपर बनाने पर किया जाता है और इसमें टैक्स भी लगाए जाते हैं। ऐसे निवेश ज्यादा लंबे समय के लिए नहीं होता है और ज्यादातर ऐसे निवेश में लोग फायदा मिलते ही चले जाते हैं।
आप इसको आसान शब्दों में समझ सकते हैं कि जब विदेशों से भारत के कंपनी के किसी भी शेर को खरीदा जाए तो उसे पोर्टफोलियो निवेश कहा जाता है।
क्या भारत को विदेशी निवेश की जरूरत है?
भारत ने अपने अर्थव्यवस्था को और बेहतर बनाने के लिए कई सारे योजनाओं की शुरुआत की है, जैसे - मेक इन इंडिया और जीएसटी टैक्स लगाना. फिर भी भारत के अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं आया है यह अभी भी मंदिर की चपेट में है।
ऐसा इसलिए क्योंकि आज भी बेरोजगारी और किसानों का आर्थिक विकास ना हो पाना भारत में गरीबी बढ़ना और रोजगार ना मिल पाना।
इसका अन्य एक कारण यह भी है कि बहुत से पूंजी पति लोग एनपीए होने के कारण देश छोड़कर के चले गए हैं वह बैंकों से हजारों करोड रुपए लेकर के इस देश को छोड़कर के चले गए हैं जिसके कारण देश में पैसों की कमी हो रही है और जिसे गरीब लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
ऐसे ही चुनौतियों को दूर करने के लिए भारत में विदेशी निवेश जरूरी है। जैसे - हाल ही में ऐपल ने भारत में अपना कार्यालय शुरू किया है। ऐसे ही विदेशी मोबाइल कंपनी , इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां और मोटर कंपनियां भी भारत में आकर के निवेश कर रहे हैं और भारत को आर्थिक रूप से मजबूत कर रहे हैं।
और इसलिए भी भारत में विदेशी निवेश की जरूरत है क्योंकि यहां पर नए-नए और बड़े-बड़े कारोबार उत्पन्न नहीं हो पा रहे हैं केवल गिने चुने नाम एक दो नाम अंबानी अडानी बिरला टाटा यही चार-पांच प्रमुख कंपनियां है जो उच्च स्तर पर लोगों को नौकरियां दे पा रही है और भारत को मुनाफा दे पा रही है बाकी इसके अलावा सभी छोटे-छोटे कंपनियां हैं जो भारत को उतना ज्यादा फायदा नहीं दे पा रहा है और ना ही नौकरी दे पा रहा है।
विदेशी निवेश के क्या-क्या लाभ है?
विदेशी निवेश के बहुत सारे लाभ है जिनमें से कुछ मैं आपको बता रहा हूं सबसे पहले लाभ है,
कि यहां के लोगों को रोजगार मिलती है ।
दूसरा जो लाभ है कि लोग स्किल बनते हैं लोग विदेश के हुनर को सीख पाते हैं।
तीसरा जो लाभ है कि भारत को टैक्स के रूप में पैसे मिलते हैं और भारत की अर्थव्यवस्था सुधरता है।
चौथा जो लाभ है की ज्ञान का आदान-प्रदान होता है जिससे लोग विदेशी शिक्षा भी सीख पाते हैं आधुनिक शिक्षा सीख पाते हैं।
आज भारत को विदेशों से फाइटर जेट खरीदनी पड़ रही है जिसमें करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं यदि वही फाइटर जेट भारत में बनते तो आज भारत को खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती और फिर भारत भी दूसरे देशों को बेच पाता ।
तो कहने का अर्थ यही है कि जब लोग आपके देश में समान आकार के बनाते हैं वहां पर अपना सेटअप करते हैं तो लोगों को शिक्षा मिलती है लोगों को विदेश का ज्ञान मिलता है जिससे वह खुद से अपने देश में उस चीज का उत्पादन कर पाते हैं और फिर स्वयं से उस चीज का निर्माण कर देश को आगे बढ़ा पाते हैं।
विदेशी निवेश से क्या-क्या हानि होती है?
विदेशी कंपनियों से सबसे ज्यादा हानि यहां के स्वदेशी घरेलू कंपनियों को होती है जो खुद से सामान का निर्माण करते हैं । ऐसे में जब विदेशी कंपनियां आती है तो वह बड़ी तेजी से आगे जाती है और फिर ऐसे घरेलू कंपनियों को पीछे छोड़ जाती है। ऐसे में विदेशी कंपनियों से छोटे कंपनियों को बहुत ज्यादा नुकसान होता है और यह छोटे कंपनियां छोटा ही बनाकर के रह जाती है।
हालांकि विदेशी निवेश से सरकार को बहुत ज्यादा मुनाफा होता है किंतु इससे आम लोग और छोटे-छोटे कंपनियां बहुत ज्यादा प्रभावित होती है इसमें लोगों को रोजगार उतना ज्यादा नहीं मिल पाता और ज्यादातर मशीनों का इस्तेमाल होता है। जिससे भी लोग बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं, और आर्थिक रूप से गरीब होते हैं।
विदेशी निवेश से यह भी खतरा है कि विदेश के लोग ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं और यहां के धन को अपने देश ले जाते हैं और फिर वह वहां पर अपने देश को सुंदर और अमीर बनाते हैं।
भारत में विदेशी निवेश के कुछ नाम
आज ज्यादातर भारत के सरकारी कंपनियों को विदेशी निवेश के अंदर दे दिया गया है जिसमें से प्रमुख नाम है-
कोयला खनन यानी कोल इंडिया , सड़क बनाना भारत में जो रोड बनते हैं वह भी विदेशों को दे दिया गया है.
पर्यावरण नियंत्रण वह भी विदेश के हाथों में है . प्रिंट मीडिया वह भी विदेश के हाथों में. पैट्रोलियम . रिफायनिंग . हवाई अड्डे और फाइव स्टार होटल. चाय का बागान ऐसे कई सारी सरकारी कंपनियों को विदेश के हाथों में दिया जा चुका है।
यहां तक की अब रेलवे को भी विदेशी निवेश के अंतर्गत दे दिया गया है और मेडिकल्स में फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में विदेशी निवेश कर दिया गया है।
हाल ही में एयर इंडिया को भी विदेशी निवेश के अंतर्गत लाने की बात हो रही है।
यदि भारत में विदेशी निवेश के आंकड़ों की बात की जाए तो यह 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर है यानी भारतीय रुपयों में 4 लाख करोड़। और यह 2020 का आंकड़ा है।
जहां देश आत्मनिर्भर भारत की बात करता है वही अंदर ही अंदर यह विदेशी निवेश को बढ़ावा देता है यहां पर आत्मनिर्भर होने की कोई बात नहीं है क्योंकि सारे सरकारी कंपनियों को विदेश के हाथों में दिया जा चुका है और अभी भी दिया जा रहा है ।
अब प्रिंट मीडिया भी हो सकता है कि विदेश के हाथ में हो और कॉलेज भी विदेश के हाथ में हो यहां तक कि हमारे ऑफिसर्स भी विदेश के हाथों में हो ऐसा भी हो सकता है।
इसलिए यह कहना कि आत्मनिर्भर भारत है यह बिल्कुल भी गलत है क्योंकि सारी कंपनियां अभी विदेश के अंतर्गत आ रही है विदेशी निवेश के अंतर्गत आ रही है।
लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि भारत अभी तेजी से सबसे बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था साबित हो रही है और निरंतर सुधार हो रहा है लेकिन इसमें यह ध्यान रखने की बात है कि विदेशी नीति को मजबूत किया जाए और लोगों को ज्यादा से ज्यादा नौकरी दी जाए ताकि भारत के लोगों में भी आर्थिक रूप से सुधार हो ना कि केवल पैसों में सुधार हो बल्कि लोग भी मजबूत बने और भारत के साथ-साथ भारत के लोगों के पास भी धन आए न केवल सरकार के पास धन आए बल्कि भारत के लोगों के पास भी धन आए।
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बैंक की रॉबरी से बचें, safe banking करें।
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