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Soul Is Male Or Female-आत्मा स्त्री है या पुरुष ?

Soul Is Male Or Female-आत्मा स्त्री है या पुरुष ?


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम बात करेंगे कि आत्मा स्त्री है या पुरुष है ? आत्मा को कई लोग पुरुष मानते हैं और कई लोग स्त्री मानते हैं लेकिन सच्चाई क्या है इसके बारे में आज हम जानेंगे। हम आपको कुछ examples भी देंगे जिससे की आपको समझने में आसानी होगी। तो इस post को आप अंत तक पढ़िए आपको पूरी जानकारी आत्मा के स्त्री और पुरुष के बारे में मिल जाएगी।

Soul Is Male or Female -आत्मा स्त्री है या पुरुष ?

आत्मा ना तो स्त्री है और ना ही पुरुष है। ये बात आपको जानके कुछ अजीब लग रहा होगा लेकिन ये सच है। आत्मा जब पुरुष शरीर का आधार लेती है तो आत्मा को पुरुष कहा जाता है और स्त्री शरीर का आधार लेती है तो उसे स्त्री कहा जाता है। आत्मा को हम स्त्रीलिंग और पुर्लिंग के आधार पर नहीं बाँट सकते।

लेकिन कई लोग इसे पुरुष के लिए इस्तेमाल करते हैं तो कई इसे स्त्रीलिंग के लिए इस्तेमाल करते हैं।
जैसे - आत्मा होती है (स्त्रीलिंग ) , आत्मा होता है। (पुर्लिंग ) तो दोनों वाक्यों को सुनने में कोई गलती नहीं लगती है। इससे पता चलता है कि आत्मा को लोग स्त्री भी मानते है और पुरुष भी मानते हैं।

लेकिन गजब की बात ये है कि आत्मा Neutral है। ना ही वो स्त्री है और ना ही पुरुष है।
aatma male or female
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आत्मा को स्त्री और पुरुष किस आधार पर कहा जाता है ?

आत्मा को स्त्री और पुरुष संस्कारों के आधार पर कहा जाता है। आपने कई बार देखा होगा कि कुछ ऐसी औरतें होती है जो पुरुषों के जैसे हाव-भाव करती है और कुछ पुरुष भी ऐसे होते हैं जो औरतों जैसे हाव-भाव करते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें जन्म से वैसे ही संस्कार मिले हैं। और उस संस्कार की वजह से वह अगले जन्म में अपना लिंग बदल लेती है और पुरुष स्त्री बन जाता है और स्त्री पुरुष बन जाती है।

इसके अलावे और भी कई कारन है शरीर के लिंग परिवर्तन के। जीवन भर स्त्री को पुरुष का शरीर आकर्षित करता है और पुरुष को स्त्री का शरीर आकर्षित करता है। और इस आकर्षण की वजह से भी आत्मा हमेशा स्त्री और पुरुष दोनों शरीर धारण करती है।

इसको यदि साफ़ -साफ़ कहें तो एक जन्म आत्मा स्त्री बनती है तो दूसरी जन्म आत्मा पुरुष बनती है। और ये कोई अंधश्रद्धा की बात नहीं है। इस दुनिया में कई लोगों ने अपने पिछले जन्मों के बारे में जाना है जिसमे से 80 % लोगों ने माना है कि मैं पिछले जन्म में दूसरे लिंग का था।

Ex - Barbro Karlen (Swedish लड़की )


आत्मा कितने समय तक एक ही लिंग में रह सकती है ?

तो यहां पर आप देख सकते हैं कि आत्मा अपने संस्कारों की वजह से शरीर को धारण करती है। लेकिन कोई भी आत्मा लगातार ज्यादा से ज्यादा 2 जन्म तक ही स्त्री या पुरुष के शरीर के रूप में जन्म ले सकती है फिर उसको अपना शरीर का लिंग बदलना होता है। ऐसा इसलिए ताकि दुनिया में समानता बनी रहे।

उदाहरण :- पपीते का बीज होता है।  जब उसे जमीन में रोपा जाता है तब पता नहीं होता कि ये male के रूप में जन्म लेगा या female के रूप में। बाद में पता चलता है जब बीज बड़ा होकर वृक्ष बन जाता है। और इस तरह पपीते में समानता बनी रहती है और इसीतरह दुनिया कि हरेक आत्माओं को ये पता नहीं होता कि मैं male के रूप में जन्म लूंगा या female के रूप में।

मृत्यु तक आत्मा के जैसे संस्कार होंगे उनके आधार पर उनको अगला जन्म मिलेगा। यदि किसी पुरुष ने जीवन भर शादी नहीं की और महिलाओं से प्रभावित नहीं हुवा तो हो सकता है कि वह अगला जन्म पुरुष ही ले। इसीतरह महिला भी जीवन भर कुवारी होगी या विद्वा होगी तो हो सकता है कि अगले जन्म वो स्त्री ही बने। ये सब संस्कारों की बात है।


सार :- इस post का सार यही है कि आत्मा ना ही पुरुष है और ना ही स्त्री है। आत्मा कभी स्त्री के शरीर को धारण करती है तो कभी पुरुष के शरीर को धारण करती है। आत्मा लगातार 2 जन्म एक ही लिंग के रूप में रह सकती है फिर उसे अपना लिंग बदलना होता है। आत्मा अपने जीवन भर के संस्कारों की वजह से लिंग को बदलती है। यदि कोई व्यक्ति चाहे की मैं लगातार पुरुष मैं ही जन्म लू तो ये नहीं हो सकता।

तो मेरे भाइयों ये थी जानकारी कि आत्मा स्त्री है या पुरुष है। मुझे उम्मीद है कि आपको ये जानकारी अच्छी लगी होगी। यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये।


और इस post को अपने दोस्तों तक जरूर share करें।
अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत -बोहोत धन्यवाद। 
Aatma Kaisa Dikhta Hai

Aatma Kaisa Dikhta Hai


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे आत्मा के रूप के बारे में कि आत्मा कैसा दीखता है ? आत्मा का रंग क्या है ? आत्मा को हम कैसे देख सकते हैं ? आत्मा का क्या आकार है ? और भी कुछ नई जानकारी आत्मा के बारे में।
इस पोस्ट से पहले हमने शरीर में आत्मा कहां है ? इसके बारे में जाना था और आज हम जानेंगे आत्मा के रूप के बारे में। तो पढ़ते रहिये और जानते रहिये अपने आत्मा के बारे में।

aatma kaisa dikhta hai
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आत्मा कैसा दीखता है ?

हम आपको कोई अंधश्रद्धा के बारे में नहीं बताएँगे बल्कि प्रूफ के साथ बताएँगे और कुछ उदाहरण भी देंगे जिससे की आपको आसानी से समझ में आ सके।

आज तक किसी ने आत्मा को अपने आँखों से नहीं देखा है इसका मतलब ये नहीं होता कि आत्मा होती ही नहीं है आत्मा होती है और उनको देखा भी जा सकता है।
जैसे वायुमंडल में छोटे-छोटे कीड़े होते हैं जिन्हे हम अपने आँखों से नहीं देख पाते उसे देखने के लिए हमें microscope की जरूरत होती है वैसे ही आत्मा को हम अपने आँखों से नहीं देख सकते , वह इतनी छोटी है कि उसे microscope भी नहीं देख सकता उसे देखने के लिए हमें तीसरे आँख की जरूरत होती है।

अब आप कहेंगे कि ये हम तीसरा आँख कहाँ से लाएंगे ये practical नहीं है क्योंकि सिर्फ देवी-देवताओं को तीसरा आँख दिखाया जाता है ना की मनुष्यों को। लेकिन मैं बताना चाहता हूँ कि तीसरा आँख आपके पास भी है तब आप क्या कहेंगे ? तीसरा आँख कोई सच का आँख नहीं होता बल्कि ज्ञान का आँख होता है जिसे हर व्यक्ति अपने ज्ञान के अनुसार उसे अनुभव कर सकता है।

तो वो ज्ञान मैं आपको बता रहा हूँ जिससे कि आप अपने तीसरे आँख से आत्मा को देख पाएंगे।

आत्मा का रूप क्या है ?

मैंने अपने पिछले post में आपको बताया था कि आत्मा निराकार है इसका मतलब हम आत्मा को देख नहीं सकते। लेकिन आत्मा निराकार तो है लेकिन वो इतना शुक्ष्म है कि उसे निराकार ही समझा जाता है। जहां तक आत्मा के रूप की बात आती है तो वो अति शुक्ष्म ज्योतिबिंदु है। वह atom से भी लाखों गुना छोटी है इसीलिए कोई उसे देख नहीं सकता।

और एक वजह है कि वो ज्योति बिंदु है यानि वो ज्योति (light ) है। वह एक शुक्ष्म light है जो हर जगह जा सकती है दिवार के भी पार जा सकती है, उस light को कोई भी रोक नहीं सकता है।
तो आप समझ गए होंगे कि आत्मा को लोग निराकार क्यों कहते हैं और उसका रूप क्या है।

आत्मा का क्या रंग है ?

जहां तक आत्मा के रंग की बात आती है तो वो सफ़ेद है। ऐसा इसलिए क्योंकि आत्मा पवित्र और शांति प्रिय है।
जिस तरह पवित्रता को और light को सफ़ेद रंग से दिखाते है उसी तरफ आत्मा एक सफ़ेद point light की तरह है। किसी भी वस्तु की पहचान के लिए रंग और रूप की जरूरत होती है तो मुझे अब लगता है कि आत्मा के रंग और रूप के बारे में आपको पता चल गया होगा।

रंग - सफ़ेद ,
रूप -ज्योतिबिंदु।

आत्मा = सफ़ेद ज्योतिबिंदु।


आत्मा को हम कैसे देख सकते हैं ?


यदि आप आत्मा को देखना चाहते हैं तो आपको अपना तीसरा नेत्र खोलना होगा यानि आपको अपने अंदर ज्ञान की प्रकाष्ठा लानी होगी। जैसा कि आपको पता चल गया कि आत्मा सफ़ेद ज्योतिबिंदु है , तो अब आप सभी को सफ़ेद ज्योतिबिंदु समझेंगे तो धीरे-धीरे practice बढ़ने से सभी लोग आपको आत्मा ही दिखाई देगा जिससे की आप उसके संकल्पों को पढ़ पाएंगे।

और जहां तक बात आती है कि अपने शरीर के आँखों से देखने की तो वो नहीं हो सकता कोई भी इंसान अपने आँखों से आत्मा को नहीं देख सकता। यदि कोई व्यक्ति अपनी आँखों से आत्मा को देखने की बात करता हो तो वह झूठ बोल रहा है।

Proof :- जब कोई औरत गर्भ धारण करती है तो 3 से 4 महीने उसे गर्भ तैयार करने में लग जाते हैं और 3-4 महीने के बाद आत्मा की गर्भ में प्रवेशता होती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है तब माँ को अनुभव होना शुरू हो जाता है कि गर्भ में कोई आ गया है। इससे साबित होता है कि आत्मा शरीर के अलग कोई चीज है।

Proof 2 :- सभी धर्म वाले भगवान को निराकार मानते हैं। तो आप बोलिये कि सांप का बच्चा  कैसा होगा ? हांथी का बच्चा कैसा होगा ? मनुष्य का बच्चा कैसा है ? उसी तरह आत्मा का बच्चा कैसा होगा ?
आप कहेंगे सांप का , हांथी का बच्चा सांप और हांथी जैसा ही होगा उसी तरह मनुष्य और आत्मा का बच्चा भी मनुष्य और आत्मा के जैसा ही होगा।

भगवान निराकार है तो भगवान का बच्चा भी निराकार ही हुवा। ये बात भी धर्मों के अनुसार साबित हो जाती है।
हिन्दू धर्म के लोग देवी-देवताओं को मानते हैं लेकिन वह उतने पुराने हैं कि सब भूल गए हैं। वह पूजा तो करते हैं निराकार की लेकिन जानते नहीं है।

शिवलिंग का पूजा करते हैं :- दरहसल शिवलिंग का पूरा नाम - शिव ज्योतिर्लिंग है। यानि ज्योति का लिंग। light का लिंग। यहां पर भी आप देख सकते हैं कि हिन्दू भी निराकार को मानते हैं। लेकिन हिन्दू अलग हैं वो निराकार के साथ साकार को भी मानते हैं। यानि निराकार + साकार = शिव ज्योतिर्लिंग।

शंकर में जो तीसरा नेत्र है वो निराकार की यादगार में दिखाया जाता है जिसे सभी शिव नेत्र कहते हैं और शिवलिंग में भी बिंदी को निराकार की यादगार में दिखाया जाता है।  सोमनाथ के मंदिर में उसी निराकार की यादगार में कोहिनूर हिरा को लगाया गया था जिसे मुसलमान और फिर बाद में अंग्रेज अपने साथ ले गए।

यदि अन्य धर्मों को भी पता होता कि ये निराकार की भी पूजा करते हैं तो वो सायद मंदिरों को नहीं लुटते। तो यहां से ये साबित हो जाता है कि हरेक धर्म के लोग निराकार को मानते हैं और निराकार भगवान का बच्चा भी निराकार ही होता है। और इस तरह आत्मा भी निराकार ज्योति बिंदु स्वरुप है।

तो भाइयों ये थी जानकारी कि आत्मा कैसा दीखता है। मुझे उम्मीद है कि आपको ये जानकारी जरूर पसंद आयी होगी। यदि आपका कोई सवाल है या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये।


और इस post को अपने दोस्तों तक जरूर share करें ताकि और लोगों तक ये जानकारी पहुँच सके।
अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत-बोहोत धन्यवाद। 
Sharir Me Aatma Kaha Rahti Hai

Sharir Me Aatma Kaha Rahti Hai


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज फिर से हम अध्यात्म के तरफ बढ़ते हैं। अध्यात्म मैंने इसलिए कहा क्योंकि इसमें भी एक राज़ है जिससे की हमें पता पड़ता है कि आत्मा इस शरीर में कहाँ रहती है।
शरीर में आत्मा को जानने के लिए हम अध्यात्म और विज्ञान दोनों के आधार पर आपको बताएँगे। हम आपको कुछ proof बताएँगे और कुछ fake news के बारे में भी बताएँगे। तो आप इस post को पढ़िए और कुछ नया आत्मा के बारे में जानिए।
sharir me aatma kaha rahti hai
sharir me aatma kaha rahti hai
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आध्यात्म का मतलब।

अधि = अंदर
आत्म = आत्मा के।

तो आध्यात्म का मतलब हो जाता है आत्मा के अंदर की जानकारी। हम आध्यात्म के बारे में आज नहीं बात करेंगे लेकिन इसे एक ढाल के रूप में प्रयोग जरूर करेंगे। क्योंकि यदि हम आध्यात्म का सहारा नहीं लेते हैं तो फिर आत्मा शरीर में कहा है इसको जानना मुश्किल हो जाता है।

शरीर में आत्मा कहाँ रहती है ? अध्यात्म के नजरिये से।

यदि आप किसी भी धर्म को मानाने वाले हो या धर्म को ना भी मानने वाले हो तो भी आध्यात्म बताता है कि हरेक मनुष्य के अंदर आत्मा होती है जो की शरीर को control करने वाली होती है उसे order देने वाली होती है।

आत्मा को सभी धर्म वाले मानते हैं चाहे वो हिन्दू हो ,मुस्लिम हो ,सिक्ख हो ,या क्रिस्चियन हो। भले ही वो अलग-अलग नाम से उसे बुलाते है :-
जैसे :- हिन्दू =आत्मा , मुस्लिम = रूह , क्रिस्चियन = soul

अब इससे तो साफ़ हो जाता है कि हरेक धर्म वाले आत्मा को मानते हैं लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आत्मा शरीर में कहाँ रहती है ? और कैसे वो शरीर को control करती है , और कैसे order देती है ?

तो इसका जवाब है कि शरीर में आत्मा दोनों भोरों के बिच में होती है। आँख के ऊपर जो दोनों भोरें हैं उनके बिच में आत्मा रहती है। जहां पर मताये बिंदी लगाती है और पुरुष तिलक लगाते हैं।

दरहसल ये बिंदी और तिलक पुराने लोग आत्मा के निसानी के लिए ही लगाते थे , जिससे की सभी एक दूसरे को आत्मा की दृष्टि से देखे और सभी में समानता की भावना पैदा हो। लेकिन समय के बीतते ये ज्ञान लुप्त हो गया और लोग सिर्फ style के लिए बिंदी और तिलक लगाने लगे।

Fake News :- कई लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि आत्मा दिल में रहती है। परन्तु यह मान्यता झूठी साबित हो चुकी है। जब से विज्ञान ने प्रगति ली है आज हजारों दिल के मरीज अपना ह्रदय परिवर्तन (heart transplant) करते हैं और उनकी मौत नहीं होती है। इससे यह साबित हो जाता है कि आत्मा दिल में नहीं रहती है।
उदाहरण :- Hvovi Minocher Homji, Jeff Carpenter.

अब बात करते हैं कि धर्मों के लोग क्या मानते हैं ? वे भी आजतक अंधविश्वास में जी रहे थे कि आत्मा दिल में होती है चाहे वो हिन्दू हो ,मुस्लिम हो या और कोई धर्म के हो। ये अज्ञानता सभी में भरी है की आत्मा दिल में होती है ऐसा इसलिए भी क्योंकि उन्होंने अपना धर्म शास्त्र को समझना छोड़ दिया है। अपने धर्म शास्त्र को तो सभी पढ़ते है लेकिन उसमे लिखी गहराइयों को नहीं समझ पाते।

ऐसा मैं इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि भगवतगीता में ही लिखा हुवा है कि आत्मा दिल में नहीं बल्कि दोनों भोरों के बिच में होती है लेकिन  आज के पंडित लोग सिर्फ तोते की तरह शास्त्रों को रटना जानते हैं उसके क्या अर्थ हैं इससे उनका कोई वास्ता नहीं होता है इसीलिए ये ज्ञान लुप्त हो गया है।

भगवतगीता 8/10 श्लोक :-
 प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव।
भ्रुवोर्मध्ये प्रणमावेश्य सम्यक स तम परं पुरुषमुपेति दिव्यम।।

इसका मतलब होता है कि जब भी कोई पुरुष (व्यक्ति) मरने की अंतिम स्थिति में हो तो वो  भक्ति भाव से और योग बल से अपने दोनों भोरों के बिच में आत्मा को स्थापित हुवा देखकर प्राण त्यागता है तो वो पुरुष परमात्मा को प्राप्त करता है।

इससे तो ये बात साबित हो जाती है कि भगवान ने भी आत्मा के रहने का स्थान दोनों भोरों के बिच में ही बताया है। भले ही आज के पंडित -विद्वान इस बात को ना जानते हो।


शरीर में आत्मा कहाँ रहती है ? विज्ञान के नजरिये से।

विज्ञान मानता है कि आत्मा जैसी चीज नहीं होती है। उनका मानना है कि शरीर ऊर्जा (energy ) से चलती है ना की आत्मा से। वह बुद्धि (brain ) को शरीर चलाने वाला मानती है। उनके अनुसार प्रकृति ने उन्हें बनाया है और जितने भी जीव-जंतु हैं वे प्रकृति की देन है। Bacteria से life की सुरुवात हुई और आज लाखों जिव-जंतु तक पहुँच चुकी है।

क्या आपको उनकी बात झूठ लगती है ? मुझे झूठ नहीं लगती। ऐसा मैं इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि वो भी उन्ही शास्त्रों की बात कह रहे हैं तो हम सभी भूल गए हैं।
हम सभी को tv में आत्मा को शरीर के तरह ही दिखाया गया है इसीलिए हमारी सोच (mentality) उसी तरह ही बन गयी है। लेकिन यदि आपने अपने धर्म शास्त्रों को अच्छे से पढ़ा होगा तो वहाँ पर आत्मा को एक चैतन्य शक्ति के रूप में दिखाया गया है। यानि आत्मा एक जीवित ऊर्जा (living energy ) है ना की कोई शरीर है। इसीलिए आत्मा को निराकार कहा जाता है। यानि वो इन आँखों से नहीं दिखाई देता।

आत्मा की ही energy की वजह से शरीर में खून का बहाव होता है और जब आत्मा शरीर से निकल जाती है तो वो खून का बहना रूक जाता है और जीवन मृत्यु में बदल जाती है।
जब आप शरीर से या बुद्धि से कोई hard काम करते हैं तब आपकी energy कम हो जाती है। आपको कमजोरी जैसा महसूस होता है। तब आप आराम करते है और भोजन खाते हैं तो आपकी energy वापस आ जाती है।

तो यहां पर ध्यान देने वाली बात है कि आत्मा की energy मन और बुद्धि को चलाती है जैसा की विज्ञान कहते हैं कि बुद्धि शरीर को control करती है दरहसल वो आत्मा की energy होती है जो शरीर को control करती है और उसे order देती है। वहीँ खाने से जो energy मिलती है वो शरीर को चलाती है।

आत्मा की  energy की कोई सिमा नहीं होती है। आत्मा की energy कम होने से लोग पागल भी हो सकते हैं और ज्यादा होने से महात्मा बुद्ध भी बन सकते हैं।

तो यहां भी विज्ञान से अनुसार ये बात साबित हो जाती है कि आत्मा होती है। भले ही उनको इसके बारे में पता ना हो। और वो दोनों भोरों के मध्य में होता है ये आध्यात्म के द्वारा पता चल जाता है।

Fake News :-  कई लोग हमेशा कहते रहते हैं कि scientist ने एक मरते हुवे युवक को सीसे के box में बंद कर दिया था और पुरे तरह से cover कर दिया था। और जब वो मरता है तब सीसे में एक छोटी सी छेद हो जाती है।
लेकिन ये experiment लोगों के द्वारा फैलाया गया हवा है (झूठ है ) .

दरहसल आत्मा निराकार है और वो कहीं भी पहुंचवाला है। यदि बिच में दीवाल भी हो तो भी वो पहुंचा जा सकता है।

Experiment 1 :-  अपने आत्मा की energy को बढ़ाने के लिए आप अपने दोनों भोरों के बिच में आत्मा को star की तरह चमकता हुवा देखने की practice करें। कुछ ही दिनों में आपको result दिखना शुरू हो जायेगा।

Experiment 2 :- आत्मा दोनों भोरों के बिच में है ये पता करने के लिए - देखें कि जब किसी व्यक्ति के शरीर में  बल्दूख की गोली चलायी जाती है तो वह व्यक्ति के जीवित रहने के chances होते हैं वहीँ यदि उसे दोनों भोरों के बिच में चलाई जाये तो वो वहीँ मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। तो इससे ये बात साबित हो जाता है कि आत्मा दोनों भोरों के बिच में रहती है ना की शरीर में।

तो दोस्तों इस post से हमें ये पता चल जाता है कि शरीर में आत्मा कहाँ रहती है और कैसे वो शरीर को चलाती है। मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको ये जानकारी मदद करेगी और फायदा पहुंचाएगी।


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अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत-बोहोत धन्यवाद।
भगवान सर्वव्यापी है या एकव्यापी ?

भगवान सर्वव्यापी है या एकव्यापी ?


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे भगवान के सर्वव्यापक होने या एकव्यापक होने के बारे में। और यह भी जिनेंगे कि भगवतगीता में इसके विषय में क्या कहा गया है। भगवान सर्वव्यापी है या एकव्यापी है।

bhagwan sabhi jagah hai ya nahi
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सर्वव्यापी का अर्थ 

सर्वव्यापी का अर्थ होता है , जो हर जगह है , पत्थर -ठीठर हर जगह। भगवान को सर्वव्यापी कहने का अर्थ है ,भगवान भी सभी जगह है , पत्थर -ठीठर में भगवान है। यह बात बोहोत अच्छी रीती ध्यानपूर्वक सोचना चाहिए कि यदि हर जगह भगवान है :-
तो हर जगह सुख -शांति होनी चाहिए , क्योंकि भगवान को दुःख हर्ता सुखकर्ता कहा जाता है

भगवान सर्वव्यापी है या एकव्यापी ?

जैसे लोग कहते है -भगवान सर्वव्यापी है , कण -कण में भगवान है , तो ये बात सुनने में तो अच्छा लगता है लेकिन हज़म नहीं होती है। लोग पत्थरों को , पेड़ों को भगवान मानकर पूजते हैं , उपवास करते है, और ना जाने क्या -क्या करते हैं। लेकिन जब उनसे पूछा जाये , तब वह कुछ नहीं बोल पाते।

जैसे - उपवास , उप =निकट, वास =रहना यानी भगवान के नजदीक रहना , तो वह खाना नहीं खाने को उपवास समझ लेते है।

तो उसी तरह भगवान सभी जगह नहीं है , अगर होती तो पूजा - पाठ करने की दरकार नहीं होती। सभी जगह तो भगवान है तो फिर अलग से मंत्र पढ़कर क्रियाक्रम क्यों किया जाता है ?

पहले इस्लामी भी मानते थे :- कि खुदा अर्श (ऊपर ) में रहता है फर्स (नीचे )नहीं रहता है।
लेकिन अब वे भी कहते हैं कि जर्रे -जर्रे में खुदा है। अरे - खुदा का तो अर्थ ही यही होता है " कि जो खुद आये तो उसे खुदा कहते हैं " और उसी को सर्वव्यापी कह दिया।

जब खुदा है ही सब जगह -तब 5 बार पुकारने की क्या जरूरत है , जो सामने होता है उसे पुकारने की जरूरत  होती है क्या ? उसे तो धीरे से आवाज़ लगाओ तो वह हाज़िर हो जाता है।

ईसाई भले कहते हैं , God is one , God is light , Godfather लेकिन वह भी मानते है कि (God is everywhere ) भगवान सभी जगह है।
अरे ! जिसे father कहते हैं - वह सब जगह कैसे हो सकता है। क्या आपके इतने सारे father है ?
ये क्या बात फैला दी दुनिया में , भगवान को पत्थर -ठिठर में ढकेल दिया है , जैसे भगवान को गाली देते है।
ये भी जाने :-


भगवान को सर्वव्यापी किसने बनाया ?

जब से संन्यासी आए तब से यह ज्ञान चारों तरफ फैला कि भगवान सर्वव्यापी है , पहले सब धर्म के लोग भगवान को एकव्यापी ही मानते थे ,संन्यासियों ने भगवान को चारों तरफ खोजा , जब कहीं नहीं मिला तब उन्होंने कह दिया भगवान सर्वव्यापी है। शिवोअहं। मैं ही - हम ही शिव है , हम ही भगवान का रूप हैं आओ मेरी पूजा करो।
और लोग आज भी उनकी पूजा कर रहे हैं , उन्हें भगवान मानते हैं।

ये सब करनी संन्यासियों के धर्मपिता शंकराचार्य की है - जिन्होंने सारे शास्त्रों का खंडन करने के बाद गलत अर्थ निकाला। उन्होंने "एको ब्रह्म दुतियो ना अस्ति " का गलत अर्थ समझा , उन्होंने इसका अर्थ अपने ऊपर ले लिया और कह दिया इस दुनिया में हम ही ब्रह्म हैं ,हम भी ब्रह्म ,तुम भी ब्रह्म , "आत्मा सो परमात्मा " का उल्टा ज्ञान सारे विश्व में फैला दिया। और सभी धर्मो का खंडन कर दिया।

दरहसल इसका अर्थ होता है :- दुनिया में एक ही (भगवान ,GOD ,अल्लाह) है और कोई दूसरा नहीं है। इसीलिए God is one , अल्लाह ताला ,त्वमेव माता च पिता कहा जाता है।

आत्मा सो परमात्मा :- यह बात झूठी है , हरेक आत्मा में परमात्मा नहीं है , यदि यह सत्य है ,तो आज लोग इतने मार -काट कर रहे हैं ये क्यों कर रहे हैं। परमात्मा भी मार -काट करता है क्या ? इज़्ज़त लुटता है ? चोरी -डकैती करता है क्या ?
यदि आत्मा सो परमात्मा यह बात सत्य है , तो कुत्ते -बिल्ले सभी को बाप कहना चाहिए। Godfather कहते है ना भगवान को , तो कुत्ते -बिल्ले को Godfather क्यों नहीं कहते -उन्हें भी बाप कहिये ना।


भगवान एकव्यापी है -भगवतगीता 

वास्तव में (भगवान ,GOD ,अल्लाह) एक है , और हम सभी आत्माओं का बाप है। और वह एकव्यापी है। सर्वव्यापी नहीं है।
                            इसीलिए गीता में कहा हुवा है :-

ना तद भास्यते सूर्यो ना ससांको ना पावकः। 
 यद् तद गत्वा ना निवर्तन्ते ताड़ धाम परम मम।। (15 /6 )

इसका मतलब है -जहां पर सूर्य ,चंद्र ,अग्नि का प्रकाश नहीं पहुँच सकता , जहां पर आत्माये शरीर के साथ नहीं जा सकती ,वह मेरा परमधाम है।

यहां पर तो भगवान ने अपने रहने का स्थान परमधाम बता दिया है ,तो वह सर्वव्यापी कैसे हो सकता है। इसीलिए हरेक धर्मपिता अपनी उंगली ऊपर किये हुवे दिखाते हैं , कि भगवान अपने घर परमधाम में है। भले उनकी नज़र अपने हरेक बच्चे में है और हरेक बच्चा उनको याद करता है। लेकिन वह सर्वव्यापी नहीं है। वह ब्रह्मा ,विष्णु शंकर में प्रवेश करके अपना कार्य करते है तो त्रिमूर्ति शिव कहे जाते है। और इसीतरह वह एकव्यापी है - सर्वव्यापी नहीं है। आप खुद सोचिये।

Om Shanti Kya Hai? ॐ शांति की जानकारी

Om Shanti Kya Hai? ॐ शांति की जानकारी


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे ॐ शांति के बारे में। कि ॐ शांति क्या है ? ॐ शांति का मतलब क्या होता है ? इसकी सुरुवात कब और कैसे हुई ? ॐ शांति का इतिहास क्या है ? और वर्तमान समय में इसकी स्थिति क्या है ?

तो यदि आप भी ॐ शांति के बारे में जानना चाहते है तो ये जानकारी सिर्फ आपके लिए है। आप इसे अंत तक जरूर पढ़े।

om shanti kya hai
om shanti kya hai


ॐ शांति का मतलब ?

ॐ शांति का मतलब होता है कि "मैं आत्मा ज्योतिबिंदु शांत स्वरुप हूँ "
जब भी हम एक दूसरे से मिलते है तो "ॐ शांति " कहते हैं। इससे हम एक दूसरे के प्रति आत्मिक भाव को दरसाते है कि हम सभी आत्माएं है। और आपस में भाई -भाई हैं। भले ही शरीर से हम स्त्री हो ,दूसरे जाती ,धर्म के हो लेकिन आत्मिक भाव से हम सभी भाई -भाई हैं।

लोग यूँ ही कह देते हैं - हिन्दू ,मुस्लिम ,सिक्ख ,ईसाई आपस में हम भाई -भाई। लेकिन कोई पूछे कि कैसे हम भाई -भाई हैं ? तो फिर जवाब नहीं दे पाते।
तो इसका जवाब है कि आत्मिक दृस्टि से हम सभी भाई -भाई है और यही ॐ शांति का मतलब है।


ॐ शांति क्या है ? ॐ शांति की जानकारी। 

ॐ शांति सिर्फ एक सत्संग नहीं है। यह गलतफैमी नए -नए लोगों में होती है। ओर सत्संगों की तरह वह इसे भी समझते हैं। लेकिन यह सिर्फ सत्संग नहीं है अपितु यह "यज्ञ " है।

और इस यज्ञ का नाम है :- राजसूय अश्वमेघ अविनाशी रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ।
यह यज्ञ अधिक से अधिक 100 वर्षों का है जिसकी सुरुवात स्वयं परमपिता शिव करते हैं और जिसमे सारी दुनिया की आहुति दी जाती है।

ॐ शांति की सुरुवात कैसे हुई ?

(अधिक लम्बा ना हो जाये इसीलिए यह जानकारी संक्षिप्त में है। )
इसकी सुरुवात 1936 में हुई। कलकत्ते में परमपिता शिव ने ब्रह्मा (दादा लेखराज ) में प्रवेश करके इस यज्ञ की सुरुवात की।
पहले दादा लेखराज को तरह -तरह के साक्षात्कार होते थे , वे उन साक्षात्कारों को नहीं समझ पाते थे , तो उन्होंने अपने 12 गुरुओं से पूछा , उनको समाधान नहीं मिला। फिर वे कलकत्ता गए अपने भागीदार के पास -वहाँ से उनको समाधान मिला।

और यह पता चला कि - इस दुनिया का अंत अब निकट है , नई दुनिया सतयुग की स्थापना होने वाली है जिसकी स्थापना की जिम्मेवारी मुझे (दादा लेखराज ) को मिली है।

वे ही सतयुग के प्रथम कृष्ण बनेंगे। atom बॉम्ब की विभीषिका से सारी दुनिया विनाश को पायेगी। सभी आत्माएं धर्मराज की सजा खाकर -पतित से पावन बनकर अपने घर परमधाम जाएगी।

कुछ श्रेष्ठ आत्माओं का शरीर बर्फ में दब जायेगा। फिर विनाश के बाद , आत्माएं परमधाम से वापस आकर बर्फ में दबे शरीरों में प्रवेश करेंगी और इसी तरह सतयुग नई दुनिया की सुरुवात होगी।
जहां प्रकृति सर्वगुण संपन्न और आत्माएं 16 कला सम्पूर्ण होगी।


ॐ शांति का इतिहास?

कलकत्ते में साक्षात्कारों का पता पड़ने के बाद वे वापस अपने घर सिंध हैदराबाद आ गए। (जो अभी पाकिस्तान में है ) पहले इस यज्ञ का नाम ॐ मण्डली था। लोग ॐ -ॐ ध्वनि का उच्चारण करते थे। कई लोगों को साक्षात्कार भी होता था।

बताया जाता है कि सुरुवात के 10 साल इस यज्ञ को incognito (बाहरी दुनिया से अलग ) - गुप्त रखा गया। जिसमे लोग ध्यान में जाते थे और प्यू की वाणी चलती थी ( जिस तरह अभी मुरली चलती है )

और परमपिता शिव अन्य कई बच्चों में भी प्रवेश करते थे और प्यू की वाणी चलाते थे और ब्रह्मा बाबा लिखते थे।
(मुरली पॉइंट - ऐसे ऐसे बच्चे थे जो  मम्मा बाबा को भी drill कराते थे teacher हो बैठते थे ,और यह बैठ लिखते थे। )

फिर 1947 में ,देश आज़ाद होने के बाद यह संगठन करांची आ गया। और फिर 1951 में माउंट आबू राजस्थान में स्थापित हो गया। तब से यह यज्ञ विस्तार तो पाते जा रहा है। 1969 में दादा लेखराज (ब्रह्मा ) का शरीर छूट जाता है। और दीदी - दादियां यज्ञ के संचालक बनते है।

मुख्य बात - मृत्यु होने के बावजूद ब्रह्मा की आत्मा गुलज़ार दादी में प्रवेश करके direction देते है अव्यक्त वाणी चलाते है।  और इसे सुनने के लिए हज़ारों की संख्या में लोग देश -विदेश से आते हैं। इसे live tv के द्वारा भी दिखाया जाता है। तब ये यह यज्ञ इसी तरह चल रहा है।


ॐ शांति की स्थिति -वर्तमान समय में। 

वर्तमान समय में परमपिता शिव गुप्त रूप में कार्य कर रहे हैं। जिसके बारे में अव्यक्त वाणी में कहा -

पहले बाबा ब्रह्मा में प्रवेश किये , फिर गुलज़ार में किये। अब किसमे प्रवेश किये ? जिसमे प्रवेश करना था उसमे किये। .... बाबा की सिर्फ आवाज़ जानी चाहिए ,किसका तन लिया यह प्रत्यक्ष नहीं होना चाहिए क्योंकि तीनो नदियों में एक नदी को गुप्त दिखाया है ना। ( अव्यक्त वाणी - 23 . 07 . 2017 )

तो शिव का पार्ट अभी भी चल रहा है। स्थापना ,पालना ,विनाश का कार्य अब पूरा होने वाला है। पुरुषार्थ का समय अब ख़त्म हुवा।
ऐसे देश -विदेश में हज़ारों ॐ शांति के आश्रम हैं - जहां पे जाकर आप राजयोग का ज्ञान ले सकते हैं और अपने जीवन को हिरे तुल्य बना सकते हैं।
ॐ शांति। धन्यवाद।

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3 लोक कौन से हैं ? मनुष्य ,सुक्ष्म, ब्रह्म लोक।

3 लोक कौन से हैं ? मनुष्य ,सुक्ष्म, ब्रह्म लोक।


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे 3 लोकों के बारे में। यही कि 3 लोक कौन से है ? वहाँ पर कौन रहते है ? और उनतक कैसे पहुंचा जाये। 
तो इस post की सुरुवात करते है और जानते है मनुष्य लोक ,सुक्ष्म लोक और ब्रह्मलोक के बारे में। 


3 lok kaun se hai
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1. साकार मनुष्य लोक। स्थूलवतन। 

नाम से ही पता चल जाता है कि जहां मनुष्य आत्माये रहते है तो उस स्थान को मनुष्य लोक कहते है। यहां पर मनुष्य के साथ -साथ जानवर , पशु -पक्षी इत्यादि जीव रहते है। जिसे पृथ्वीलोक भी कहते है। 
इस लोक में जीव 5 तत्वों से बनते है - जिसे - जल ,वायु ,अग्नि ,पृथ्वी ,आकाश कहते है। जिसे हम प्रकृति भी कहते हैं। यहां के लोग जन्म -मरण के चक्र में आते है। 
यहां सुख -दुःख, रात -दिन ,जन्म -मृत्यु से जीवन चलता है। 

ये सृष्टि आकाश तत्व के अंश मात्र में है ( आकाश इतना बड़ा है कि उसके सामने अंश के बराबर है ) . इसे सामने त्रिलोक के चित्र में उलटे वृक्ष के रूप में दिखाया गया है। क्योंकि इसके बीजरूप परमपिता परमात्मा ऊपर रहते हैं। 

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2. सुक्ष्म लोक - देव लोक। सुक्ष्मवतन 

यह लोक , मनुष्य लोक के तरागमन के पार ( solar system के पार ) जहां प्रकाश ही प्रकाश है। 
उस लोक में ब्रह्मा ,विष्णु ,शंकर की अलग -अलग पूरियां है। इन देवताओं के शरीर हड्डी -मांसादि से नहीं बल्कि प्रकाश के है। जिसे दिव्य सुक्ष्म शरीर भी कहते है। यहां दुःख अथवा अशांति नहीं होती। 
इन्हे दिव्य (ज्ञान) नेत्र के द्वारा ही देखा जा सकता है। 
यहां संकल्प ,क्रियाये ,बात -चित होती है लेकिन आवाज नहीं होती। 

यहां सभी बातें बेहद में - यानि आत्मा की stage के बारे में कहा गया है। 

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3. ब्रह्मलोक , परलोक , परमधाम या मूलवतन। 

इन लोकों के भी पार एक और लोक है जिसे - ब्रह्मलोक , परलोक , परमधाम ,मूलवतन,शान्तिधान ,निर्वाणधाम ,शिवलोक आदि नामों से जाना जाता है। इसमें सुनहरे लाल रंग का प्रकाश फैला हुवा है जिसे ही ब्रह्म तत्व , छठा तत्व और महातत्व कहा जाता है। इसमें आत्माएं मुक्ति की अवस्था में रहती है। यहां हरेक धर्म की आत्माओं का अलग -अलग संस्थान (sections ) है। 

यह सभी आत्माओं का घर है ,यहीं से सभी आत्माएं पृथ्वी पर जाती है अपना part बजाने। यहां आत्माओं के साथ -साथ आत्माओं का बाप , शिव भी रहते है। जिसे अल्लाह , Godfather कहते है।
भगवान का घर यही है , और संगमयुग आने पर वह पृथ्वी पर जाते है और सभी आत्माओं को पतित से पावन बनाकर वापस अपने घर ले आते है। (जो समय अभी चल रहा है ) 

और जब सभी आत्माओं का पार्ट ख़त्म हो जाता है (महाविनाश ) के बाद फिर सभी आत्माये वापस अपने घर परमधान चली आती है। और फिर से यह चक्र घुमता है। 

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manushya lok ,shuksham lok, brahmalok
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3 लोकों को विस्तार से समझिये। 

आत्मा इस सृष्टि में कहाँ से आई ? ये किट , पशु -पक्षी ये सब आत्माये हैं। सबके अंदर आत्मा है
गीता में एक श्लोक आया है जिसमे भगवान ने अर्जुन को बताया है- कि मैं कहाँ का रहने वाला हूँ ? "न तद भास्यते सूर्यो न शशांको न पावकः। 
यद् गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम् मम। " (गीता 15 /6 )

अर्थात जहां सूर्य ,चंद्र ,सितारों का प्रकाश नहीं पहुँचता , जहां अग्नि का प्रकाश नहीं पहुँचता ,वह मेरा परे ते परे धाम है, जहां का मैं रहने वाला हूँ।
 यह श्लोक इस बात का प्रमाण है कि भगवान परमधाम के रहने वाले हैं , सर्वव्यापी नहीं है। यहां साबित किया गया है कि 5 तत्वों की दुनिया से परे एक और ऐसा एक छठा तत्व है -ब्रह्मलोक। 

जिसे अंग्रेज कहते है supreme world , मुसलमानो में कहा जाता है "अर्श " - खुदा अर्श में रहता है , फर्स में नहीं। लेकिन अब तो वे भी मानने लगे है कि खुदा जर्रे -जर्रे में है। जैनी लोग उसे 'तुरिया धाम ' मानते है। 

तात्पर्य यह है कि हर धर्म में उस धाम की मान्यता है। हम सभी आत्माये उस परमधाम की रहने वाली है। जहां पर supreme soul शिव भी है। वे जन्म -मरण के चक्र से न्यारे है। बाकि जितनी भी आत्माये है वह जन्म -मरण के चक्र में आ जाती है। 

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परमधाम से सभी आत्माये किस स्थिति से नीचे उतरती है। 

जितना ही इस सृष्टि पर आ करके श्रेष्ठ कर्म करने वाली आत्मा है ,वह उतना ही परे -ते -परे शिव के नजदीक रहने वाली आत्मा होगी और जितने ही निष्कृष्ट कर्म करने वाली , पार्ट बजाने वाली आत्मा है , वह उतना ही  नीचे की ओर रहेगी। उनकी संख्या ज्यास्ती होती है। 

दुस्ट कर्म करने वालों की संख्या ज्यास्ती और श्रेष्ठ कर्म करने वाली देव आत्माओं की संख्या कम ,जो 33 करोड़ कही जाती है। जिनकी संख्या ऊपर की ओर कम होती जाती है वे श्रेष्ठ आत्माएं हैं। 

दुनिया की हर चीज 4 अवस्थाओं से गुजरती है - सतोप्रधान (बचपन ) ,सतोसामान्य (किशोर अवस्था ), रजोप्रधान (जवानी ) और तमोप्रधान (बुढ़ापा ) . 
ब्रह्मलोक से आत्माओं का उतरने का भी यही क्रम है कि जितनी श्रेष्ठ आत्माएं हैं उतना ही श्रेष्ठ युग में उतरती है। 

जो 16 कला सम्पूर्ण आत्माएं हैं वह सतयुग के आदि में उतरती है , जो 14 कला सम्पूर्ण आत्माएं है वे त्रेतायुग के आदि में उतरती है , जो 8 कला सम्पूर्ण आत्माएं है वे द्वापर में उतरती है और कलियुग में कलाहीन सुरु हो जाती है। कलाहीन आत्माएं , जिनका काम औरों को दुःख देना ही है , जिनके लिए गीता में आया है - "मूढ़ा जन्मनि जन्मनि ". (गीता 16 /20 ) श्लोक। 

वे नारकीय योनि में आकर के गिरती हैं। वे नीचतम आत्माएं कलियुग के अंत में आती हैं जब सारी ही आत्माएं नीचे उतर आती हैं ,जिनको वापस जाने का रास्ता नहीं मिलता , बल्कि यहीं जन्म -मरण के चक्र में आती रहती हैं और शरीर द्वारा सुख भोगते -भोगते तामसी बन जाती हैं। 

इस सृष्टि पर आने के बाद आत्मा वापस जाती है या नहीं ?

बीज है , कई बार बोया जायेगा तो उसकी शक्ति कम हो जाती है। पत्ता छोटा , फल छोटा ,वृक्ष छोटा और आखरीन होते -होते वह फल देना ही बंद कर देता है। तो ऐसे ही आत्माओं का यह हिसाब है कि जब एक बार ऊपर से नीचे आ गई तो वे नीचे ही उतरती जाती है। 

आप इस सृष्टि के 2500 वर्ष पूर्व की history ले लीजिये। दुनिया में सुख -शांति , दुःख और अशांति में बदलती गई है या सुख शांति बढ़ती गयी ? history क्या कहती है ? जैसे -जैसे जनसंख्या बढ़ती गई ,ऊपर से आत्माएं उतरती गयी , तो जनसंख्या के बढ़ने से दुनिया में दुःख और अशांति बढ़नी ही बढ़नी है और वह बढ़ती ही गई। 

एक अति (end, extremity )   होती है कि जब सारी ही आत्माएं नीचे उतर जाती है। दुनिया में कीट , पशु पक्षी , पतंगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। देश -विदेश में इतनी कीटनाशक दवाइयां छिडकी जा रही है , तो भी उनकी संख्या में कमी नज़र नहीं आ रही है। 

मक्खी , मछरों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। आखिर ये आत्माएं आ कहाँ से रही है ? उसका समाधान गीता के अनुसार ही है , लेकिन स्पस्ट किसी ने नहीं किया। अभी यह बात स्पस्ट हो रही है कि ये आत्माएं उस आत्म -लोक से आ रही है और इसी दुनिया में 84 के जन्म -मरण का चक्र काटते हुवे अपना -अपना पार्ट बजाते रहती है। 

तो भाइयों यह थी जानकारी 3 लोकों के बारे में। और इससे सम्बंधित बढ़ती आबादी और आत्मा के घर के बारे में। मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको यह जानकारी बेहद पसंद आई होगी। 

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धन्यवाद। ॐ शांति।   
                                           
मैं कौन हूँ ? Who am I in Hindi

मैं कौन हूँ ? Who am I in Hindi


मैं कौन हूँ? Who am I in Hindi

शरीर अलग चीज़ है , आत्मा अलग चीज़ है और दोनों मिलकर जीवात्मा अर्थात जीवित आत्मा बनती है। जीवित आत्मा का मतलब है शरीर सहित काम करने वाली चैतन्य शक्ति। नहीं तो यह आत्मा भी काम नहीं कर सकती और यह शरीर भी काम नहीं कर सकता।

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इसका मिसाल एक motor और driver से दिया गया है। जैसे motor होती है , driver उसके अंदर है तो motor चलेगी , driver नहीं है तो motor नहीं चलेगी। मतलब यह है कि आत्मा , (एक भाई ने कहा - वायु है ), वायु नहीं है। पृथ्वी ,जल ,वायु ,अग्नि और आकाश - ये 5 जड़ तत्व तो अलग हैं जिनसे यह शरीर बना है।

इन 5 तत्वों से बने शरीर से आत्मा निकल जाती है तो भी शरीर के अंदर 5 तत्व रहते है। उनको जलाया जाता है या मिट्टी में दबाया जाता है। वे तो जड़ तत्व हैं लेकिन आत्मा उनसे अलग क्या चीज है ? वह मन और बुद्धि स्वरुप अति सूक्ष्म ज्योतिर्बिंदु है , जिसको गीता में कहा गया है - (अनोर्नियांसमनुस्मरेत यः। ) गीता 8 /9 श्लोक।

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अर्थात अनु से भी अनुरूप बताया। अनु है लेकिन ज्योतिर्मय है। मन -बुद्धि को ही आत्मा कहा जाता है। वेद की एक ऋचा में भी बात आई है- 'मनरेव आत्मा ' अर्थात मन को ही आत्मा कहा जाता है। आदमी जब शरीर छोड़ता है अर्थात आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो ऐसे थोड़े ही कहा जाता है कि मन -बुद्धि रह गई और आत्मा चली गई। सब कुछ है, लेकिन मन -बुद्धि की शक्ति चली गई अर्थात आत्मा चली गई।

तो मन -बुद्धि की जो power है वास्तव में उसका ही दूसरा नाम आत्मा है। मन -बुद्धि में इस जन्म के और पूर्व जन्मो के संस्कार भरे हुए हैं। संस्कार का मतलब है - अच्छे बुरे जो कर्म किये जाते हैं , उन कर्मों का जो प्रभाव बैठ जाता है उसको कहते हैं 'संस्कार'।

जैसे किसी परिवार में कोई बच्चा पैदा हुवा ,वह कसाइयों का परिवार है , बचपन से ही वहां गाय काटी जाती है ,जब बच्चा बड़ा हो जाये ,उससे पूछा जाय कि तम गाय काटते हो , बड़ा पाप होता है , तो उसकी बुद्धि में नहीं बैठेगा ; क्योंकि उसके संस्कार ऐसे पक्के हो चुके हैं।

इसी तरीके से ये संस्कार एक तीसरी चीज़ है। तो मन -बुद्धि और संस्कार - ये 3 शक्तियां मिक करके आत्मा कही जाती है।

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मैं आत्मा कौन हूँ ?

यहाँ तक तो हम जान गए कि हम सभी आत्मा है। जैसे हरेक मनुष्यों के अलग शरीर होते है,जानवरों के अलग शरीर होते है। एक का चेहरा दूसरे से नहीं मिलता। वैसे ही दुनिया में 700 -800 करोड़ मनुष्य आत्मा है उसमे से हम आत्मा कौन है यह कैसे पहचाने।

कहने का अर्थ है कि इस दुनिया में हमारा क्या part है। हम आत्मा कितने जन्म लेते है ? उन जन्मो में हम क्या -क्या बनते है ? यदि हम ये जान जायेंगे तभी कह पाएंगे कि मैं कौन हूँ यह मुझे पता है।
यदि किसी को अपने जन्मो के बारे में पता है तो उसे कहेंगे कि वह अपने आत्मा के बारे में जनता है। नहीं तो 2500 वर्षों से लोग कह रहे है कि हम आत्मा है लेकिन किसी को भी अपने जन्मो के बारे में नहीं पता।

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आत्मा के जन्मो के बारे में कौन बताएगा। 

आत्मा अनेक जन्म लेने के कारन पिछले जन्मो को भूलते जाती है। लेकिन जो जन्म -मरण से न्यारा है , और सभी आत्माओं का बाप है वही हरेक आत्मा के जन्मो के बारे में बता सकता है।
लेकिन वह orally बोलकर हरेक के जन्मो के बारे में नहीं बताता , तरीका बता देता है - जैसे Maths में formula होता है , जिससे सभी questions solve हो जाते है , वैसे ही परमात्मा बाप इस सृष्टि में आकर formula बताते है कि तुम अपने को सदैव आत्मा समझो तो तुम अपने सभी जन्मो के बारे में जान जाओगे। जिसे आत्मिक स्थिति कहते है। इसके बारे में हम विस्तार से बाद में बात करेंगे। आज के लिए इतना ही।

तो भाइयों ये थी जानकारी आपके बारे में , हमारे बारे में कि मैं कौन हूँ ? उम्मीद करता हूँ कि आपको यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये।


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धन्यवाद। Om Shanti . 
Shiv aur Shankar Me Antar-कल्याणकारी  या विनाशकारी

Shiv aur Shankar Me Antar-कल्याणकारी या विनाशकारी


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम बात करेंगे शिव और शंकर के बारे में। बहुत से लोग शिव और शंकर को एक ही मानते है , परन्तु वास्तव में इन दोनों में भिन्नता है यानि ये अलग है। आप देखते है कि दोनों की प्रतिमाये (मूर्तियां ) भी अलग -अलग होती है। शिव की मूर्ति लिंग रूप वही शंकर की मूर्ति शारीरिक आकार वाली होती है।

shiv aur shankar me antar


परमपिता शिव- शिव और शंकर में अंतर 

  • शिव का अर्थ है कल्याणकारी।
  • यह चेतन ज्योतिबिंदु (निराकार ) है और इनका अपना कोई शरीर नहीं है। यह परमपिता है। 
  • यह ब्रह्मा ,विष्णु , और शंकर के लोक यानि शुक्ष्म देव लोक से भी परे ब्रह्म लोक में वास करते है। 
  • यह ब्रह्मा ,विष्णु ,शंकर के भी रचयिता है यानि 'त्रिमूर्ति शिव ' है। 
  • यह ब्रह्मा द्वारा स्थापना ,शंकर द्वारा महाविनाश और विष्णु द्वारा विश्व का पालन करके विश्व का कल्याण करते है। 
  • शिव सभी आत्माओं के बाप है। धर्मपिताओं के भी बाप शिव है। (किट -पशु -पक्षी ) सब के बाप शिव है। 
  • शिव जन्म -मरण के चक्र से परे है। 
  • पुरे ड्रामा में सबसे wonderful part शिव का है। 
  • शिव त्रिकालदरसी है -तीनो कालों को जानने वाले है परन्तु एकव्यापी है सर्वव्यापक नहीं है। 


परम आत्मा शंकर -शिव और शंकर में अंतर। 

  • शंकर का अर्थ है विनाशकारी। 
  • शंकर शुक्ष्म शरीर धारी है , इसीलिए शंकर को निर्वस्त्र दिखाते हैं .
  • यह महाविनाश का कार्य करते हैं। 
  • शंकर को कोई भी जन्म नहीं है . 
  • ब्रह्मा देवता और विष्णु देवता की तरह ये भी परमपिता शिव के बच्चे हैं। 


शिव और शंकर को एक क्यों कर दिया है ?



शिव और शंकर को एक इसलिए कर दिया गया है क्यूंकि शिव शंकर के बड़े पुत्र हैं। और कलयुगी पापी दुनिया को सतयुगी पावन दुनिया बनाने में शिव के मददगार बनते हैं ।
जिस तरह शिव का इस रंग मंच पर थोडा सा पार्ट है , वैसे ही शंकर का भी बोहोत थोडा पार्ट है , इसलिए शिव और शंकर भी कह देते हैं , दोनों को एक ही समझ लेते हैं .



shivratri ka matlab
शिवरात्रि 
शिव का जन्मोत्सव रात्रि में क्यों -शिवरात्रि 

रात्रि वास्तव में अज्ञान , तमोगुण अथवा पापाचार की निशानी है। द्वापरयुग और कलियुग के समय को रात्रि कहा जाता है। कलयुग के अंत में जब साधु ,सन्यासी ,गुरु ,आचार्य सभी मनुष्य पापी हो जाते है, दुखी हो जाते है और अज्ञान निंद्रा में सोये पड़े होते है , जब धर्म की ग्लानि होती है और जब यह भारत विषय -विकारों के कारन वेश्यालय बन जाता है। तब पतित पावन परमपिता शिव इस सृष्टि में दिव्य जन्म लेते है।

इसीलिए अन्य सबका जन्मोत्सव तो ' जन्म दिन ' के रूप में मनाया जाता है परन्तु परमपिता शिव के जन्मदिन को शिवरात्रि (Birth Night ) ही कहा जाता है। यहां चित्र में जो कालिमा यानि अन्धकार दिखाया गया है वह अज्ञान अंधकार और विषय विकारों का प्रतिक है।

ज्ञान सूर्य शिव के प्रकट होने से सृष्टि के अज्ञान अंधकार और विकारों का नाश। 

जब इस प्रकार अवतरित होकर ज्ञान सूर्य परमपिता शिव ज्ञान प्रकाश देते है तो कुछ ही समय में ज्ञान का प्रभाव सारे दुनिया में फेल जाता है और कलियुग तथा तमोगुण के स्थान पर संसार सतयुग और सतोगुण की स्थापना हो जाती है और अज्ञान अंधकार का तथा विकारों का विनाश हो जाता है।


सारे कल्प में परमपिता शिव के एक अलौकिक जन्म से थोड़े ही समय में यह सृष्टि वेश्यालय से बदल कर शिवालय बन जाती है और नर को श्री नारायण पद तथा नारी को श्री लक्ष्मी पद की प्राप्ति हो जाती है। इसीलिए शिवरात्रि हीरे तुल्य है।

तो दोस्तों यह थी जानकारी शिव और शंकर के बारे में। मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको यह जानकारी जरूर मदद करेगी। यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये।

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धन्यवाद। 
ॐ का उच्चारण/रहस्य/मतलब/पहचान/फायदे और शक्तियाँ

ॐ का उच्चारण/रहस्य/मतलब/पहचान/फायदे और शक्तियाँ


नमस्कार दोस्तों आपका anekroop में स्वागत है। आज हम बात करेंगे ॐ के बारे में। और जानेंगे कि
ॐ का उच्चारण कैसे करते है ?
ॐ शब्द के पीछे रहस्य क्या है ?
ॐ का अर्थ क्या है उसका मतलब क्या होता है ?
ॐ से हमें कैसी शक्तियां मिलेगी ? हम कैसे इससे अपनी जीवन को सुखमयी बना पाएंगे ?
ॐ कौन है ? हम किसे ॐ कहते है ? ॐ का परिचय क्या है ?

तो आप इस post को जरूर अंत तक पढ़े इसमें आपको ऐसी जानकारी मिलेगी जो आपको कहीं नहीं मिलेगी क्योंकि यह अनुभव के आधार पर बताया गया है।

om ka ucharan fayde matlab
om ka ucharan fayde matlab 


ॐ का उच्चारण कैसे करे ? 

आपने देखा होगा और सुना भी होगा कि बोहोत से लोग ॐ शब्द का उच्चारण करके ध्यान करते है। जिसे English में Meditation कहते है।
जब भी आप ॐ शब्द का उच्चारण कर रहे हो, तब आप गौर कीजियेगा कि ॐ का उच्चारण पेट से होता है। पेट अंदर की तरफ चली जाती है।
देखिये।
सिर्फ ओम नहीं कहना है। अ- उ - म , यह 3 शब्दों का उच्चारण करना है। इन तीनो शब्दों को जोड़कर कहना है ॐ। और इन 3 शब्दों को बारी -बारी लम्बा खींचना है।
जैसे - अ ......... उ..........  म.......
और नहीं तो अ+उ =ओ  होता है। तो को लम्बा खींचना है फिर को।  लेकिन ध्यान रहे की ओ का उच्चारण करते समय उ का भी उच्चारण हो।
निशानी - यदि आप सिर्फ ओम का उच्चारण करते हैं तो पेट अंदर नहीं जाएगी और यदि ओउम =ॐ का उच्चारण करते है तो इसमें पेट अंदर की तरफ जाती है।


ॐ के उच्चारण के फायदे। 

जब भी आप ॐ का उच्चारण कीजियेगा तब आप महसूस कीजियेगा कि इसका उच्चारण शरीर के अंदर से होती है। जो की शरीर के अंगों को स्वस्थ रखती है और मन को एकदम हल्का बना देती है।

ॐ शब्द का connection आपके दिल से है और आपके दिमाग से भी है।
इससे शरीर की बीमारी ठीक होती है और साथ -साथ मानसिक बीमारी के लिए बोहोत असरदार है।

अब एक प्रश्न में आपसे पूछना चाहता हूँ - कि आपने किसे ॐ का उच्चारण करते सबसे ज्यादा देखा है ?
doctors को
scientist को
आम आदमी को
साधु -संन्यासी को।

आपका क्या जवाब होगा ? साधु -संन्यासी को।

अब आप गौर कीजिये कि इन सभी में कौन सबसे ज्यादा दिन जिंदा रहते हैं ?
फिर वही जवाब होगा -साधु संन्यासी। वे लोग सैकड़ों (100 ) साल तक जिन्दा रहते हैं। आप बताइये वे लोग इतने दिनों तक कैसे जिन्दा रह पाते है जबकि हमलोग 60-70 साल ही ज़िन्दगी जी पाते है।

कोई कहेगा ,वह शाकाहारी होते है , अच्छे वातावरण में रहते है। तो दुनिया में भी बोहोत से लोग शाकाहारी है ,अच्छे जगह में रहते है लेकिन इनके जितने समय तक ज़िंदा नहीं रह पाते। बोहोत अंदर हो जाता है।

इसका जवाब एक ही है ,कि वो ध्यान करते है। ॐ की ध्वनि का उच्चारण करते है।

तो यदि आपको भी अपनी उम्र बढ़ानी है ,तो आज से ही आप ॐ की ध्वनि का उच्चारण करना शुरू कर दे।


ॐ का रहस्य क्या है ? - कुछ रोचक बातें। 

यह रहस्य आपने ना कहीं पढ़ी होगी ,और ना सुनी होगी और ना ही कहीं देखी होगी। सनातन धर्म के अनुसार 3 प्रमुख देवताओं को अधिक मान्यता दिया जाता है। वह है - ब्रह्मा ,विष्णु और शंकर।

ब्रह्मा को मानने वाले ब्रह्मसमाजी , विष्णु को माननेवाले वैष्णव और शिव को मानने वाले शैव सम्प्रदाय कहा जाता है।
इनकी ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा का काम है ,स्थापना करना , विष्णु का काम है पालना करना और शंकर का काम है विनाश करना।
और ऐसा भी कहा जाता है कि हरेक आत्मा में ये 3 गुण (स्थापना ,पालना ,विनाश ) का अपनी -अपनी शक्तियों के अनुसार समाये हुए हैं। वह 3 शक्तियों का समूह ॐ कहा जाता है। लेकिन कैसे उसके लिए आगे के post को पढ़ते रहिये।



ॐ का रहस्य और मतलब। 

ब्रह्मा का अ , विष्णु का उ ,और महेश का म। ब्रह्मा ,विष्णु और महेश के अ ,उ और म से ॐ शब्द बनता है।
और
शास्त्रों में आत्मा को भी कई जगह पर त्रिमूर्तियों के प्रतिक ॐ शब्द से सम्बोधित किया गया है।

तो ये था ॐ का मतलब।
अ = ब्रह्मा की स्थापना शक्ति।
उ =विष्णु की पालना शक्ति।
म =शंकर की विनाश की शक्ति।

स्थापना ,पालना और विनाश की शक्ति।
तो जो ॐ शब्द का उच्चारण करेंगे उनमें ये 3 शक्तियां स्वतः ही आ जायेंगे।

ॐ से फायदे और शक्तियाँ। 

ॐ शब्द का उच्चारण करने वाले , अपनी जिंदगी की स्थापना खुद कर पायेगा। यानि वह अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ भी करना चाहेगा , वह कर पायेगा , जिस भी मुकाम तक पहुंचना चाहेगा वह पहुँच पायेगा। अपनी ज़िन्दगी की स्थापना कर पायेगा यानि अपनी ज़िन्दगी का निर्माण वह खुद कर पायेगा।

पालना शक्ति :- यानि वह अपनी ज़िन्दगी को ,अपने परिवार को अच्छे से देख -भाल कर सकेगा ,उन्हें एक अच्छा जीवन दे सकेगा।

विनाश शक्ति :- उसके जीवन से बुराइयों का विनाश होगा। और उनके द्वारा दुराचारी व्यक्तियों का भी संघार होगा। कहते का अर्थ है - वह सच्चा इंसान बनेगा ,बुरे लोग ,बुरे संस्कार का उसके जीवन से विनाश हो जायेगा।

वह जब चाहे तब अपना विनाश भी कर सकेगा ,यानि इक्षा मृत्यु को भी पा सकेगा।
तो ये थी 3 अद्भुत शक्तियां जो ॐ का उच्चारण करने से हमें मिलता है।
om kaun hai ? who is om
om kaun hai ? who is om
.
ॐ कौन है ? ॐ की पहचान। 

अब हम इसके और गहराई में जाते हैं और बात करते हैं ओमकार के बारे में और जानते है कि वह कौन है ?

आप इस श्लोक को ध्यान से पढ़िए।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात परमब्रह्म ,तस्मै श्री गुरुवे नमः।।


गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
यानि ब्रह्मा गुरु है ,विष्णु गुरु है और देवताओं के भी जो देव है शंकर वह भी गुरु हैं।

गुरुर्साक्षात परमब्रह्म ,तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
वह साक्षात है गुरु। जो गुरु साक्षात है यानि practical में है। और वही परमब्रह्म है।
परमब्रह्म =  यानि ऊँचे ते ऊँचा ,उससे ऊँचा कोई होता नहीं।

तो वह परमब्रह्म कौन है ?
वह ब्रह्मा भी नहीं ,विष्णु ,शंकर भी नहीं तो कौन है वो परमब्रह्म जिनको नमन करने की बात कही गई है।

तो वह परमब्रह्म है ओमकार। सिक्ख लोग उसे कहते हैं :-
एक ओमकार निराकार :- वह निराकार है , वह सतगुरु निराकार है।
जिसे अल्लाह कहते हैं - अल्लाह मतलब ऊंच ते ऊंच।
जिसे GOD कहते हैं - Generator , Operator , Destructor .
जिसकी यादगार है ॐ कारेश्वर।
वह है शिव निराकार।

जिसकी यादगार में शिवलिंग के बिच में निराकार शिव की यादगार में बिंदी दिखाते हैं।
जिसकी यादगार में ऊ के ऊपर का बिंदी है। ऊ +ँ =ॐ।
तभी बनता है ॐ।

वही ब्रह्मा द्वारा स्थापना               =G =Generator
विष्णु द्वारा पालना                      = O =Operator
और शंकर द्वारा विनाश करता है =D=Destructor

जिसे कहा जाता है त्रिमूर्ति शिव।
जिसे कहा जाता है -ॐ नमः शिवाय।
औरों को नमन नहीं शिव को नमन।
वह है शिव जिसे हम कहते हैं -⇈ॐ⇈

तो दोस्तों यह थी जानकारी ॐ के बारे में। ॐ का उच्चारण/रहस्य/मतलब/पहचान/फायदे और शक्तियों के बारे में। मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी।


यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये। और इस post को अपने दोस्तों तक , अपने facebook ,watsapp में भी share करे ताकि लोग कुछ नया जान सके और कुछ नया सिख सके। इसी के साथ धन्यवाद। 
पिछले जन्म में हम क्या थे ? आगे क्या बनेंगे ? अपने जन्मों के बारे में जाने।

पिछले जन्म में हम क्या थे ? आगे क्या बनेंगे ? अपने जन्मों के बारे में जाने।


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज मैं आपको कुछ ख़ास बताने जा रहा हूँ , इससे पहले आपने इसके बारे में कही नहीं सुना होगा , यह पहली बार दुनिया जानेगी कि
कैसे हम अपने पिछले जन्मों के बारे में जान सकते है।
 हम पिछले जन्मों में क्या थे और
आगे के जन्मों में क्या बनेंगे वह भी जान पाएंगे।
तो आप इस post को अंत तक जरूर पढ़े  , आज आप कुछ नया सिखने वाले हैं।

pichle janm me hm kya the
pichle janm me hm kya the 


यह जानकारी practice और proof के ऊपर आधारित है। मैं यहाँ पर किसी धर्म  के ऊपर बात नहीं करूँगा , मैं यहाँ पर Proof के साथ बात करूँगा। ऐसे धर्मों के नजरिये से देखें तो कुछ धर्म कहती हैं कि 84 लाख योनियों के बाद मनुष्य जन्म मिलता है। वहीं कई धर्म कहती हैं कि हमें एक ही जन्म मिलता है।

ऐसे में सच्चाई क्या है , वह सामने नहीं आ पाती। और सच हमेशा 1 होगा।  2 ,4 नहीं होगा।

पिछले जन्मों में हम क्या थे , इसको समझने के लिए चलिए अब हम  कुछ cases और proof के तरफ बढ़ते हैं।

Proof - पिछले जन्मों में हम क्या थे ?


https://hindi.news18.com/news/ajab-gajab/haryana-rebirth-of-boy-in-haryana-palwal-mudda-487095.html
© hindi.news18.com
Case : 1  - एक लड़के की है , जिसे अपने पिछले जन्म के बारे में याद है , यह पिछले जन्म में कैसे मरा था , इसको याद है। यह अपने पिछले जन्म के घर में जाते हैं , वहाँ सबको अपने बारे में बताते हैं फिर सभी परिवार के लोग और गांव के लोग भी इस बात को मान लेते हैं। इसकी जानकारी आपको internet से मिल जाएगी। Zee News में इसके बारे में बताया भी गया था।

babro karlen rebirth
©www.iisis.net
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Case : 2 - Barbro Karlen ( Swedish लड़की ) एक famous writer , यह कहती है कि मैं पिछले जन्म में एक लड़का थी।  इसका आभास इनको बचपन से ही हो रहा था। फिर वह अपने पापा के साथ पिछले जन्म के स्थान में जाती है और वैसा ही पाती है , जैसा की वह बता रही होती है।

Case : 3 - James Leigninger - इनका जन्म 1998 में हुआ है। 3 साल की उम्र में ही इनका कहना था कि मैं पिछले जन्म में एक Pilot था और एक plan crash में मेरी मौत हुई थी।

Case :4  - Chunai - यह बोहोत special case है अब तक का।  एक 3 साल का लड़का Thailand का। वह कहता है मैं पिछले जन्म में एक teacher था। और उसे गोली से मार दी गयी थी। और इसके इस जन्म में वह गोली की निसान सर के आगे और पीछे पीठ में उसी जगह दिखती है।

आप इन सभी cases की और अधिक जानकारी internet से ले सकते हैं। और ऐसे कई cases हैं - जिनमे लोगों को अपने पिछले जन्मो के बारे में पता चला है।



निसकर्ष सभी cases का - पिछले जन्मों की जानकारी। 

अब यहाँ गौर करने की बात है कि इन सभी में 2 बात common आयी है।

1. की ये सभी बच्चे हैं। यानि कम उम्र में ही इन्हे अपने पिछले जन्मों के बारे में मालूम चला। 
2. कि ये सभी पिछले जन्म में मनुष्य थे। और एक लड़की ने कहा कि मैं पिछले जन्म में लड़का थी। 

यानि लिंग बदला जा सकता है। आप यदि इस जन्म में पुरुष हैं तो हो सकता है कि आप अगले जन्म में स्त्री बन जाएँ। यह संभव है। ऐसा सिर्फ 1 case नहीं , कई cases  सामने आए हैं।

अब इस बात को ध्यान से सुनियेगा कि किसी ने ये नहीं कहा - कि मैं पिछले जन्म में सांप थी , कुत्ता थी , या फिर कोई पंक्षी थी। किसी ने कोई जानवर आदि का नाम नहीं लिया।

इससे हमें 1 बात तो clear हो गयी कि यह कहना कि 84 लाख योनियों में जाने के बाद मनुष्य जन्म मिलता है - यह बात गलत साबित हो जाती है।
और सिर्फ 1 ही जन्म मिलता है जीने के  लिए यह भी गलत साबित हो गया है।

सभी को अपने पिछले जन्मों के बारे में जानकारी क्यों नहीं होती। 

अब चलिए इसपर और गहराई से समझते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है ? पुनर्जन्म का पता हमें क्यों नहीं होता ? और यदि किसी को होता भी है तो वह बचपन में क्यों होता है ?

ऐसा इसलिए क्यूंकि मृत्यु जो है वह एक बड़ा accident है। आपने देखा होगा कि किसी - किसी की accident में याददास्त चली जाती है। वैसे ही मृत्यु भी एक बड़ी दुर्घटना है , एक accident है। जिससे की लोग अपने पिछले जन्मों के बारे में भूल जाते हैं।

ये पढ़े -

अब कोई दूसरे topic के ऊपर प्रश्न करे कि - यह सब तो ठीक है कि मृत्यु एक accident है और इससे याददास्त चली जाती है लेकिन :-

पिछले जन्म में या आगे के जन्म में हम मनुष्य ही बनेंगे , ऐसा क्यों होता है ?

तो सारे proof और प्रमाण को देखते हुए यह बात सामने आती है कि जन्म तो मनुष्य की ही मिलेगी लेकिन उसमे लिंग का परिवर्तन हो सकता है।  स्त्री है तो पुरुष हो सकता है और पुरुष है तो स्त्री हो सकता है।

ऐसा इसलिए क्यूंकि आत्मा एक बीज है। जिस तरह पेड़ों के बीज होते हैं।
पपीता  का बीज होता है :-  जब लगाया जाता है तब पता पड़ता है कि यह male के रूप में जन्म लेगा या female के रूप में ? नहीं पता पड़ता है। ऐसे ही यह पता नहीं पड़ता कि आत्मा कब स्त्री का रूप लेगी और कब पुरुष का। संस्कारों की बात है।

हम अगले जन्म में क्या बनेंगे ?

यह तो साबित हो गया है कि हमारा आने वाला जन्म मनुष्य ही होगा।  लेकिन प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों होता है ?

तो जिस तरह आम का बीज आम होता है - यदि आप आम का बीज रोपेंगे तो उसमे जामुन होगा ?
नहीं होगा।

कटहल का बीज लगाइयेगा तो उसमे सेव कैसे फरेगा ?
नहीं फरेगा।

अब मैं आपसे पूछता हूँ , क्या पेड़ों में जान होता है ?
यदि हम पेड़ के बीज को निकाल दें तो क्या पेड़ बचेगी ?
नहीं बचेगी।

यानि पेड़ों में भी आत्मा होती है , पेड़ों की वह बीज , आत्मा होती है।

उसी तरह मनुष्य में बीज अलग हैं , जानवरों के अलग हैं , पक्षियों के अलग हैं।

जैसे - कोई कुत्ता हो , तो वह हमेशा कुत्ता योनि में ही जन्म लेगा।  कोई तोता हो , तो वह तोता योनि में ही जन्म लेगा। और मनुष्य , मनुष्य में ही जन्म लेगा।

तो अब मुझे लगता है कि आपको यह clear हो गया होगा कि पिछले जन्मों में हम क्या थे ? और आगे के जन्मो में हम क्या बनेंगे।

अब चलिए तीसरे और अंतिम विषय के ऊपर बात करते हैं और वह है



हम अपने पिछले जन्मों के बारे में कैसे जान पायेंगे। 

इससे पहले कि मैं आगे कुछ बताऊँ , मैं आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ।

प्रश्न है :- क्या आप कभी  a b c d भूल पाएंगे ? कभी गिनती भूल पाएंगे ?
यदि आपकी उम्र 60 साल की हो जाये , तो भी क्या आप ये भूल पाएंगे ?

नहीं भूल पाएंगे। क्यूंकि इसका इस्तेमाल आप हमेशा करते हैं।

अब आप सोच रहे होंगे कि इसका connection पूर्व जन्मों से कैसे है ? तो मैं कहूंगा बिलकुल है।
जिस तरह  a b c d और गिनती का हमारे जीवन में बार - बार उपयोग होने पर हमें पूरी ज़िन्दगी याद रहती है। उसी तरह हम जब अपने आत्मा को बार - बार याद करेंगे, तो हम उसके बारे में जानते जायेंगे।

यदि हम सभी cases के तरफ देखें तो उसमे भी जो अपने पिछले जन्म के बारे में जान पाए - तब उनकी उम्र आप देखे तो सभी की लगभग 3 से 4 वर्ष की ही थी। यानि ज्यादा समय नहीं हुआ था उन्हें मृत्यु को और उनको अपने पिछले जन्म के बारे में याद आने लगा।

तो इनको अपने पिछले जन्मो के बारे में याद क्यों आया ? क्यूंकि अधिक लगाव था attachment था अपने पिछले जन्म से तो उनका ऐसा संस्कार बन गया जो अगले जन्म में भी वह भूल नहीं पाए। लगाव का संस्कार बन गया।
सभी लोग कहते है ना कि तुम क्या लेकर आये हो और क्या लेकर जाओगे ?
तो उसका जवाब है हम संस्कार लेकर आये है और संस्कार लेकर के जायेंगे। 

आपने देखा होगा कि  3 -4 साल का बच्चा बोहोत अच्छा गाना गाता है कोई बोहोत अच्छा paint करता है। तो 3 -4 साल में ही उन्होंने वो सब कहाँ से सीखा , तो पिछले जन्मो का संस्कार इस जन्म में transfer हो गया।

तो संस्कार बनाने की बात है। यदि हम अपने को आत्मा समझने की संस्कार बना ले तो हम अपने आत्मा के जन्मो को जान पाएंगे। और कोई भी अपने जन्मो के बारे में जान पायेगा।  Practice की बात है। इसमें समय लगेगा लेकिन कुछ चमत्कार होगा।

आप हमें comment करके बताये आपको यह जानकारी कैसी लगी अपने जन्मों के बारे में। और यदि आप अपने आत्मा को याद करने के संस्कार के  बारे में जानना चाहते है तो वह भी लिखे।
हम आपके लिए इससे सम्बंधित ओर अधिक जानकारी देंगे।
इस post को अंत तक पढ़ने के लिए बोहोत-बोहोत  धन्यवाद।


यदि आप मेरी मदद करना चाहते है तो आप इस post को अपने परिवार के लोगों , दोस्तों तक जरूर पहुंचाए।
यदि आप social media , fb watsapp में है तो आप इन्हे जरूर share करे।  ताकि उन्हें भी यह जानकारी मिल सके।
एक बार फिर से धन्यवाद। 
मन क्यों सोचता है? Why Mind Thinks

मन क्यों सोचता है? Why Mind Thinks


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे कि मन क्यों सोचता है? मन के अंदर क्या है जो मन सोचता है और मन हमेशा सोचते ही क्यों रहता है ?
आपको यह topic कुछ अजीब सा लग रहा होगा , लेकिन मेरा विश्वास मानिये कि इसे पढ़ने के बाद आपके विचार बदल जायेंगे और आप बोहोत आनंदित महसूस करेंगे।

यदि आपको जानना है कि मन कैसे सोचता है ? तो उससे पहले आपको आत्मा के बारे में समझना होगा।
आत्मा में 3 शक्तियाँ होती हैं - मन , बुद्धि और संस्कार।
तो आज हम यहाँ मन के ऊपर बात करेंगे और जानेंगे कि मन कैसे सोचता है ?

mann kyu sochta hai
मन क्यों सोचता है 


जिस तरह पैर से हम चलते हैं - अब प्रश्न उठता है कि पैर से हम कैसे चलते है ?
इसका जवाब है कि पैर का ऐसा आकार है।  ऊपर से नीचे (vertical)  सीधा  और फिर सपाट (horizontal ), जो की हमें चलने में मदद करती है।

दूसरा उदाहरण मैं देता हूँ आँख - आँख से हम कैसे देख पाते हैं ?
तो इसका जवाब है कि हमारे आँखों में lens लगे हुवे होते हैं , जिनकी मदद से हम देख पाते हैं।

और जितनी भी इन्द्रियाँ है  - हाथ हो ,नाक हो , कान हो।  इन सभी इन्द्रियों में (sense organs ) में कुछ ना कुछ ऐसा चीज है जिनसे की यह अपना कार्य कर पाती है।

वैसे ही मन में क्या है जो मन सोचता है ?

मन शरीर की 11 वीं इन्द्रियां कही जाती है। और सोचना भी एक कार्य है। किसी व्यक्ति विशेष के बारे में सोचना , पढ़ाई में प्रश्नों के बारे में सोचना।  इत्यादि।

तो हम यह नहीं कह सकते हैं कि सोचना कोई कर्म नहीं है। इसलिए मन में कुछ नहीं है। यदि कोई कहता है कि सोचना कोई कर्म नहीं है, यह तो normal है , अपने -आप होता है।

तो इसका भी जवाब है - ठीक है यह अपने आप होता है। मन अपने आप सोचता है। लेकिन हम इसे change भी तो करते हैं। हम अपने सोंच को बदलते भी तो हैं।

जब भी हमारे पिताजी को घर आने में late हो जाती है , तब हमारे सोच कैसे हो जाते हैं ?
कहीं पिताजी को कुछ हो तो नहीं गया ?, जरूर पिताजी party कर रहे होंगे , नहीं -नहीं traffic में फँस गए होंगे।

तो हम यहाँ पर अपने सोंच को change कर रहे हैं। क्या कहके - कि वह traffic में फँस गए होंगे।

और सोचना कर्म नहीं है तो फिर ऐसा क्यों कहते हैं - मन जीते जगतजीत।
जिसने मन को जीत लिया तो वह जगत को भी जीत सकता है। यानि जो अपने सोच के ऊपर , संकल्पों के ऊपर जीत पा सकता है तो वह संसार के ऊपर भी जीत पा सकता है।

और यदि अपने सोंच से जीत पाना है तो उससे लड़ना भी तो होगा ना। और यदि हम जानेंगे नहीं कि सोंच क्या है ? मन क्यों सोचता है ? तो हम अपने सोच से लड़ेंगे कैसे।

तो यही बात मैं आपको बताने जा रहा हूँ , कि आखिर मन में क्या है ? जिससे की वह सोच पाता है। 
इसका जवाब है - मन में याद है। जिसकी वजह से वह सोच पाता है। 

एक उदाहरण से आप इसे समझिये :- कई cases में देखा गया है कि , जब किसी के साथ कोई हादसा हो जाता है - सड़क दुर्घटना , छत से नीचे गिरना।  तो उनकी याददास्त चली जाती है।

यानि बचपन से accident होने के समय तक जितनी भी उनकी यादें थी वह ख़त्म हो जाती है। ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति अपने बीते हुए कल के बारे में नहीं सोच पाता। ऐसा नहीं है कि उनकी बुद्धि साथ नहीं देती , बुद्धि अच्छी होती है , लेकिन वह सोच नहीं पाता।

क्यूंकि वह यादें मन के पास नहीं है तो वह कैसे सोचेगा। ऐसे ही हम अपने पिछले जन्मों के बारे में नहीं सोच पाते। क्यों ?

हम अपने पिछले जन्मों के बारे में क्यों नहीं सोच पाते ?

क्यूंकि मृत्यु भी एक बड़ी accident है। जिस तरह इन छोटे accident से याददास्त चली जाती है , उसी तरह मृत्यु भी एक बड़ी accident है , जिससे की हम अपने पिछले जन्मों के बारे में भूल जाते है।

तो निष्कर्ष क्या निकला :- कि हम जैसी यादें देंगे मन को , मन वैसा ही सोचेगा। 
हम कोई अच्छी यादें देंगे जैसे सफलता का।
जैसे :- किसी अवार्ड show में जाना, कोई match देखने जाना , किसी के success पार्टी में जाना। तो आप मन को सफलता की यादें दे रहे हैं। तो मन उसी के बारे में सोचने वाला है।

और यदि किसी व्यक्ति की road accident में मौत हो गयी है , और आप उसे देखने जाते हैं , तो आपका मन वैसे ही चीजें सोचने वाला है।
और इससे बचने के लिए क्या करे - आप वहां जाये ही नहीं। तो मन सिर्फ कल्पना ही कर सकता है।  कि ऐसे उसके 2 टुकड़े हुवे होंगे , ऐसे वह मारा होगा।  बस ! वह ज्यादा उसके बारे में नहीं सोच पायेगा। क्यूंकि उसके पास वह यादें है ही नहीं तो वह सोचेगा कैसे।

तो अब मुझे लगता है कि आपको जवाब मिल गया होगा कि मन क्यों सोचता है ? मन में क्या है जिससे की वह सोच पाता है।
जैसे हमारे पैर का निचला भाग सपाट है तो हम चल पाते हैं। आँखों में lens है , कानों में ear drums है तो देख और सुन पाते हैं।

वैसे ही मन में क्या है जिससे की वह सोच पाता है - तो जवाब है मन में यादें है जिससे की वह सोच पाता है।
अब आपको अच्छे सोच चाहिए , या बुरे सोच यह आपके हाथों में है।
क्यूंकि - जैसा सोचोगे तुम , वैसा बन जाओगे।


तो दोस्तों यह थी जानकारी मन के बारे में । मुझे उम्मीद है की आपको यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये।
और इस post को अपने दोस्तों , रिस्तेदारों तक जरूर पहुंचाए , जिससे उन्हें भी सच्चाई का पता चले।

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