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Aatma Kaisa Dikhta Hai

Aatma Kaisa Dikhta Hai


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे आत्मा के रूप के बारे में कि आत्मा कैसा दीखता है ? आत्मा का रंग क्या है ? आत्मा को हम कैसे देख सकते हैं ? आत्मा का क्या आकार है ? और भी कुछ नई जानकारी आत्मा के बारे में।
इस पोस्ट से पहले हमने शरीर में आत्मा कहां है ? इसके बारे में जाना था और आज हम जानेंगे आत्मा के रूप के बारे में। तो पढ़ते रहिये और जानते रहिये अपने आत्मा के बारे में।

aatma kaisa dikhta hai
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आत्मा कैसा दीखता है ?

हम आपको कोई अंधश्रद्धा के बारे में नहीं बताएँगे बल्कि प्रूफ के साथ बताएँगे और कुछ उदाहरण भी देंगे जिससे की आपको आसानी से समझ में आ सके।

आज तक किसी ने आत्मा को अपने आँखों से नहीं देखा है इसका मतलब ये नहीं होता कि आत्मा होती ही नहीं है आत्मा होती है और उनको देखा भी जा सकता है।
जैसे वायुमंडल में छोटे-छोटे कीड़े होते हैं जिन्हे हम अपने आँखों से नहीं देख पाते उसे देखने के लिए हमें microscope की जरूरत होती है वैसे ही आत्मा को हम अपने आँखों से नहीं देख सकते , वह इतनी छोटी है कि उसे microscope भी नहीं देख सकता उसे देखने के लिए हमें तीसरे आँख की जरूरत होती है।

अब आप कहेंगे कि ये हम तीसरा आँख कहाँ से लाएंगे ये practical नहीं है क्योंकि सिर्फ देवी-देवताओं को तीसरा आँख दिखाया जाता है ना की मनुष्यों को। लेकिन मैं बताना चाहता हूँ कि तीसरा आँख आपके पास भी है तब आप क्या कहेंगे ? तीसरा आँख कोई सच का आँख नहीं होता बल्कि ज्ञान का आँख होता है जिसे हर व्यक्ति अपने ज्ञान के अनुसार उसे अनुभव कर सकता है।

तो वो ज्ञान मैं आपको बता रहा हूँ जिससे कि आप अपने तीसरे आँख से आत्मा को देख पाएंगे।

आत्मा का रूप क्या है ?

मैंने अपने पिछले post में आपको बताया था कि आत्मा निराकार है इसका मतलब हम आत्मा को देख नहीं सकते। लेकिन आत्मा निराकार तो है लेकिन वो इतना शुक्ष्म है कि उसे निराकार ही समझा जाता है। जहां तक आत्मा के रूप की बात आती है तो वो अति शुक्ष्म ज्योतिबिंदु है। वह atom से भी लाखों गुना छोटी है इसीलिए कोई उसे देख नहीं सकता।

और एक वजह है कि वो ज्योति बिंदु है यानि वो ज्योति (light ) है। वह एक शुक्ष्म light है जो हर जगह जा सकती है दिवार के भी पार जा सकती है, उस light को कोई भी रोक नहीं सकता है।
तो आप समझ गए होंगे कि आत्मा को लोग निराकार क्यों कहते हैं और उसका रूप क्या है।

आत्मा का क्या रंग है ?

जहां तक आत्मा के रंग की बात आती है तो वो सफ़ेद है। ऐसा इसलिए क्योंकि आत्मा पवित्र और शांति प्रिय है।
जिस तरह पवित्रता को और light को सफ़ेद रंग से दिखाते है उसी तरफ आत्मा एक सफ़ेद point light की तरह है। किसी भी वस्तु की पहचान के लिए रंग और रूप की जरूरत होती है तो मुझे अब लगता है कि आत्मा के रंग और रूप के बारे में आपको पता चल गया होगा।

रंग - सफ़ेद ,
रूप -ज्योतिबिंदु।

आत्मा = सफ़ेद ज्योतिबिंदु।


आत्मा को हम कैसे देख सकते हैं ?


यदि आप आत्मा को देखना चाहते हैं तो आपको अपना तीसरा नेत्र खोलना होगा यानि आपको अपने अंदर ज्ञान की प्रकाष्ठा लानी होगी। जैसा कि आपको पता चल गया कि आत्मा सफ़ेद ज्योतिबिंदु है , तो अब आप सभी को सफ़ेद ज्योतिबिंदु समझेंगे तो धीरे-धीरे practice बढ़ने से सभी लोग आपको आत्मा ही दिखाई देगा जिससे की आप उसके संकल्पों को पढ़ पाएंगे।

और जहां तक बात आती है कि अपने शरीर के आँखों से देखने की तो वो नहीं हो सकता कोई भी इंसान अपने आँखों से आत्मा को नहीं देख सकता। यदि कोई व्यक्ति अपनी आँखों से आत्मा को देखने की बात करता हो तो वह झूठ बोल रहा है।

Proof :- जब कोई औरत गर्भ धारण करती है तो 3 से 4 महीने उसे गर्भ तैयार करने में लग जाते हैं और 3-4 महीने के बाद आत्मा की गर्भ में प्रवेशता होती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है तब माँ को अनुभव होना शुरू हो जाता है कि गर्भ में कोई आ गया है। इससे साबित होता है कि आत्मा शरीर के अलग कोई चीज है।

Proof 2 :- सभी धर्म वाले भगवान को निराकार मानते हैं। तो आप बोलिये कि सांप का बच्चा  कैसा होगा ? हांथी का बच्चा कैसा होगा ? मनुष्य का बच्चा कैसा है ? उसी तरह आत्मा का बच्चा कैसा होगा ?
आप कहेंगे सांप का , हांथी का बच्चा सांप और हांथी जैसा ही होगा उसी तरह मनुष्य और आत्मा का बच्चा भी मनुष्य और आत्मा के जैसा ही होगा।

भगवान निराकार है तो भगवान का बच्चा भी निराकार ही हुवा। ये बात भी धर्मों के अनुसार साबित हो जाती है।
हिन्दू धर्म के लोग देवी-देवताओं को मानते हैं लेकिन वह उतने पुराने हैं कि सब भूल गए हैं। वह पूजा तो करते हैं निराकार की लेकिन जानते नहीं है।

शिवलिंग का पूजा करते हैं :- दरहसल शिवलिंग का पूरा नाम - शिव ज्योतिर्लिंग है। यानि ज्योति का लिंग। light का लिंग। यहां पर भी आप देख सकते हैं कि हिन्दू भी निराकार को मानते हैं। लेकिन हिन्दू अलग हैं वो निराकार के साथ साकार को भी मानते हैं। यानि निराकार + साकार = शिव ज्योतिर्लिंग।

शंकर में जो तीसरा नेत्र है वो निराकार की यादगार में दिखाया जाता है जिसे सभी शिव नेत्र कहते हैं और शिवलिंग में भी बिंदी को निराकार की यादगार में दिखाया जाता है।  सोमनाथ के मंदिर में उसी निराकार की यादगार में कोहिनूर हिरा को लगाया गया था जिसे मुसलमान और फिर बाद में अंग्रेज अपने साथ ले गए।

यदि अन्य धर्मों को भी पता होता कि ये निराकार की भी पूजा करते हैं तो वो सायद मंदिरों को नहीं लुटते। तो यहां से ये साबित हो जाता है कि हरेक धर्म के लोग निराकार को मानते हैं और निराकार भगवान का बच्चा भी निराकार ही होता है। और इस तरह आत्मा भी निराकार ज्योति बिंदु स्वरुप है।

तो भाइयों ये थी जानकारी कि आत्मा कैसा दीखता है। मुझे उम्मीद है कि आपको ये जानकारी जरूर पसंद आयी होगी। यदि आपका कोई सवाल है या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये।


और इस post को अपने दोस्तों तक जरूर share करें ताकि और लोगों तक ये जानकारी पहुँच सके।
अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत-बोहोत धन्यवाद। 
Sharir Me Aatma Kaha Rahti Hai

Sharir Me Aatma Kaha Rahti Hai


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज फिर से हम अध्यात्म के तरफ बढ़ते हैं। अध्यात्म मैंने इसलिए कहा क्योंकि इसमें भी एक राज़ है जिससे की हमें पता पड़ता है कि आत्मा इस शरीर में कहाँ रहती है।
शरीर में आत्मा को जानने के लिए हम अध्यात्म और विज्ञान दोनों के आधार पर आपको बताएँगे। हम आपको कुछ proof बताएँगे और कुछ fake news के बारे में भी बताएँगे। तो आप इस post को पढ़िए और कुछ नया आत्मा के बारे में जानिए।
sharir me aatma kaha rahti hai
sharir me aatma kaha rahti hai
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आध्यात्म का मतलब।

अधि = अंदर
आत्म = आत्मा के।

तो आध्यात्म का मतलब हो जाता है आत्मा के अंदर की जानकारी। हम आध्यात्म के बारे में आज नहीं बात करेंगे लेकिन इसे एक ढाल के रूप में प्रयोग जरूर करेंगे। क्योंकि यदि हम आध्यात्म का सहारा नहीं लेते हैं तो फिर आत्मा शरीर में कहा है इसको जानना मुश्किल हो जाता है।

शरीर में आत्मा कहाँ रहती है ? अध्यात्म के नजरिये से।

यदि आप किसी भी धर्म को मानाने वाले हो या धर्म को ना भी मानने वाले हो तो भी आध्यात्म बताता है कि हरेक मनुष्य के अंदर आत्मा होती है जो की शरीर को control करने वाली होती है उसे order देने वाली होती है।

आत्मा को सभी धर्म वाले मानते हैं चाहे वो हिन्दू हो ,मुस्लिम हो ,सिक्ख हो ,या क्रिस्चियन हो। भले ही वो अलग-अलग नाम से उसे बुलाते है :-
जैसे :- हिन्दू =आत्मा , मुस्लिम = रूह , क्रिस्चियन = soul

अब इससे तो साफ़ हो जाता है कि हरेक धर्म वाले आत्मा को मानते हैं लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आत्मा शरीर में कहाँ रहती है ? और कैसे वो शरीर को control करती है , और कैसे order देती है ?

तो इसका जवाब है कि शरीर में आत्मा दोनों भोरों के बिच में होती है। आँख के ऊपर जो दोनों भोरें हैं उनके बिच में आत्मा रहती है। जहां पर मताये बिंदी लगाती है और पुरुष तिलक लगाते हैं।

दरहसल ये बिंदी और तिलक पुराने लोग आत्मा के निसानी के लिए ही लगाते थे , जिससे की सभी एक दूसरे को आत्मा की दृष्टि से देखे और सभी में समानता की भावना पैदा हो। लेकिन समय के बीतते ये ज्ञान लुप्त हो गया और लोग सिर्फ style के लिए बिंदी और तिलक लगाने लगे।

Fake News :- कई लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि आत्मा दिल में रहती है। परन्तु यह मान्यता झूठी साबित हो चुकी है। जब से विज्ञान ने प्रगति ली है आज हजारों दिल के मरीज अपना ह्रदय परिवर्तन (heart transplant) करते हैं और उनकी मौत नहीं होती है। इससे यह साबित हो जाता है कि आत्मा दिल में नहीं रहती है।
उदाहरण :- Hvovi Minocher Homji, Jeff Carpenter.

अब बात करते हैं कि धर्मों के लोग क्या मानते हैं ? वे भी आजतक अंधविश्वास में जी रहे थे कि आत्मा दिल में होती है चाहे वो हिन्दू हो ,मुस्लिम हो या और कोई धर्म के हो। ये अज्ञानता सभी में भरी है की आत्मा दिल में होती है ऐसा इसलिए भी क्योंकि उन्होंने अपना धर्म शास्त्र को समझना छोड़ दिया है। अपने धर्म शास्त्र को तो सभी पढ़ते है लेकिन उसमे लिखी गहराइयों को नहीं समझ पाते।

ऐसा मैं इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि भगवतगीता में ही लिखा हुवा है कि आत्मा दिल में नहीं बल्कि दोनों भोरों के बिच में होती है लेकिन  आज के पंडित लोग सिर्फ तोते की तरह शास्त्रों को रटना जानते हैं उसके क्या अर्थ हैं इससे उनका कोई वास्ता नहीं होता है इसीलिए ये ज्ञान लुप्त हो गया है।

भगवतगीता 8/10 श्लोक :-
 प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव।
भ्रुवोर्मध्ये प्रणमावेश्य सम्यक स तम परं पुरुषमुपेति दिव्यम।।

इसका मतलब होता है कि जब भी कोई पुरुष (व्यक्ति) मरने की अंतिम स्थिति में हो तो वो  भक्ति भाव से और योग बल से अपने दोनों भोरों के बिच में आत्मा को स्थापित हुवा देखकर प्राण त्यागता है तो वो पुरुष परमात्मा को प्राप्त करता है।

इससे तो ये बात साबित हो जाती है कि भगवान ने भी आत्मा के रहने का स्थान दोनों भोरों के बिच में ही बताया है। भले ही आज के पंडित -विद्वान इस बात को ना जानते हो।


शरीर में आत्मा कहाँ रहती है ? विज्ञान के नजरिये से।

विज्ञान मानता है कि आत्मा जैसी चीज नहीं होती है। उनका मानना है कि शरीर ऊर्जा (energy ) से चलती है ना की आत्मा से। वह बुद्धि (brain ) को शरीर चलाने वाला मानती है। उनके अनुसार प्रकृति ने उन्हें बनाया है और जितने भी जीव-जंतु हैं वे प्रकृति की देन है। Bacteria से life की सुरुवात हुई और आज लाखों जिव-जंतु तक पहुँच चुकी है।

क्या आपको उनकी बात झूठ लगती है ? मुझे झूठ नहीं लगती। ऐसा मैं इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि वो भी उन्ही शास्त्रों की बात कह रहे हैं तो हम सभी भूल गए हैं।
हम सभी को tv में आत्मा को शरीर के तरह ही दिखाया गया है इसीलिए हमारी सोच (mentality) उसी तरह ही बन गयी है। लेकिन यदि आपने अपने धर्म शास्त्रों को अच्छे से पढ़ा होगा तो वहाँ पर आत्मा को एक चैतन्य शक्ति के रूप में दिखाया गया है। यानि आत्मा एक जीवित ऊर्जा (living energy ) है ना की कोई शरीर है। इसीलिए आत्मा को निराकार कहा जाता है। यानि वो इन आँखों से नहीं दिखाई देता।

आत्मा की ही energy की वजह से शरीर में खून का बहाव होता है और जब आत्मा शरीर से निकल जाती है तो वो खून का बहना रूक जाता है और जीवन मृत्यु में बदल जाती है।
जब आप शरीर से या बुद्धि से कोई hard काम करते हैं तब आपकी energy कम हो जाती है। आपको कमजोरी जैसा महसूस होता है। तब आप आराम करते है और भोजन खाते हैं तो आपकी energy वापस आ जाती है।

तो यहां पर ध्यान देने वाली बात है कि आत्मा की energy मन और बुद्धि को चलाती है जैसा की विज्ञान कहते हैं कि बुद्धि शरीर को control करती है दरहसल वो आत्मा की energy होती है जो शरीर को control करती है और उसे order देती है। वहीँ खाने से जो energy मिलती है वो शरीर को चलाती है।

आत्मा की  energy की कोई सिमा नहीं होती है। आत्मा की energy कम होने से लोग पागल भी हो सकते हैं और ज्यादा होने से महात्मा बुद्ध भी बन सकते हैं।

तो यहां भी विज्ञान से अनुसार ये बात साबित हो जाती है कि आत्मा होती है। भले ही उनको इसके बारे में पता ना हो। और वो दोनों भोरों के मध्य में होता है ये आध्यात्म के द्वारा पता चल जाता है।

Fake News :-  कई लोग हमेशा कहते रहते हैं कि scientist ने एक मरते हुवे युवक को सीसे के box में बंद कर दिया था और पुरे तरह से cover कर दिया था। और जब वो मरता है तब सीसे में एक छोटी सी छेद हो जाती है।
लेकिन ये experiment लोगों के द्वारा फैलाया गया हवा है (झूठ है ) .

दरहसल आत्मा निराकार है और वो कहीं भी पहुंचवाला है। यदि बिच में दीवाल भी हो तो भी वो पहुंचा जा सकता है।

Experiment 1 :-  अपने आत्मा की energy को बढ़ाने के लिए आप अपने दोनों भोरों के बिच में आत्मा को star की तरह चमकता हुवा देखने की practice करें। कुछ ही दिनों में आपको result दिखना शुरू हो जायेगा।

Experiment 2 :- आत्मा दोनों भोरों के बिच में है ये पता करने के लिए - देखें कि जब किसी व्यक्ति के शरीर में  बल्दूख की गोली चलायी जाती है तो वह व्यक्ति के जीवित रहने के chances होते हैं वहीँ यदि उसे दोनों भोरों के बिच में चलाई जाये तो वो वहीँ मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। तो इससे ये बात साबित हो जाता है कि आत्मा दोनों भोरों के बिच में रहती है ना की शरीर में।

तो दोस्तों इस post से हमें ये पता चल जाता है कि शरीर में आत्मा कहाँ रहती है और कैसे वो शरीर को चलाती है। मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको ये जानकारी मदद करेगी और फायदा पहुंचाएगी।


आप इसे अन्य लोगों तक जरूर पहुंचाए। आप इसे अपने watsapp ग्रुप में , facebook में share करके और लोगों तक भी यह जानकारी पहुंचा सकते है।
अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत-बोहोत धन्यवाद।
भगवान सर्वव्यापी है या एकव्यापी ?

भगवान सर्वव्यापी है या एकव्यापी ?


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे भगवान के सर्वव्यापक होने या एकव्यापक होने के बारे में। और यह भी जिनेंगे कि भगवतगीता में इसके विषय में क्या कहा गया है। भगवान सर्वव्यापी है या एकव्यापी है।

bhagwan sabhi jagah hai ya nahi
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सर्वव्यापी का अर्थ 

सर्वव्यापी का अर्थ होता है , जो हर जगह है , पत्थर -ठीठर हर जगह। भगवान को सर्वव्यापी कहने का अर्थ है ,भगवान भी सभी जगह है , पत्थर -ठीठर में भगवान है। यह बात बोहोत अच्छी रीती ध्यानपूर्वक सोचना चाहिए कि यदि हर जगह भगवान है :-
तो हर जगह सुख -शांति होनी चाहिए , क्योंकि भगवान को दुःख हर्ता सुखकर्ता कहा जाता है

भगवान सर्वव्यापी है या एकव्यापी ?

जैसे लोग कहते है -भगवान सर्वव्यापी है , कण -कण में भगवान है , तो ये बात सुनने में तो अच्छा लगता है लेकिन हज़म नहीं होती है। लोग पत्थरों को , पेड़ों को भगवान मानकर पूजते हैं , उपवास करते है, और ना जाने क्या -क्या करते हैं। लेकिन जब उनसे पूछा जाये , तब वह कुछ नहीं बोल पाते।

जैसे - उपवास , उप =निकट, वास =रहना यानी भगवान के नजदीक रहना , तो वह खाना नहीं खाने को उपवास समझ लेते है।

तो उसी तरह भगवान सभी जगह नहीं है , अगर होती तो पूजा - पाठ करने की दरकार नहीं होती। सभी जगह तो भगवान है तो फिर अलग से मंत्र पढ़कर क्रियाक्रम क्यों किया जाता है ?

पहले इस्लामी भी मानते थे :- कि खुदा अर्श (ऊपर ) में रहता है फर्स (नीचे )नहीं रहता है।
लेकिन अब वे भी कहते हैं कि जर्रे -जर्रे में खुदा है। अरे - खुदा का तो अर्थ ही यही होता है " कि जो खुद आये तो उसे खुदा कहते हैं " और उसी को सर्वव्यापी कह दिया।

जब खुदा है ही सब जगह -तब 5 बार पुकारने की क्या जरूरत है , जो सामने होता है उसे पुकारने की जरूरत  होती है क्या ? उसे तो धीरे से आवाज़ लगाओ तो वह हाज़िर हो जाता है।

ईसाई भले कहते हैं , God is one , God is light , Godfather लेकिन वह भी मानते है कि (God is everywhere ) भगवान सभी जगह है।
अरे ! जिसे father कहते हैं - वह सब जगह कैसे हो सकता है। क्या आपके इतने सारे father है ?
ये क्या बात फैला दी दुनिया में , भगवान को पत्थर -ठिठर में ढकेल दिया है , जैसे भगवान को गाली देते है।
ये भी जाने :-


भगवान को सर्वव्यापी किसने बनाया ?

जब से संन्यासी आए तब से यह ज्ञान चारों तरफ फैला कि भगवान सर्वव्यापी है , पहले सब धर्म के लोग भगवान को एकव्यापी ही मानते थे ,संन्यासियों ने भगवान को चारों तरफ खोजा , जब कहीं नहीं मिला तब उन्होंने कह दिया भगवान सर्वव्यापी है। शिवोअहं। मैं ही - हम ही शिव है , हम ही भगवान का रूप हैं आओ मेरी पूजा करो।
और लोग आज भी उनकी पूजा कर रहे हैं , उन्हें भगवान मानते हैं।

ये सब करनी संन्यासियों के धर्मपिता शंकराचार्य की है - जिन्होंने सारे शास्त्रों का खंडन करने के बाद गलत अर्थ निकाला। उन्होंने "एको ब्रह्म दुतियो ना अस्ति " का गलत अर्थ समझा , उन्होंने इसका अर्थ अपने ऊपर ले लिया और कह दिया इस दुनिया में हम ही ब्रह्म हैं ,हम भी ब्रह्म ,तुम भी ब्रह्म , "आत्मा सो परमात्मा " का उल्टा ज्ञान सारे विश्व में फैला दिया। और सभी धर्मो का खंडन कर दिया।

दरहसल इसका अर्थ होता है :- दुनिया में एक ही (भगवान ,GOD ,अल्लाह) है और कोई दूसरा नहीं है। इसीलिए God is one , अल्लाह ताला ,त्वमेव माता च पिता कहा जाता है।

आत्मा सो परमात्मा :- यह बात झूठी है , हरेक आत्मा में परमात्मा नहीं है , यदि यह सत्य है ,तो आज लोग इतने मार -काट कर रहे हैं ये क्यों कर रहे हैं। परमात्मा भी मार -काट करता है क्या ? इज़्ज़त लुटता है ? चोरी -डकैती करता है क्या ?
यदि आत्मा सो परमात्मा यह बात सत्य है , तो कुत्ते -बिल्ले सभी को बाप कहना चाहिए। Godfather कहते है ना भगवान को , तो कुत्ते -बिल्ले को Godfather क्यों नहीं कहते -उन्हें भी बाप कहिये ना।


भगवान एकव्यापी है -भगवतगीता 

वास्तव में (भगवान ,GOD ,अल्लाह) एक है , और हम सभी आत्माओं का बाप है। और वह एकव्यापी है। सर्वव्यापी नहीं है।
                            इसीलिए गीता में कहा हुवा है :-

ना तद भास्यते सूर्यो ना ससांको ना पावकः। 
 यद् तद गत्वा ना निवर्तन्ते ताड़ धाम परम मम।। (15 /6 )

इसका मतलब है -जहां पर सूर्य ,चंद्र ,अग्नि का प्रकाश नहीं पहुँच सकता , जहां पर आत्माये शरीर के साथ नहीं जा सकती ,वह मेरा परमधाम है।

यहां पर तो भगवान ने अपने रहने का स्थान परमधाम बता दिया है ,तो वह सर्वव्यापी कैसे हो सकता है। इसीलिए हरेक धर्मपिता अपनी उंगली ऊपर किये हुवे दिखाते हैं , कि भगवान अपने घर परमधाम में है। भले उनकी नज़र अपने हरेक बच्चे में है और हरेक बच्चा उनको याद करता है। लेकिन वह सर्वव्यापी नहीं है। वह ब्रह्मा ,विष्णु शंकर में प्रवेश करके अपना कार्य करते है तो त्रिमूर्ति शिव कहे जाते है। और इसीतरह वह एकव्यापी है - सर्वव्यापी नहीं है। आप खुद सोचिये।

Om Shanti Kya Hai? ॐ शांति की जानकारी

Om Shanti Kya Hai? ॐ शांति की जानकारी


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे ॐ शांति के बारे में। कि ॐ शांति क्या है ? ॐ शांति का मतलब क्या होता है ? इसकी सुरुवात कब और कैसे हुई ? ॐ शांति का इतिहास क्या है ? और वर्तमान समय में इसकी स्थिति क्या है ?

तो यदि आप भी ॐ शांति के बारे में जानना चाहते है तो ये जानकारी सिर्फ आपके लिए है। आप इसे अंत तक जरूर पढ़े।

om shanti kya hai
om shanti kya hai


ॐ शांति का मतलब ?

ॐ शांति का मतलब होता है कि "मैं आत्मा ज्योतिबिंदु शांत स्वरुप हूँ "
जब भी हम एक दूसरे से मिलते है तो "ॐ शांति " कहते हैं। इससे हम एक दूसरे के प्रति आत्मिक भाव को दरसाते है कि हम सभी आत्माएं है। और आपस में भाई -भाई हैं। भले ही शरीर से हम स्त्री हो ,दूसरे जाती ,धर्म के हो लेकिन आत्मिक भाव से हम सभी भाई -भाई हैं।

लोग यूँ ही कह देते हैं - हिन्दू ,मुस्लिम ,सिक्ख ,ईसाई आपस में हम भाई -भाई। लेकिन कोई पूछे कि कैसे हम भाई -भाई हैं ? तो फिर जवाब नहीं दे पाते।
तो इसका जवाब है कि आत्मिक दृस्टि से हम सभी भाई -भाई है और यही ॐ शांति का मतलब है।


ॐ शांति क्या है ? ॐ शांति की जानकारी। 

ॐ शांति सिर्फ एक सत्संग नहीं है। यह गलतफैमी नए -नए लोगों में होती है। ओर सत्संगों की तरह वह इसे भी समझते हैं। लेकिन यह सिर्फ सत्संग नहीं है अपितु यह "यज्ञ " है।

और इस यज्ञ का नाम है :- राजसूय अश्वमेघ अविनाशी रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ।
यह यज्ञ अधिक से अधिक 100 वर्षों का है जिसकी सुरुवात स्वयं परमपिता शिव करते हैं और जिसमे सारी दुनिया की आहुति दी जाती है।

ॐ शांति की सुरुवात कैसे हुई ?

(अधिक लम्बा ना हो जाये इसीलिए यह जानकारी संक्षिप्त में है। )
इसकी सुरुवात 1936 में हुई। कलकत्ते में परमपिता शिव ने ब्रह्मा (दादा लेखराज ) में प्रवेश करके इस यज्ञ की सुरुवात की।
पहले दादा लेखराज को तरह -तरह के साक्षात्कार होते थे , वे उन साक्षात्कारों को नहीं समझ पाते थे , तो उन्होंने अपने 12 गुरुओं से पूछा , उनको समाधान नहीं मिला। फिर वे कलकत्ता गए अपने भागीदार के पास -वहाँ से उनको समाधान मिला।

और यह पता चला कि - इस दुनिया का अंत अब निकट है , नई दुनिया सतयुग की स्थापना होने वाली है जिसकी स्थापना की जिम्मेवारी मुझे (दादा लेखराज ) को मिली है।

वे ही सतयुग के प्रथम कृष्ण बनेंगे। atom बॉम्ब की विभीषिका से सारी दुनिया विनाश को पायेगी। सभी आत्माएं धर्मराज की सजा खाकर -पतित से पावन बनकर अपने घर परमधाम जाएगी।

कुछ श्रेष्ठ आत्माओं का शरीर बर्फ में दब जायेगा। फिर विनाश के बाद , आत्माएं परमधाम से वापस आकर बर्फ में दबे शरीरों में प्रवेश करेंगी और इसी तरह सतयुग नई दुनिया की सुरुवात होगी।
जहां प्रकृति सर्वगुण संपन्न और आत्माएं 16 कला सम्पूर्ण होगी।


ॐ शांति का इतिहास?

कलकत्ते में साक्षात्कारों का पता पड़ने के बाद वे वापस अपने घर सिंध हैदराबाद आ गए। (जो अभी पाकिस्तान में है ) पहले इस यज्ञ का नाम ॐ मण्डली था। लोग ॐ -ॐ ध्वनि का उच्चारण करते थे। कई लोगों को साक्षात्कार भी होता था।

बताया जाता है कि सुरुवात के 10 साल इस यज्ञ को incognito (बाहरी दुनिया से अलग ) - गुप्त रखा गया। जिसमे लोग ध्यान में जाते थे और प्यू की वाणी चलती थी ( जिस तरह अभी मुरली चलती है )

और परमपिता शिव अन्य कई बच्चों में भी प्रवेश करते थे और प्यू की वाणी चलाते थे और ब्रह्मा बाबा लिखते थे।
(मुरली पॉइंट - ऐसे ऐसे बच्चे थे जो  मम्मा बाबा को भी drill कराते थे teacher हो बैठते थे ,और यह बैठ लिखते थे। )

फिर 1947 में ,देश आज़ाद होने के बाद यह संगठन करांची आ गया। और फिर 1951 में माउंट आबू राजस्थान में स्थापित हो गया। तब से यह यज्ञ विस्तार तो पाते जा रहा है। 1969 में दादा लेखराज (ब्रह्मा ) का शरीर छूट जाता है। और दीदी - दादियां यज्ञ के संचालक बनते है।

मुख्य बात - मृत्यु होने के बावजूद ब्रह्मा की आत्मा गुलज़ार दादी में प्रवेश करके direction देते है अव्यक्त वाणी चलाते है।  और इसे सुनने के लिए हज़ारों की संख्या में लोग देश -विदेश से आते हैं। इसे live tv के द्वारा भी दिखाया जाता है। तब ये यह यज्ञ इसी तरह चल रहा है।


ॐ शांति की स्थिति -वर्तमान समय में। 

वर्तमान समय में परमपिता शिव गुप्त रूप में कार्य कर रहे हैं। जिसके बारे में अव्यक्त वाणी में कहा -

पहले बाबा ब्रह्मा में प्रवेश किये , फिर गुलज़ार में किये। अब किसमे प्रवेश किये ? जिसमे प्रवेश करना था उसमे किये। .... बाबा की सिर्फ आवाज़ जानी चाहिए ,किसका तन लिया यह प्रत्यक्ष नहीं होना चाहिए क्योंकि तीनो नदियों में एक नदी को गुप्त दिखाया है ना। ( अव्यक्त वाणी - 23 . 07 . 2017 )

तो शिव का पार्ट अभी भी चल रहा है। स्थापना ,पालना ,विनाश का कार्य अब पूरा होने वाला है। पुरुषार्थ का समय अब ख़त्म हुवा।
ऐसे देश -विदेश में हज़ारों ॐ शांति के आश्रम हैं - जहां पे जाकर आप राजयोग का ज्ञान ले सकते हैं और अपने जीवन को हिरे तुल्य बना सकते हैं।
ॐ शांति। धन्यवाद।

हमें ख़ुशी होगी यदि आप इस जानकारी को ओर लोगों तक पहुंचाए। इसे आप अपने facebook ,whatsapp में भी share कर सकते हैं। और जरूरतमंद को इसके बारे में बता भी सकते हैं।

ॐ शांति से सम्बंधित लेख:- 


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3 लोक कौन से हैं ? मनुष्य ,सुक्ष्म, ब्रह्म लोक।

3 लोक कौन से हैं ? मनुष्य ,सुक्ष्म, ब्रह्म लोक।


नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे 3 लोकों के बारे में। यही कि 3 लोक कौन से है ? वहाँ पर कौन रहते है ? और उनतक कैसे पहुंचा जाये। 
तो इस post की सुरुवात करते है और जानते है मनुष्य लोक ,सुक्ष्म लोक और ब्रह्मलोक के बारे में। 


3 lok kaun se hai
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1. साकार मनुष्य लोक। स्थूलवतन। 

नाम से ही पता चल जाता है कि जहां मनुष्य आत्माये रहते है तो उस स्थान को मनुष्य लोक कहते है। यहां पर मनुष्य के साथ -साथ जानवर , पशु -पक्षी इत्यादि जीव रहते है। जिसे पृथ्वीलोक भी कहते है। 
इस लोक में जीव 5 तत्वों से बनते है - जिसे - जल ,वायु ,अग्नि ,पृथ्वी ,आकाश कहते है। जिसे हम प्रकृति भी कहते हैं। यहां के लोग जन्म -मरण के चक्र में आते है। 
यहां सुख -दुःख, रात -दिन ,जन्म -मृत्यु से जीवन चलता है। 

ये सृष्टि आकाश तत्व के अंश मात्र में है ( आकाश इतना बड़ा है कि उसके सामने अंश के बराबर है ) . इसे सामने त्रिलोक के चित्र में उलटे वृक्ष के रूप में दिखाया गया है। क्योंकि इसके बीजरूप परमपिता परमात्मा ऊपर रहते हैं। 

ये भी पढ़े :-

  1. Krishna Meaning in Hindi
  2. India Meaning in Hindi

2. सुक्ष्म लोक - देव लोक। सुक्ष्मवतन 

यह लोक , मनुष्य लोक के तरागमन के पार ( solar system के पार ) जहां प्रकाश ही प्रकाश है। 
उस लोक में ब्रह्मा ,विष्णु ,शंकर की अलग -अलग पूरियां है। इन देवताओं के शरीर हड्डी -मांसादि से नहीं बल्कि प्रकाश के है। जिसे दिव्य सुक्ष्म शरीर भी कहते है। यहां दुःख अथवा अशांति नहीं होती। 
इन्हे दिव्य (ज्ञान) नेत्र के द्वारा ही देखा जा सकता है। 
यहां संकल्प ,क्रियाये ,बात -चित होती है लेकिन आवाज नहीं होती। 

यहां सभी बातें बेहद में - यानि आत्मा की stage के बारे में कहा गया है। 

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3. ब्रह्मलोक , परलोक , परमधाम या मूलवतन। 

इन लोकों के भी पार एक और लोक है जिसे - ब्रह्मलोक , परलोक , परमधाम ,मूलवतन,शान्तिधान ,निर्वाणधाम ,शिवलोक आदि नामों से जाना जाता है। इसमें सुनहरे लाल रंग का प्रकाश फैला हुवा है जिसे ही ब्रह्म तत्व , छठा तत्व और महातत्व कहा जाता है। इसमें आत्माएं मुक्ति की अवस्था में रहती है। यहां हरेक धर्म की आत्माओं का अलग -अलग संस्थान (sections ) है। 

यह सभी आत्माओं का घर है ,यहीं से सभी आत्माएं पृथ्वी पर जाती है अपना part बजाने। यहां आत्माओं के साथ -साथ आत्माओं का बाप , शिव भी रहते है। जिसे अल्लाह , Godfather कहते है।
भगवान का घर यही है , और संगमयुग आने पर वह पृथ्वी पर जाते है और सभी आत्माओं को पतित से पावन बनाकर वापस अपने घर ले आते है। (जो समय अभी चल रहा है ) 

और जब सभी आत्माओं का पार्ट ख़त्म हो जाता है (महाविनाश ) के बाद फिर सभी आत्माये वापस अपने घर परमधान चली आती है। और फिर से यह चक्र घुमता है। 

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3 लोकों को विस्तार से समझिये। 

आत्मा इस सृष्टि में कहाँ से आई ? ये किट , पशु -पक्षी ये सब आत्माये हैं। सबके अंदर आत्मा है
गीता में एक श्लोक आया है जिसमे भगवान ने अर्जुन को बताया है- कि मैं कहाँ का रहने वाला हूँ ? "न तद भास्यते सूर्यो न शशांको न पावकः। 
यद् गत्वा न निवर्तन्ते तद धाम परमम् मम। " (गीता 15 /6 )

अर्थात जहां सूर्य ,चंद्र ,सितारों का प्रकाश नहीं पहुँचता , जहां अग्नि का प्रकाश नहीं पहुँचता ,वह मेरा परे ते परे धाम है, जहां का मैं रहने वाला हूँ।
 यह श्लोक इस बात का प्रमाण है कि भगवान परमधाम के रहने वाले हैं , सर्वव्यापी नहीं है। यहां साबित किया गया है कि 5 तत्वों की दुनिया से परे एक और ऐसा एक छठा तत्व है -ब्रह्मलोक। 

जिसे अंग्रेज कहते है supreme world , मुसलमानो में कहा जाता है "अर्श " - खुदा अर्श में रहता है , फर्स में नहीं। लेकिन अब तो वे भी मानने लगे है कि खुदा जर्रे -जर्रे में है। जैनी लोग उसे 'तुरिया धाम ' मानते है। 

तात्पर्य यह है कि हर धर्म में उस धाम की मान्यता है। हम सभी आत्माये उस परमधाम की रहने वाली है। जहां पर supreme soul शिव भी है। वे जन्म -मरण के चक्र से न्यारे है। बाकि जितनी भी आत्माये है वह जन्म -मरण के चक्र में आ जाती है। 

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परमधाम से सभी आत्माये किस स्थिति से नीचे उतरती है। 

जितना ही इस सृष्टि पर आ करके श्रेष्ठ कर्म करने वाली आत्मा है ,वह उतना ही परे -ते -परे शिव के नजदीक रहने वाली आत्मा होगी और जितने ही निष्कृष्ट कर्म करने वाली , पार्ट बजाने वाली आत्मा है , वह उतना ही  नीचे की ओर रहेगी। उनकी संख्या ज्यास्ती होती है। 

दुस्ट कर्म करने वालों की संख्या ज्यास्ती और श्रेष्ठ कर्म करने वाली देव आत्माओं की संख्या कम ,जो 33 करोड़ कही जाती है। जिनकी संख्या ऊपर की ओर कम होती जाती है वे श्रेष्ठ आत्माएं हैं। 

दुनिया की हर चीज 4 अवस्थाओं से गुजरती है - सतोप्रधान (बचपन ) ,सतोसामान्य (किशोर अवस्था ), रजोप्रधान (जवानी ) और तमोप्रधान (बुढ़ापा ) . 
ब्रह्मलोक से आत्माओं का उतरने का भी यही क्रम है कि जितनी श्रेष्ठ आत्माएं हैं उतना ही श्रेष्ठ युग में उतरती है। 

जो 16 कला सम्पूर्ण आत्माएं हैं वह सतयुग के आदि में उतरती है , जो 14 कला सम्पूर्ण आत्माएं है वे त्रेतायुग के आदि में उतरती है , जो 8 कला सम्पूर्ण आत्माएं है वे द्वापर में उतरती है और कलियुग में कलाहीन सुरु हो जाती है। कलाहीन आत्माएं , जिनका काम औरों को दुःख देना ही है , जिनके लिए गीता में आया है - "मूढ़ा जन्मनि जन्मनि ". (गीता 16 /20 ) श्लोक। 

वे नारकीय योनि में आकर के गिरती हैं। वे नीचतम आत्माएं कलियुग के अंत में आती हैं जब सारी ही आत्माएं नीचे उतर आती हैं ,जिनको वापस जाने का रास्ता नहीं मिलता , बल्कि यहीं जन्म -मरण के चक्र में आती रहती हैं और शरीर द्वारा सुख भोगते -भोगते तामसी बन जाती हैं। 

इस सृष्टि पर आने के बाद आत्मा वापस जाती है या नहीं ?

बीज है , कई बार बोया जायेगा तो उसकी शक्ति कम हो जाती है। पत्ता छोटा , फल छोटा ,वृक्ष छोटा और आखरीन होते -होते वह फल देना ही बंद कर देता है। तो ऐसे ही आत्माओं का यह हिसाब है कि जब एक बार ऊपर से नीचे आ गई तो वे नीचे ही उतरती जाती है। 

आप इस सृष्टि के 2500 वर्ष पूर्व की history ले लीजिये। दुनिया में सुख -शांति , दुःख और अशांति में बदलती गई है या सुख शांति बढ़ती गयी ? history क्या कहती है ? जैसे -जैसे जनसंख्या बढ़ती गई ,ऊपर से आत्माएं उतरती गयी , तो जनसंख्या के बढ़ने से दुनिया में दुःख और अशांति बढ़नी ही बढ़नी है और वह बढ़ती ही गई। 

एक अति (end, extremity )   होती है कि जब सारी ही आत्माएं नीचे उतर जाती है। दुनिया में कीट , पशु पक्षी , पतंगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। देश -विदेश में इतनी कीटनाशक दवाइयां छिडकी जा रही है , तो भी उनकी संख्या में कमी नज़र नहीं आ रही है। 

मक्खी , मछरों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। आखिर ये आत्माएं आ कहाँ से रही है ? उसका समाधान गीता के अनुसार ही है , लेकिन स्पस्ट किसी ने नहीं किया। अभी यह बात स्पस्ट हो रही है कि ये आत्माएं उस आत्म -लोक से आ रही है और इसी दुनिया में 84 के जन्म -मरण का चक्र काटते हुवे अपना -अपना पार्ट बजाते रहती है। 

तो भाइयों यह थी जानकारी 3 लोकों के बारे में। और इससे सम्बंधित बढ़ती आबादी और आत्मा के घर के बारे में। मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको यह जानकारी बेहद पसंद आई होगी। 

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