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शरीर क्या है और आत्मा क्या है ?

शरीर क्या है और आत्मा क्या है ?

 शरीर क्या है और आत्मा क्या है 

आज किसी से पूछा जाए कि आप कौन है ? आपका परिचय क्या है ? तो सब अपने नाम और धंधे के बारे में बताने लगेंगे। 


कहेगा मैं रविश कुमार पत्रकार हूँ।  मैं अजय कुमार डॉक्टर हूँ। 
कोई इंजीनियर होगा तो कहेगा मैं इंजीनियर हूँ कोई डॉक्टर होगा तो कहेगा मैं डॉक्टर हूँ। सब अपने नाम और धंधे के बारे में बताने लगेंगे। 


लेकिन फिर उनसे पूछा जाए कि जब आप जन्म लिए थे , तब भी डॉक्टर और इंजीनियर थे क्या ?
जब हम जन्म लेते हैं तब हमारा ना कोई नाम होता है और ना कोई पद होता है। तो हम कौन है ?जो कभी नहीं बदलता , हम जन्म लेते हैं तब भी वही रहते हैं नौजवान में भी वही रहते हैं , बुढ़ापा में भी वही रहते हैं और मृत्यु के बाद भी वही रहते हैं। तो हम कौन हैं ?


बहुतों को समझ में आ गया होगा। हम एक चैतन्य आत्मा हैं।  यानि हम एक प्राण हैं। हम एक शुक्ष्म ज्योतिबिंदु आत्मा हैं। अब कोई कहे क्या प्रूफ हम आत्मा कैसे हैं ?


तो इसको ऐसे समझिये - जब हम कहते हैं मेरा घर ,इसका मतलब मैं अलग हूँ और घर अलग है। मैं घर से अलग एक व्यक्तित्व हूँ। मैं घर में रहता हूँ लेकिन मैं घर नहीं हूँ। 


वैसे ही जब हम कहते हैं मेरा गाँव , तो गाँव अलग है और मैं अलग हूँ। 
फिर कहते हैं मेरा देश , यानि देश अलग है और मैं अलग हूँ। मैं देश में रहता हूँ , मैं देश नहीं हूँ। 


* वैसे ही हम कहते हैं मेरा पैर ,मेरा हाथ , मेरा आँख , मेरा मुख मेरा शरीर यानि मैं शरीर से अलग हूँ। मैं शरीर से अलग एक व्यक्तित्व हूँ। 


शरीर अलग है और मैं अलग हूँ। मैं शरीर में रहता हूँ , लेकिन मैं शरीर नहीं हूँ। मैं आँखों से देखता हूँ , कानों से सुनता हूँ , मुख से बोलता हूँ। तो यहाँ पर स्पष्ट हो रहा है मैं कहने वाला कोई और है और शरीर अलग है। यानि शरीर अलग है और आत्मा अलग है। 


sharir kya hai aur aatma kya hai
आत्मा क्या है 


शरीर और आत्मा में अंतर 


शरीर :- 

शरीर 5 तत्वों से बनता है :- जल ,वायु ,अग्नि ,पृथ्वी और आकाश। 
शरीर में 70 % जल है , वायु से हम स्वांस लेते हैं , अग्नि से भोजन का पाचन होता है जिसे हम जठर अग्नि कहते हैं ,पृथ्वी - हाड मांस का शरीर है और आकाश यानि खाली स्थान शरीर में है। 


आत्मा :- 

वहीँ आत्मा 3 चीजों से मिलकर बनता है। मन -बुद्धि और संस्कार। 
मन विचार करता है , बुद्धि निर्णय लेती है और हम जैसे कर्म करते हैं वैसे हमारे संस्कार बनते हैं। 
मन क्या करता है? विचार करता है यानि सोचता है , जैसे ताजमहल के बारे में किसी ने कहा , तो ताजमहल का दृश्य सामने आ गया। और ताजमहल के बारे में जो भी ज्ञान होगा वो सामने आ जायेगा। 
तो मन दृश्य और ज्ञान के आधार पर विचार करता है। 
फिर है बुद्धि :- बुद्धि निर्णय लेती है कि क्या सही है और क्या गलत है। 


जैसे :- मुझे ताजमहल जाना हो ,तो ट्रैन से हम जाते हैं तो 1000 रुपये खर्च होते हैं वहीँ बस से जाते हैं तो 2000 रुपये खर्च होते हैं। 


तो बुद्धि यहाँ निर्णय लेती है कि ट्रैन से जाना फायदेमंद है या बस से। तो यहां ट्रैन से जाने में 1000 रुपये का फायदा हो रहा है , तो ट्रैन से जाना अच्छा है। तो बुद्धि इस तरह से निर्णय लेती है कि क्या सही है उसके लिए और क्या गलत है।


संस्कार :-
हम जैसे कर्म करते हैं वैसे हमारे संस्कार बनते हैं। अब हम ताजमहल गए देखने , वहाँ देखें कि एक बूढी औरत रोड क्रॉस करना चाह रही है , तो मदद कर दिए , इसका मतलब आपके संस्कार अच्छे हैं ,क्या ? तो मदद करने के संस्कार हैं। 


वैसे ही कोई देख करके भी बैठा है , इसका मतलब उसके संस्कार अच्छे नहीं है। क्या संस्कार है ? तो आलस्य के। 
तो हम जैसे कर्म करते हैं वैसे ही हमारे संस्कार बनते हैं। और जैसे हमारे संस्कार होंगे वैसे ही हमारा हमारा अगला जन्म होगा। कोई बचपन से बोहोत अच्छा गाता है , कोई बचपन से ही विद्वान है , इसका मतलब उसके पिछले जन्म के संस्कार अच्छे हैं। 


तो आत्मा मृत्यु के बाद संस्कार लेकर जाती है ,और उसी के अनुसार उनका नया जन्म होता है। 


आत्मा का सम्बन्ध शरीर के साथ कैसे है ?


यहाँ आत्मा का सम्बन्ध मस्तिष्क से जुड़ा है और मस्तिष्क का सम्बन्ध सारे शरीर में फैले ज्ञान तंतुओं से है। आत्मा में ही पहले संकल्प उठता है और फिर मस्तिष्क तथा तंतुओं द्वारा व्यक्त होता है। आत्मा ही शांति तथा सुख -दुःख का अनुभव करती है  तथा निर्णय करती है और उसी में संस्कार रहते हैं। 


इसका अर्थ यही है कि मन और बुद्धि आत्मा से अलग नहीं है। लेकिन आज आत्मा अपने को भूलकर देह (शरीर ) स्त्री , पुरुष ,बूढ़ा , जवान समझने लगा है। और अपने को शरीर समझना ही सभी दुखों का कारन है। 


शरीर में आत्मा का निवास कहाँ है ?


आत्मा एक चेतन (प्राण ) एवं अविनाशी ज्योतिबिंदु है। जो कि शरीर में भृकुटि में निवास करती है। आत्मा का वास भृकुटि में होने के कारन ही मनुष्य गहराई से सोचते समय यहीं हाथ लगाता है। जब वह कहता है कि मेरे तो भाग्य ही खोटे हैं ,तब भी वह यहीं हाथ लगाता है। 


आत्मा का वास यहां होने के कारन ही भक्त लोगों में यहां ही बिंदी और तिलक लगाने की प्रथा है। 
उदहारण :- मोटर और ड्राइवर 
शरीर को गाडी समझिये और आत्मा को ड्राइवर। जिस तरह ड्राइवर गाडी को चलाता है वैसे ही आत्मा शरीर को चलाती है। ड्राइवर के  बिना गाडी का कोई महत्व नहीं , वैसे ही आत्मा के बिना शरीर का कोई महत्व नहीं। दोनों एक दूसरे के पूरक है। 


इसीलिए परमपिता परमात्मा कहते हैं "आत्मा की पहचान " होने पर ही हम इस शरीर को अच्छे से चला सकते हैं और अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। आत्मा की पहचान होने पर ही लोग स्वयं सुख - शांति में रहते हैं और दूसरों को भी सुख -शांति ही देते हैं। 


ॐ शांति। 


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मन को Control कैसे करे - How to Control Your Mind

मन को Control कैसे करे - How to Control Your Mind

 नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे कि मन को control कैसे करते हैं? जिसमे हम बात करेंगे -


  • मन क्या है ?
  • मन का क्या काम है ?
  • मन को control कैसे करे ?
  • मन क्यों सभी को नाच-नचाता है ?
  • मन क्यों अपने अंदर जंजीर लपेट ली है ? 
  • मन का स्वामी कौन ?          

mann ko control kaise kare
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मन को control करने से पहले हमें मन के बारे में जानना चाहिए , कि मन क्या है ? और कैसे काम करती है ?

मन क्या है ?


मन आत्मा की 3 शक्तियों में से एक है। आत्मा की 3 शक्ति है - मन ,बुद्धि ,संस्कार। तो मन आत्मा की सबसे पहली शक्ति है। 


मन का क्या काम है ?


मन का काम है सोचना। यह हर पल कुछ ना कुछ सोचता ही रहता है। कभी अच्छा ,कभी बुरा। कभी अच्छे विचार से हंसाता है तो कभी बुरे विचार से रुलाता भी है। 


मन का और क्या-क्या काम है ?


मन शरीर की सभी इन्द्रियों का स्वामी है। 

शरीर की हरेक इन्द्रियां विषयों की ओर आकर्षित होती है। शरीर की हरेक इन्द्रियां भोग-भोगना चाहती है। जैसे -आँख अच्छे दृश्य देखना चाहता है ,जीभ -अच्छा भोजन खाना चाहती है , ऐसे ही हरेक इन्द्रियां भोग-भोगना  चाहती है। 

अब मनुष्य को तो भोग-भोगना छोड़ तो नहीं देना चाहिए। लेकिन निराशक्त होकर भोग -भोगना चाहिए। कि ये जो कुछ भी है सब प्रभु की देन है , प्रभु की याद में भोग -भोगना चाहिए। कोई भी इन्द्रियों से कर्म करें तो उसमे प्रभु की याद होनी चाहिए। 

और यदि ऐसा नहीं किये तो इन्द्रियों की उत्तेजना बढ़ जाती है ,मन ओर भी चंचल बन जाता है। वह विषयों को भोगने लगता है। और जो जितना भोगी होता है ,वह उतना रोगी भी बनता है। और फिर मन control नहीं हो पाता। 


मन को Control कैसे करे ?


मन को control करने के लिए 2 चीजों की जरूरत है। 

  1.  अभ्यास 
  2. वैराग्य। 

मन को control करने के लिए अभ्यास :-


मन को अपने आत्मा में स्थिर करो , वह वहाँ से भागेगा , उसे फिर लाओ , वह फिर भागेगा , उसे फिर पकड़ो। ऐसा बार -बार करना पड़ेगा। 


जैसे - घोडा का नवजात शिशु , वह पल-पल फुदकता रहता है , कोई उसपर सवार होना चाहे , तो वह उसे गिरा देता है। लेकिन सवार दृढ संकल्पी है , तो वह एक दिन घोड़े पर सवारी कर ही लेता है और जैसे चाहे वैसे घोड़े को नचाता है। 


उसी तरह अभ्यास करते-करते हमारा मन भी control में आ जायेगा और फिर हम जैसा चाहे वैसा अपनी मन को चलाएंगे। 


मन को control करने के लिए वैराग्य -


मन को control करने के लिए आत्मा को ये समझना होगा , कि ये सारे भोग नश्वर है , नस्ट होने वाले हैं। यह तो माया के द्वारा बनाया गया कुछ समय के लिए Pomp & Show (दिखावा ) है। जो जल्द ही ख़त्म होने वाली है। 


जितने भी भोग है वह कुछ समय सुख देकर सदा काल के लिए दुःख देने वाले हैं , सभी दुश्मन हैं। 


जैसे - एक अच्छा मित्र होता है ,एक बुरा मित्र होता है। जो अच्छा मित्र होता है वह बुरे वक़्त में आपका साथ देता है वहीँ बुरा मित्र आपसे सुख तो बांटता है लेकिन जब दुःख शुरू होता है तो वह किनारा कर लेता है। 


वैसे ही मन है , मन सुख तो चाहता है ,लेकिन जब इन्द्रियां कमजोर बन जाती है तो मन सहयोग देना बंद कर देती है और आत्मा को सारी तकलीफ होना शुरू हो जाता है। 


मन क्यों सभी को नाच-नचाता है ?


जबतक आप मन को विषयों के आधिन रहने देंगे , तब तक वह आपको नाच-नचाता रहेगा। जबतक आपने मन को खुला छोड़ रखा है तबतक आप माया के मोह जाल में फंसे हुवे हैं। 


हरेक वस्तु अपनी ओर आकर्षित करती है - चाहे वह सुन्दर कन्या हो , Internet हो ,शराब हो इत्यादि। अब यदि आपने मन को संभाला नहीं ,तो आप और भी गड्ढे में जाते रहेंगे। आपकी ख़राब आदत और भी ख़राब होते जाएगी। और मन आपको नाच-नचाता रहेगा। 


क्योंकि मन ही मान अपमान की ख़ुशी अथवा दुःख भोगता है। मन ही वहम में डालता है। मन ही अपनी खुशियों से ,दुःख से मोह करता है। और मोह की जाल में फंसाकर प्राणी को नाच-नचाते रहता है। 


मन क्यों अपने अंदर जंजीर लपेट ली है ?


मन ही अपनी खुशियों से , दुःख से मोह करता है। मन सदैव सुख की चिंता करता है , भोग-भोगना चाहता है। वह अपने भोगों को नहीं छोड़ना चाहता है। चाहे कोई इन्द्रियां कट भी जाये , जैसे - किसी की आँख चली जाये , तो अँधा व्यक्ति अपनी मन की आँखों से भगवान की कल्पना कर सकता है तो सुन्दर स्त्री की भी कल्पना कर सकता है। 


अपने भोगों की पूर्ति ना होने पर वह गलत कार्य भी कर सकता है। 


ऐसी स्थिति में मन को यह बात बतानी पड़ती है कि सुख-दुःख तो मनुष्य के प्रालब्ध ( कर्मों के फल ) हैं। प्राणी जैसा कर्म करेगा ,वैसा ही फल पायेगा , इसी को प्रालब्ध कहते हैं। भगवान प्रालब्ध नहीं बनाते। जिस नियत से आप कर्म करेंगे ,उसका फल भी आपको जरूर मिलेगा। 


मन का स्वामी कौन है ?


अब मन को control करना है , तो कौन करेगा मन को control ? जरूर उसका भी कोई स्वामी होगा। मन का स्वामी है आत्मा।  आत्मा बुद्धि के द्वारा मन को control कर सकती है। जिसकी बुद्धि विशाल है ,वह मन के मोह में नहीं पड़ता। 


बुद्धि का काम है निर्णय करना -


जैसे - Doctor ने अपने मरीज को खट्टा खाने से मना किया हो ,और मरीज जब इमली देखता है तो मन उसको खाने की इक्षा जाहिर करता है।अब  इस अवस्था में बुद्धि को निर्णय लेना पड़ता है कि वह मन की सुने या बुद्धि का उपयोग करके उसे ना खाये। 


कई लोग समझते हैं कि यह तो मन को मारना होता है -


लेकिन मैं आपको बता दूँ कि मन कभी मरता नहीं , इससे मन सुधरता है। इससे निर्णय शक्ति ,आत्मा की शक्ति बढ़ती है। ऐसा करने से आप मन के आधिन नहीं बल्कि मन आपके आधिन होने लगती है। और इस तरह आप बुद्धि का प्रयोग करके अपने मन को सुधार सकते हैं और मन को control कर सकते हैं। 


और यदि आप अपने मन को control में नहीं कर सकते तो आप मनुष्य नहीं है ,मनुष्य के रूप में जानवर हैं क्योंकि मनुष्य कहा ही जाता है -मन को वश में करने वालों को। 


तो दोस्तों यह थी जानकारी कि आप मन को control कैसे करते हैं ,मन क्या होता है मन को सुधारते कैसे हैं और भी मन से जुडी जानकारियां। तो मैं उम्मीद करता हूँ कि इस post के द्वारा आप भी अपने मन के ऊपर control पा लेंगे। 



यदि आपके दिमाग में कोई प्रश्न हो तो हमें comment करके जरूर बताये। 


और यदि आप अन्य लोगों की मदद करना चाहते हैं तो इस post को उनतक जरूर पहुंचाए , उसके लिए इसे share करें facebook ,watsaap में। 


अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत-बोहोत धन्यवाद। 


Brahmacharya (पवित्रता) Ka Palan Apne Jeevan Me Kaise Kare

Brahmacharya (पवित्रता) Ka Palan Apne Jeevan Me Kaise Kare


 नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) का पालन अपने जीवन में करने के बारे में।
जिसमे हम बात करेंगे :-

  • ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) क्या है ?
  • बुरे विचारों का क्या मतलब है ?
  • ब्रह्मचर्य में अच्छे विचार क्या है ?
  • ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) काम कैसे करती है ?
  • अपवित्रता से जीवन में क्या नुकसान होता है ?
  • ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) का पालन कैसे करते हैं ?
  • ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) से जीवन में क्या फायदे होते हैं ?

brahmacharya palan kare
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ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) क्या है ?

ब्रह्मचर्य का मतलब होता है ब्राह्मण जैसा आचरण करना। जैसे ब्राह्मण चरित्र ( संस्कार ) करते हैं वैसे ही चरित्र करना।
वहीँ पवित्रता का मतलब होता है - सभी को आत्मा के रूप में देखना और सभी को आत्मा-आत्मा भाई-भाई समझना।

जैसे - आजकल के लोग पवित्रता का मतलब साफ़-सफाई समझते हैं लेकिन किसकी साफ़-सफाई ? ये नहीं समझ पाते।  तो पहले-पहले सफाई आत्मा में आ रही बुरे विचारों की।  बुरे विचारों की सफाई होते ही आत्मा स्वतः ही पवित्र बन जाएगी और फिर शरीर भी पवित्र बन जायेगा। क्योंकि आत्मा बीज है , और शरीर वृक्ष है। जब बीज सुधरता है तो वृक्ष अपने आप सुधर जाता है।

बुरे विचारों का क्या मतलब है ?

ब्रह्मचर्य का पालन करने के सम्बन्ध में बुरे विचार वो हैं तो आत्मा को शरीर के तरफ आकर्षण करते हैं। शरीर के सुख उन्हें बार-बार याद आते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बुद्धि बार-बार शरीर के इन्द्रियों पर ही चली जाती है। ऐसे लोग दूसरों के शरीर से प्रभावित होते हैं और अपने भी शरीर की इन्द्रियों से प्रभावित होते हैं।

तो ब्रह्मचर्य  के सम्बन्ध में यही बुरे विचार हैं , ऐसे ही बुरे विचारों में फँस कर मनुष्य जानवर के समान बन गया है। ऐसे विचारों में फंसा हुवा मनुष्य कभी भी कोई अच्छा काम नहीं कर सकता। उनकी बुद्धि वहीँ गटर में ही धरी रहती है , इसलिए वे अपनी बुद्धि से अच्छे काम नहीं कर पाते और जानवर की तरह अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) में अच्छे विचार क्या हैं ?

ब्रह्मचर्य का पालन करने के सम्बन्ध में अच्छे विचार हैं - 
सबके प्रति आत्मा-आत्मा भाई-भाई की दृष्टि रखने से लोगों का आपस में रूहानी प्यार बढ़ता है। लोगों में विश्वास बढ़ता है , सच्चाई , ईमानदारी जैसे संस्कार उत्पन्न होते हैं। और इस  संसार के सभी लोग एक ही माँ -बाप   के बच्चे हैं ऐसा अनुभव होता है।

ऐसी अनुभूति होने के बाद जब ब्रह्मचर्य की शक्ति बढ़ती है , तो फिर शरीर ,ऊर्जा का भंडार बन जाता है। व्यक्ति से ऐसे-ऐसे काम होते हैं जो दुनिया को बदलने की हिम्मत रखते हैं।

लेकिन ये सभी कुछ होता है अच्छे विचारों से , ऐसे व्यक्ति शरीर से ऊपर उठ कर आत्मा के संस्कारों को देखते हैं ,प्रकृति की सुंदरता को देखते हैं , अपनी चेतना से सारी ज़िन्दगी जीते हैं और अतीन्द्रिय सुख अनुभव करते हैं ,जिसे आत्मा का सुख कहा जाता है।

सभी के प्रति उनके दिलों में शुभ भावना रहती है , ब्रह्मचर्य की power से उनकी आत्मा से रूहानियत की vibration (तरंगे ) निकलती है जो वायुमंडल को सुद्ध बनाती है , और प्रकृति भी ऐसे लोगों को नमस्कार करती है।

तो आप भी , जब किसी से मिले तो उसे आत्मा समझे , और उसके प्रति शुभ भावना रखें फिर देखिये क्या परिवर्तन आता है।

ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) काम कैसे करती है ?

लोग कहते हैं ग्रहों और प्रकृति के अनुसार आत्मा में परिवर्तन होता है ,लेकिन शिवबाबा कहते हैं आत्मा के अनुसार प्रकृति के 5 तत्व भी बदलते हैं। आत्मा सतोप्रधान (पवित्र ) बनती है तो प्रकृति भी पवित्र बनती है। और आत्मा जब अपवित्र बनती है तो प्रकृति भी अपवित्र बनती है।

उदाहरण :- जो जंगलों में जानवर रहते हैं और जो मनुष्यों के साथ जानवर रहते हैं उनमे से बीमार कौन से जानवर ज्यादा होते हैं ?
कहेंगे जो मनुष्यों के साथ जानवर रहते हैं वो ज्यादा बीमार होते हैं। क्योंकि वे जानवर मनुष्यों के वृत्ति के प्रभाव में आ जाते है।
अभी मनुष्य आत्मा ज्यादा विकारी है इसीलिए जानवर भी ऐसे ही हैं और ये प्रकृति भी तमोप्रधान (अपवित्र ) बनते जा रही है।

अब जैसे-जैसे आत्मा पवित्र बनते जाएगी , वैसे-वैसे प्रकृति भी बदलते जाएगी और एक सुनहरा युग फिर से स्थापन होगा।

हरेक आत्मा के अंदर से wave (vibration ) निकलता है जिसका प्रभाव उसके आस-पास में रह रहे लोगों  , जिव -जंतु , पेड़ पौधों इत्यादि में पड़ता है।

तो vibration से सारी दुनिया चलती है। और ये vibration आत्मा अपने संकल्पों (विचारों ) से बनाती हैं।
आत्मा पवित्र संकल्प करती है तो वह पवित्र vibration दुनिया में देती है। और अपवित्र संकल्प करती है तो अपवित्र vibration दुनिया को देती है।

और इस प्रकार ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) की शक्ति काम करती है , दुनिया को बदलने के लिए।

अपवित्रता - विकार में जाने से नुकसान।

ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए , विकार के नुकसान को भी समझना बोहोत जरूरी है ,तब ही बुद्धि सही और गलत का निर्णय कर पायेगी। 

  • काम विकार में जाने से आत्मा पतित बनते जाती है , जिससे यह दुनिया भी पतित बन जाती है। 
  • काम विकार में जाने से काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,अहंकार। सभी विकारों की वृद्धि हो जाती है। मुख भी गन्दा हो जाता है और लोग आपस में ही एक दूसरे को गाली देने लगते हैं। 
  • विकार में जाने से सारा ज्ञान उड़ जाता है , सारा पुरुषार्थ ख़त्म हो जाता है ,सारी की कमाई (आत्मा की ) चौपट हो जाती है। 
  • विकार देह का सुख है और अभी शिवबाबा आत्मा का सुख देने आए हैं। अतीन्द्रिय सुख देने आए हैं। 
  • भ्रस्ट इन्द्रियों का सुख भोगने से दुनिया ओर ही भ्रस्टाचारी बन जाती है। 
  • काम विकार में जाने से ही मनुष्य इतने दुराचारी ,पापी और निर्दयी हो गए हैं। 
  • काम विकार में जाने से शरीर दुर्बल और आँखों की रोशिनी कम होते जाती है। शरीर जल्दी वृद्ध हो जाता है। 
  • यदि हम विकार में जाते हैं तो नई पावन दुनिया स्थापन नहीं कर पाएंगे। 


ब्रह्मचर्य (पवित्रता )  का पालन अपने जीवन में कैसे करें

जीवन में ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) का पालन करने का उपाय और उसे सहज धारण करने का उपाय स्वयं शिवबाबा ने बताया है जिसकी जानकारी नीचे दी गई है-

1. { Step -1  सबसे पहले अपने मन में दृढ संकल्प ले कि हमें पवित्रता का पालन करना ही है। चाहे जो हो जाये हम पवित्र बनकर रहेंगे।
 Step -2 अपने को भी आत्मा समझना है ,दूसरों को भी आत्मा समझना है। और इस तरह हम सभी आत्मा-आत्मा ,भाई -भाई हैं। }

2.  ईश्वरीय ज्ञान से हमें पता चलता है कि आत्मा जब अपने घर से आती है तो एकदम Pure (प्योर ) होती है , फिर बाद में जन्म लेते लेते Impure बन जाती है। तो हम आत्मा भी पहले 100 % प्योर थे , और हम ही सतयुग और त्रेतायुग में पवित्र देवतायें थे , और अब जन्म लेते-लेते कलियुग के अंत में भी हमको ब्राह्मण जन्म मिला है इसीलिए हमारे लिए ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) का पालन करना आसान है।

3. हम सब एक बाप की संतान रूहानी भाई हैं - यह अलौकिक दृष्टि की स्मृति रहने से देहधारी दृष्टि अर्थात लौकिक दृष्टि जिसके आधार से विकारों की उत्पत्ति होती है वह बीज ही समाप्त हो जाता है। जब बीज समाप्त हो गया तो फिर अनेक प्रकार के विस्तार रूपी वृक्ष विकारों का स्वतः ही समाप्त हो जाता है।

4. तो हर भाई महावीर है ,हर बहन शक्ति है। महावीर भी राम का है , शक्ति भी शिव की है।  किसी भी शरीरधारी को देख सदा मस्तक के तरफ आत्मा को देखो।  नज़र ही मस्तकमणि पर जानी चाहिए।  तो क्या होगा ? आत्मा-आत्मा को देखते स्वतः ही आत्म अभिमानी बन जायेंगे।

brahmacharya ka palan kaise kare.


5. पावन बनने की विशेषता , विशेष युक्ति क्या बताई ? एक के याद से , एक के संसर्ग से , संपर्क से क्या होगी ? पवित्रता आएगी। और अनेकों के संसर्ग ,संपर्क में आने से क्या हुवा ? आत्मा में अपवित्रता आ गई।

{तो एक शिवबाबा को ही मन बुद्धि से याद करना है। जो सभी आत्माओं का बाप है जिसे लोग शिव ,खुदा ,GOD इत्यादि नामों से जानते हैं , लेकिन पहचान करके याद करना है। }

Note :- तो सभी को आत्मा समझने से और शिवबाबा की याद से जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करना आसान हो जायेगा। 
इसके लिए आपको practice करनी होगी ,एक दिन में सभी को आत्मा समझने की practice नहीं हो जाएगी ,इसके लिए निरंतर अभ्यास की जरूरत है। 

और शिवबाबा/खुदा /GOD  को कैसे याद करना है ?  ये आप internet में search करके जान सकते हैं। 

और इस तरह बताये गए मुख्य 5 बातों को अपने जीवन में धारण करने से आप ब्रह्मचर्य (पवित्रता ) का पालन आसानी से कर पाएंगे।


 पवित्रता (ब्रह्मचर्य ) जीवन में धारण करने से फायदे/शक्ति । 

  • जहां पवित्रता होती है वहाँ सुख और शांति स्वतः ही आ जाती है। 
  • पवित्रता सभी गुणों की जननी है। 
  • जो पवित्र रहते हैं वो शिवबाबा की बोहोत मदद करते हैं ,क्योंकि वो पावन दुनिया बनाने में मदद करते हैं। 
  • पवित्रता के Vibration से दुनिया भी पवित्र बनती है। 
  • पवित्रता से शरीर के सभी बीमारी ख़त्म हो जाते हैं। आँखों में तेज़ आ जाती है। 
  • पवित्रता ही लोगों को अपने तरफ आकर्षित करती है। 
  • पवित्रता से आत्मा की चढ़ती कला होती है , आत्मा की भी बीमारी ख़त्म हो जाती है। 
  • पवित्रता से ही संगठन बनता है। 
  • पवित्रता से आपके संकल्प पुरे होने लगते हैं। 
  • जिसमे जितनी ज्यादा पवित्रता होगी वो उतना बड़ा राजा बनेगा। 
  • पवित्रता से बुद्धि का विकाश होता है। 
  • पवित्रता ऐसा खजाना है जिसके आगे सभी खजाने फ़िके पड़ जाते हैं। 
  • पवित्रता से दुनिया के सभी कार्य होते हैं। 
तो दोस्तों यह थी जानकारी ब्रह्मचर्य का पालन करने की और उसे जीवन में धारण करने की। मुझे उम्मीद है कि आपको यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये। 

और इस post को अपने facebook ,watsapp में share जरूर करें ताकी वे भी इसका महत्व जान सके। 

अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत-बोहोत धन्यवाद। 
Geeta Ka Bhagwan Kaun Hai

Geeta Ka Bhagwan Kaun Hai

नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे गीता के भगवान के बारे में।

 गीता क्या है ? संक्षिप्त परिचय
श्री कृष्ण गीता के भगवान है या नहीं ?
गीता का भगवान  साकार है या निराकार ?
गीता के श्लोक क्या कहते हैं गीता के भगवान के बारे में ?

ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी के अनुसार :-
गीता क्या है ?
कौन है गीता का भगवान ?
गीता का भगवान कब और कैसे साबित होगा ?

और भी अनेक जानकारी गीता के भगवान के बारे में।
geeta ka bhagwan kaun hai
geeta ka bhagwan
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गीता क्या है ? संक्षिप्त परिचय

दुनियावी लोगों के अनुसार गीता यानि भगवतगीता एक धर्मशास्त्र है ,जो वेद व्यास के द्वारा लिखी गई है। 
जिसमे वर्तमान समय में 18 अध्याय जिसमे 700 श्लोक हैं। 

गीत शब्द से बनता है गीता , इसीलिए गीता के श्लोक गीत की तरह सुनने में लगते हैं। 
लोग सिर्फ इसी गीता के बारे में जानते हैं और इसी के श्लोकों के अर्थ को अपने -अपने तरीकों से समझते हैं। 

आज सबसे पहले मैं इसी गीता के भगवान के बारे में बताने वाला हूँ , जिससे आजतक आप अनजान थे। 

महर्षि वेद व्यास जी द्वापरयुग में जन्म लिए , ये सभी जानते हैं और उन्होंने 4 वेद और 24 पुराण सहित अन्य कई शास्त्र लिखे हैं उनमें से ही भगवतगीता एक धर्मशास्त्र है। 
जैसे - मुसलमानों का कुरान , और क्रिस्चियन का बाईबल है वैसे ही सनातन धर्म वालों का भगवतगीता , उनका धर्म शास्त्र है। जिसको स्वयं भगवान ने आकर सुनाया, ऐसी मान्यता है। 

और धर्मों में धर्मपिताओं के ज्ञान के अनुसार उनके धर्म पुस्तक बनाए गए है लेकिन सनातन धर्म में स्वयं भगवान के ज्ञान के अनुसार धर्म पुस्तक बनाई गई है ऐसी मान्यता है। 

लेकिन समय के बीतने पर सनातन धर्म के धर्मपुस्तक गीता पर अनेक बदलाव किये गए जिसमे उसके भगवान की पहचान को छुपाया गया है जिससे की लोगों की दुर्गति शुरू हो गयी। यदि गीता में भगवान का असल परिचय दिया होता तो कोई भी दूसरे धर्म वाले भारत के मंदिरों को नहीं लुटते और भारत को अपना तीर्थस्थान समझकर नमन करते। 

तो भाइयों आज इसी सच्चाई को बताने के लिए हम यह पोस्ट लिख रहे हैं , तो इसे बोहोत ही ध्यान से पढियेगा और फिर स्वयं निर्णय लीजियेगा कि क्या सच है और क्या झूठ है। 

श्री कृष्ण गीता के भगवान है या नहीं ?

वर्तमान समय में लोग यही मान के चल रहे हैं कि द्वापरयुग में श्री कृष्ण का जन्म हुवा और उन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान समय को रोककर भगवतगीता का ज्ञान अर्जुन को दिया। 
जिसमे श्रीकृष्ण को अर्जुन के रथ पर दिखाया जाता है। 

लेकिन गीता के श्लोक तो कुछ और ही कहते हैं। 
सबसे पहले तो आप ये समझिये कि गीता के श्लोक गीत (कविता ) की तरह है जिसमे अलंकारित भाषा का प्रयोग किया गया है। 

जैसे - आजकल के गीत होते हैं - मैं चाँद को ले आऊंगा तेरे लिए। 
तो क्या वह सच में चाँद को लाने की बात कर रहा है या फिर इसका अर्थ है कि वह उसके लिए कुछ भी कर गुजर जायेगा। तो ऐसे ही होते हैं अलंकारित भाषा। 
जिसका सही विश्लेषण केवल कवि ही दे सकता है। 

लेकिन कवि व्यास जी तो संस्कृत में सभी श्लोक लिख करके चले गए , लेकिन उनके जाने के बाद अलग -अलग ऋषि-मुनि अपने -अपने तरीकों से उसे समझाना चालू कर दिए। 

माध्वाचार्य की गीता कहती है - आत्मा अलग है और भगवान अलग है। आत्माएं अनेक हैं और परमात्मा एक है। 
वहीँ  शंकराचार्य की गीता कहती है - हरेक आत्मा में परमात्मा है , मैं भी ब्रह्म तुम भी ब्रह्म। आत्मा सो परमात्मा कह देती है। 

अब इसमें सच्चाई क्या है ये तो केवल कवि ही दे सकता है या फिर स्वयं भगवान ही दे सकते हैं। 
लेकिन द्वापरयुग के अंत तक तो गीता पूरी तरह बदल जाती है सैकड़ों (100 ) ऋषि और पंडित अपना-अपना गीता लेकर बैठ जाते हैं और फिर गीता के भगवान की अस्तित्व पूरी तरह से मिट जाती है। 

और इसीलिए कलियुग आने पर सबसे अधिक दुर्गति भारतवासियों की होती है क्योंकि वह अपने भगवान को ही भूल जाते है और अन्य देवी-देवताओं को अपना भगवान मानकर उनके मत पर चलने लगते हैं। 

भगवतगीता के श्लोकों में कहीं भी श्रीकृष्ण का नाम नहीं आया है , वहाँ पर है भगवानुवाच। 
श्री क्रिश्नोवाच नहीं है। यानि गीता का ज्ञान देने वाला स्वयं भगवान है। 

लोग श्रीकृष्ण को भगवान मानते हैं लेकिन श्री कृष्ण (देवता ) हैं अन्य 33 करोड़ देवताओं की तरह वहीँ भगवान देवी -देवताओं से अलग है। जो की स्वयं गीता के श्लोक साबित करते हैं। 

गीता के श्लोक क्या कहते हैं - गीता के भगवान के बारे में। 

10 /2  न में विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः।
         अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः।।

अर्थ - मेरे उत्कृष्ठ जन्म को न देवगण न महान ऋषिजन ही जानते हैं , क्योंकि देवताओं और महर्षियों का सब प्रकार से आदि मैं ही हूँ।

{ इस श्लोक से यह साबित हो जाता है कि द्वापरयुग में जिन ऋषियों ने भगवतगीता के अलग-अलग अर्थ निकाले हैं उनमे से कोई भी भगवान के सही परिचय को नहीं जानते हैं। इसका मतलब यह है कि जो वे गीता में श्री कृष्ण को भगवान कहते हैं वो भी गलत हो जाता है।  }

9 /25  यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः।
        भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजीनोपि माम्।। .

अर्थ :- देवताओं के भक्त देवताओं को पाते हैं ,पितृभक्त पितरों (माँ -बाप ) को पाते हैं, भूतों के पुजारी भूतों को पाते हैं और मेरे में यजन करने वाला मेरे को ही पाते हैं।

{ इस श्लोक से यह साबित हो जाता है कि देवी-देवता अलग है और भगवान अलग है। }




तो फिर प्रश्न यह उठता है कि भगवान कौन है ? उनका असली परिचय क्या है ?
उसके लिए आगे के post को पढ़ते रहे :-

9 /4  मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।
       मतस्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः।।

अर्थ - मेरे अव्यक्त (निराकारी) स्वरुप द्वारा यह सारा जगत विस्तृत हुवा है।
अतः सभी प्राणी मुझमे स्थित हैं परन्तु मैं उनमें स्थित नहीं हूँ।

{ इस श्लोक से यह साबित हो जाता है कि भगवान का रूप अव्यक्त है ( जिसे देखा ना जा सके -निराकार ) और वह सभी जगह नहीं है , सभी के अंदर नहीं है। जिस तरह नीम के बीज की कड़वाहट पुरे वृक्ष में होती है परन्तु पुरे वृक्ष में बीज नहीं होते , उसी तरह सभी प्राणियों के अंदर भगवान नहीं होते लेकिन भगवान की याद होती है। }




10 /3  यो मामजमनादिम च वेत्ति लोकमहेस्वरम।
        असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते।। .

अर्थ - जो ज्ञानी मुझको अजन्मा ,अनादि और तीनों लोकों का महान ईश्वर जानता है , वह महुष्यों में मोहरहित हुआ सब पापों से मुक्त हो जाता है।

{ इस श्लोक से हमें यह पता चल जाता है कि भगवान अजन्मा और अनादि हैं ,यानि वो कभी भी गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं। }

लेकिन प्रश्न यह उठता है कि जब वे गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं तो फिर कैसे जन्म लेते हैं?

4 /6  अजोपि सन्नव्ययात्मा भूतानीमीश्वरोपि सन।
        प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया।।

अर्थ - अक्षय अर्थात जिस आत्मा की शक्ति का कभी व्यय न हो , वह मैं अजन्मा होते हुवे भी प्राणियों का शासनकर्ता होते हुवे भी , अपने स्वभाव का आधार लेकर आत्मशक्ति से प्रगट /प्रत्यक्ष होता हूँ।

4 /9   जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
        त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोर्जुन।।.

अर्थ - हे सद्भाग्य का अर्जन करने वाले अर्जुन ! इस प्रकार मेरे दिव्य जन्म और कार्यों को जो सत्य रूप में जान लेता है , वह शरीर को त्यागकर फिर से ( दुःख की दुनिया में ) जन्म नहीं लेता , मुझको प्राप्त होता है।

{ इन श्लोकों से यह पता चल जाता है कि भगवान दिव्य जन्म लेते हैं। इसके लिए गीता में एक शब्द आया है प्रवेष्टुं यानि वे प्रवेश करते हैं और प्रवेश करके अपना कार्य करते हैं।  }

उदाहरण - जैसे महाभारत की लड़ाई के समय भगवान को अर्जुन के रथ में दिखाते हैं -

 यहां कोई घोडा गाडी रथ की बात नहीं हो रही है बल्कि यहां अर्जुन का शरीर ही रथ है और शरीर की इन्द्रियां घोड़े है और उसी शरीर ( रथ ) में भगवान दिव्य प्रवेश करते हैं और अपना कार्य करते हैं।
और इस प्रकार भगवान  का दिव्य जन्म होता है।

जैसे - आज कल के भूत-प्रेत प्रवेश करते हैं और कहते हैं मैं काली हूँ मैं दुर्गा हूँ , वैसे ही भगवान भी प्रवेश करते हैं लेकिन भूत-प्रेत की प्रवेशता में और भगवान की प्रवेशता में बोहोत फर्क होता है।

ये भी जाने :-



लेकिन अब प्रश्न यह है कि वे कब अपना दिव्य जन्म लेते हैं और क्यों ?


4 /7  यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
        अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।।

4 /8 परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
      धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।.

अर्थ :- हे भारतवंशी ! जब-जब धर्म की ग्लानि और अधर्म की वृद्धि होती है ,तब मैं स्वयं जन्म लेता हूँ।
साधु संतों की  रक्षा के लिए ,दुराचारियों के विनाश के लिए और धर्म की सम्पूर्ण स्थापना के लिए मैं जन्म लेता हूँ।

{ यहां पर साफ़-साफ़ बताया गया है कि जब धर्म की ग्लानि होती है , और अधर्म की वृद्धि होती है तब मैं आता हूँ, तो अब आप ही बताइये कि क्या सतयुग और त्रेत्रायुग में अनेक धर्म होते हैं ?
 नहीं होते सिर्फ सनातन धर्म ही होता हैं।  अनेक धर्म अभी कलियुग के अंत समय में होते हैं और अभी ही अधर्म की वृद्धि होती है।

आज देखने में भी आता है कि धर्म के नाम पर लोग आपस में लड़ते हैं , मारा-मारी , खून -खराबा अभी सबसे ज्यादा  होती है। पैसे के आगे सभी अपना सर झुका लेते हैं और अपने धर्म को भूल जाते हैं।
अभी ही वह स्थिति है जब साधु (ईंमानदार -सच्चे ) लोगों को दबाया/मार दिया जाता है , जिससे की भ्रस्टाचार की दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी होते जाती है।

क्या आपको नहीं लगता है कि अभी भगवान को आने की सबसे ज्यादा जरूरत है जब प्रकृति और मनुष्य की मानसिकता सबसे निचले स्तर पर है।

13 /16  अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितं।
           भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च।।

अर्थ :- वह परमपिता अखंड अर्थात अविभाज्य है (एक हैं ), फिर भी प्राणियों में विभक्त हुवा सा रहता है (याद के द्वारा ) और इस प्रकार प्राणियों का भरण-पोषण करने वाला विष्णु ,विनाशकर्ता शंकर और उत्पत्तिकर्ता ब्रह्मा माना जाता है।

{ इस श्लोक से यह पता चल जाता है कि निराकार भगवान जब इस धरती पर आते हैं तो अपने 3 मूर्तियों (ब्रह्मा ,विष्णु ,शंकर ) के द्वारा  स्थापना ,विनाश और पालना का कार्य करते हैं। }

और यदि आप भगवतगीता को मानते हैं और उसमे लिखे श्लोकों का अध्यन करते हैं तो अभी तक के post से आप समझ गए होंगे कि भगवान का असल स्वरुप क्या है और वह कैसे जन्म लेते हैं और जन्म ले करके क्या करते हैं।

आप इस बात को भी जरूर मानेंगे कि सृष्टि को परिवर्तन करने का कार्य और एक सत्य आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना का कार्य अभी स्वयं निराकार भगवान के द्वारा चल रहा है और वही निराकार भगवान , गीता के भगवान भी हैं।

इसकी अधिक जानकारी के लिए आगे के पोस्ट को पढ़ते रहें।




ब्रह्माकुमार /कुमारी के अनुसार गीता क्या है ?

वह निराकार शिव भगवान, ब्रह्मा के द्वारा स्थापना का कार्य करते हैं , और जिसके लिए वे उनमे प्रवेश होके गीता का ज्ञान देते हैं और इसी ज्ञान को गीता का ज्ञान कहा जाता है। जिसे मुरली भी कहते हैं।

यह ज्ञान स्वयं सिद्ध करता है कि सिवाय भगवान के ऐसा अद्भुत ज्ञान कोई दे नहीं सकता जिसमे सृष्टि के आदि मध्य और अंत का ज्ञान है।

तो असल में यही गीता है , वो वेद व्यास की गीता पढ़ते-पढ़ते मनुष्यों की और ही दुर्गति होते आई है , उनके अर्थ को किसी ने सही से समझाया नहीं है अभी स्वयं भगवान उनके अर्थों को समझा रहे हैं। और अपना परिचय दे रहे हैं क्योंकि बिना भगवान के कोई भी भगवान का परिचय नहीं दे सकता , वह स्वयं ही आकर अपना परिचय देते हैं , ब्रह्मा के शरीर के द्वारा .

कौन है गीता का भगवान ? गीता का भगवान कैसे सिद्ध होगा ?



गीता क्या है , भगवान अलग है और देवी-देवता अलग है ,भगवान निराकार हैं और गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं। वे भी प्रवेश करते हैं जैसे भूत-प्रेत प्रवेश करते हैं।  उनके जन्म को दिव्य जन्म कहा जाता है।
वे तब आते हैं जब दुनिया में अनेक धर्म हो जाते हैं और धर्म के नाम पर लोग आपस में लड़ते /झगड़ते रहते हैं ,और सच्चे लोगों को दबाया/मार दिया जाता है, भ्रस्टाचार की अति हो जाती है।

आकरके सबसे पहले ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण धर्म की स्थापना का कार्य करते हैं फिर शंकर द्वारा अधर्मियों का विनाश करते हैं फिर बाद में विष्णु द्वारा संगमयुगी सतयुग में पालना करते हैं।

और इस प्रकार यह साबित हो जाता है कि गीता का भगवान वास्तव में भगवान शिव निराकार है . जो प्रवेश करके सारा कार्य करते हैं .

यदि यह बात दूसरे धर्म के लोग जानते कि गीता का भगवान भी वही भगवान/अल्लाह /खुदा /GOD  है जिसको हम मानते हैं तो फिर कभी कोई दूसरे धर्म के लोग भारत पर आक्रमण नहीं करते और ना ही मंदिरों को लूट करके ले जाते और ना कभी कोई धर्म परिवर्तन होता। 

तो भाइयों ये थी जानकारी गीता के भगवान के बारे में। मुझे उम्मीद है कि आपको यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। यदि इससे सम्बंधित आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये।

और इस post को अपने दोस्तों तक , facebbok ,watsapp में share करें ताकि और लोगों तक सच्चाई पहुंच सके ।
अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत -बोहोत धन्यवाद। 

Aatma Kya Hai और Mann Kya Hai ?

Aatma Kya Hai और Mann Kya Hai ?

नमस्कार दोस्तों आपका AnekRoop में स्वागत है। आज हम जानेंगे आत्मा और मन के बारे में।
जैसे -

आत्मा क्या है ?
आत्मा कैसी दिखती है ?
आत्मा का घर कहाँ है ?
आत्मा को क्या पसंद है ?

शरीर में आत्मा कहाँ रहती है ?
मनुष्य आत्मा कितनी जन्म लेती है ?
आत्मा में कितनी शक्तियां है ?

मन  क्या है ?
मन का काम क्या है ?
मन को  क्या पसंद है ?
मन को एकाग्र कैसे करते हैं ?
क्या मन और आत्मा एक ही है ?

और भी बोहोत कुछ आत्मा और मन के बारे में।

aatma kya hai mann kya hai
aatma kya hai mann kya hai
.
आत्मा क्या है ?

शरीर अलग है और आत्मा अलग है। शरीर मांस-पेसियों से बनता है वहीँ आत्मा अजर अमर है , यानि कभी बनता ही नहीं है और ना ही कभी ख़त्म होता है। वहीँ शरीर बनता भी है और ख़त्म भी होता है।

आत्मा एक चैतन्य शक्ति है। एक ऊर्जा है। जिस तरह मोबाइल में battery एक ऊर्जा है वैसे ही शरीर में आत्मा एक ऊर्जा है। आत्मा के ऊर्जा से ही शरीर चलता है।

आत्मा शरीर को चलाने वाली है , जिस तरह गाडी को चलाने के लिए driver की जरूरत होती है वैसे ही यह शरीर (गाड़ी ) को चलाने के लिए आत्मा (driver ) की जरूरत होती है।
जैसे -
आत्मा कहती है शरीर को कि school जाव तो शरीर school जाता है।
आत्मा कहती है शरीर को कि पढ़ाई करो तो शरीर पढता है।
बिना आत्मा के आदेश के शरीर कुछ नहीं कर सकता है।


आत्मा कैसी दिखती है ?

आत्मा बोहोत छोटी प्रकाशित बिंदु जैसी है।(bright light point )

aatma kaisa dikhta hai.

हम आत्मा को अपने आँखों से नहीं देख पाते , लेकिन अनुभव करते हैं कि हमारे अंदर आत्मा है।

जैसे छोटे -छोटे कीटाणु को हम अपने आँखों से नहीं देख पाते लेकिन जब microscope से देखते हैं तो दिख जाते हैं।

वैसे ही हम आत्मा को अपने आँखों से नहीं देख पाते सिर्फ अनुभव करते हैं लेकिन ज्ञान की आँखों से हम उसे देख सकते हैं। कहने का मतलब है कि जब हम आत्मा के बारे में पूरी जानकारी जान जायेंगे तो हमें उसकी अनुभूति और अधिक होने लगेगी , दूसरों को भी हम आत्मा की तरह ही देखने लगेंगे।

आत्मा का घर कहाँ है ?

आत्मा का घर परमधाम है। जिसे अंग्रेज soul world , मुसलमान अर्श कहते हैं।
आकाश तत्व से परे आत्माओं का घर है , जहां सभी आत्माएं रहती है। वहीँ से आत्माएं इस धरती पर आकर शरीर के द्वारा अपना part निभाती है या कहें अपना जीवन जीती है।

आत्मा के घर के बारे में और तीनो लोकों के बारे में मैंने नीचे के post में विस्तार से बताया है आप पढ़ सकते हैं :-


Aatma को Kya Pasand Hai ?

आत्मा को शांति और पवित्रता पसंद है।

हरेक आत्मा पहले शांति चाहती है , जिस तरह कोई बुखार से बीमार हो और उसे लडू -मिठाई खाने को दीजिये तो क्या वह खाना पसंद करेगा ?
नहीं पसंद करेगा , पहले वह बुखार से ठीक होना चाहेगा फिर मिठाई इत्यादि खायेगा।

वैसे ही अनेक तरह के सुखों को पाने से पहले आत्मा शांति चाहती है , उसे कोई परेशान ना करे।   ना शरीर की बीमारी ,ना मन की बीमारी और ना ही पैसों की बीमारी (कमी )।

शांति से बाद आत्मा को पवित्रता पसंद है - तन से भी पवित्र और मन से भी पवित्र।
ऐसा इसलिए क्यूंकि जब आत्मा अपवित्र बनती है तो आत्मा की शक्ति कम होते जाती है। जिसके साथ-साथ शरीर को भी कमजोरी महसूस होने लगती है।

अपवित्र बनना यानि विकार में जाना , भ्रस्ट इन्द्रियों का आचरण करना।
 आत्मा तो चाहती है कि वह अतीन्द्रिय सुख भोगे ,मन बुद्धि का सुख भोगे। जिससे आत्मा powerful बने और शरीर भी powerful बने।

मन बुद्धि के सुख के बारे में अधिक जानने के लिए आप ये post पढ़े :-



शरीर में Aatma कहाँ रहती है ?

आत्मा शरीर का राजा है , जिसतरह राजा का सिंघासन सबसे ऊपर होता है वैसे ही आत्मा भी  शरीर के सभी इन्द्रियों के ऊपर रहती है , जिसे उत्तमांग कहते हैं।

आँख के ऊपर दोनों भोरों के बिच में , जहां सभी बिंदी और टिका लगाते हैं।

sharir me aatma kaha rahta hai.


दरहसल भगवतगीता में है कि भोरों के मध्य में प्राण रुपी आत्मा निवास करती है उसपर टिकने से मनुष्य श्रेष्ठ गति को प्राप्त करता है तो लोग टिका और बिंदी लगाना शुरू कर दिए।

असल में आत्मा जो बिंदी की तरह है उसे उस स्थान में समझते रहने की बात है , जिससे की आत्मा की चेतना जाग सके और हम अतीन्द्रिय सुख प्राप्त कर सके।


मनुष्य आत्मा कितनी जन्म लेती है ?

सबसे पहले आप ये समझिये कि मनुष्य आत्मा केवल मनुष्य में ही जन्म लेती है और पशु पक्षी इत्यादि जीवों में जन्म नहीं लेती है।
जिस तरह आम का बीज रोपने से उसपर आम ही फल होंगे।
वैसे ही आत्मा एक बीज है , और वह बीज जिस जीव की होगी वह उसी जीव में हमेशा जन्म लेगी।

 गाय की बीज होगी और चीटी  में जन्म लेगी तो अपने पिछले जन्मों का हिसाब-किताब कैसे चुक्तु करेगी।
तो अन्य जीवों में जन्म लेना ये प्रकृति के विरुद्ध हो जाता है।

अब बात करते हैं मनुष्य आत्मा कितने जन्म लेती है ? 

मनुष्य आत्मा ज्यादा से ज्यादा 84 जन्म लेती है। और कम से कम 1 जन्म लेती है।
जो इस सृष्टि में परमधाम से पहले आती है वो ज्यादा जन्म लेती है और जो बाद में आती है वो कम जन्म लेती है।

शास्त्रों के अनुसार - शास्त्रों में 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य जन्म मिलता है ऐसा कहा जाता है।

लेकिन यदि आत्मा 84 लाख जन्म लेगी तो कभी अपने जन्मो को जान ही नहीं पायेगी।
Proof - इसका proof भी है , दुनिया में ऐसे भी लोग हुवे हैं जिनको अपने पिछले जन्म की याददास्त आई है और वह सच भी साबित हुयी है और उनमे से किसी ने ये नहीं बताया की मैं पिछले जन्म में कुत्ता था या बेल था।
सभी ने बताया कि मैं पिछले जन्म में मनुष्य ही था।

इसकी अधिक जानकारी के लिए आप ये post पढ़े।




आत्मा में कितनी शक्तियां है ?

आत्मा में 3 शक्तियां है।

मन , बुद्धि और संस्कार।

मन - मन का काम है सोचना।
बुद्धि - बुद्धि का काम है निर्णय (decision ) लेना।
संस्कार - गुणों को धारण करना।

तो हरेक आत्मा में ये 3 शक्तियां होती है। जिसे हरेक आत्मा अपने अनुसार इस्तेमाल करती है।

मन क्या है ?

मन एक आत्मा की शक्ति है। जिसका काम है सोचना और इन्द्रियों को चलाना।
मन हरेक second कुछ ना कुछ सोचता ही रहता है। जब आप सोते हैं तब भी मन कुछ ना कुछ सोचता है जिसे हम स्वप्न कहते हैं।

हरेक दिन एक मनुष्य का मन हज़ारों चीजें सोचता है , और मन जितने अधिक चीजों के बारे में सोचता है उतना ही ज्यादा अशांत होता है।

वहीँ मन का दूसरा काम है इन्द्रियों को चलाना।
हम अकसर कहते हैं , आज मन हो रहा है गोलगप्पे खाने का ,आज मन हो रहा है cinema देखना का ,आज मन हो रहा है घूमने का।

तो इन्द्रियों से जितनी भी सुख भोगने की चाहत होती है वह सब मन की होती है। मन ही इन्द्रियों की सुख में मनुष्य को फसाये रखता है जिससे की मनुष्य कभी आत्मा का सुख नहीं प्राप्त कर पाता।

तो ये थी जानकारी मन के बारे में और उसके काम के बारे में।

मन को क्या पसंद है ?

जैसा की मैंने बताया कि मन इन्द्रियों से सुख भोगता है , उसमे भी मन श्रेष्ठ इन्द्रियों के सुख को ज्यादा भोगने की कोशिश करता है।
जैसे - अच्छे-अच्छे दृश्य देखना , अच्छे जगह में घूमना।
सुन्दर खुसबू , मधुर गीत , उत्तम भोजन ये सभी मन को लुभाती है।

बाकि भ्रस्ट इन्द्रियों के सुख को मन तब भोगना पसंद करता है जब मन अधिक चंचल हो जाता है।
चंचलता के कारन ही मन का पतन होता है , जिससे की वह अशांत हो जाता है फिर उसका किसी भी कार्य में ध्यान नहीं लगता है।

जब मन श्रेष्ठ इन्द्रियों (आँख ,कान मुख इत्यादि ) का सुख भोगता है तो उसे सुख अनुभव होता है।
वहीँ जब भ्रस्ट इन्द्रियों (मल -मूत्र इन्द्रियां ) का सुख भोगता है तो उसे दुःख महसूस होता है।

मन को एकाग्र कैसे करते हैं। 

जैसा की मैंने बताया कि मन की चंचलता के कारन ही मन अशांत हो जाता है और फिर उसे किसी भी कार्य में दिल नहीं लगता है।
ऐसी परिस्थिति में मन बुरे संकल्प सोचने लगता है और फिर शरीर द्वारा बुरा करना चाहता है।

तो ऐसे समय मन अपने आप कुछ नहीं कर सकती। जो मन का स्वामी है आत्मा, उसे ही मन को समझाना होता है , बुद्धि मन तो सही राह दिखाती है और मन को सही राह में चलने को कहती है।
फिर जब मन को सही और गलत का ज्ञान हो जाता है तो फिर वह अच्छे संकल्प करने लगती है और फिर मन शांत हो जाता है।

इसीलिए मन को एकाग्र करने के लिए सही और गलत का ज्ञान होना जरूरी है।
उसमे भी आत्मा का ज्ञान होना जरूरी है।

फिर बाद में ध्यान द्वारा अच्छे संकल्प ला सकते हैं , लेकिन पहले ज्ञान की जरूरत है।


क्या मन और आत्मा एक ही हैं ?

अब तक के post से आप समझ ही गए होंगे कि मन अलग है और आत्मा अलग है।
मन आत्मा की ही एक शक्ति है जो सोचती है और शरीर के इन्द्रियों को चलाती है।

वहीँ आत्मा मन का स्वामी है। मन को सही राह दिखाना यह आत्मा का काम है।

तो मेरे भाइयों ये थी जानकारी आत्मा और मन के बारे में। मुझे उम्मीद है कि आपको ये जानकारी जरूर पसंद आयी होगी। यदि आपका कोई सवाल या कोई सुझाव है तो हमें comment करके जरूर बताये। 
अधिक सहायता के लिए मुझसे बात करें - 9931472457 


और इसे जरूर और लोगों तक share करें ताकि ये ज्ञान सबतक पहुँच सके।
अपना महत्वपूर्ण समय देकर इस post को पढ़ने के लिए आपका बोहोत बोहोत धन्यवाद।